सोलहवें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथ जी (भाग - 3)
सोलहवें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथ जी (भाग - 3)
भगवान शान्तिनाथ जी के पूर्वभव
भगवान शान्तिनाथ जी का 9वाँ पूर्वभव - भरतक्षेत्र में अमिततेज विद्याधर
देवलोक से निकल कर वे चारों जीव भरतक्षेत्र में उत्पन्न हुए। श्रीषेण राजा का जीव विजयार्द्ध पर ‘अमिततेज विद्याधर’ हुआ, रानी सिंहनन्दिता का जीव उसकी पत्नी ‘ज्योतिप्रभा’ हुई, अनिन्दिता रानी का जीव त्रिपृष्ठ वासुदेव का पुत्र ‘श्रीविजय’ हुआ, और ब्राह्मण कन्या सत्यभामा का जीव अमिततेज की बहिन ‘सुतारा’ हुई जो श्रीविजय की पत्नी बनी।
सत्यभामा के पूर्व पति दुष्ट कपिल का जीव भव-भव में भटकते हुए ‘अशनिघोष’ विद्याधर हुआ।
भरतक्षेत्र के विजयार्द्ध पर्वत पर रथनूपुर नाम की एक सुन्दर नगरी है। श्रीषेण राजा का जीव स्वर्गलोक से चल कर उस नगरी में ‘अमिततेज’ नाम का विद्याधर हुआ। उस काल में भरतक्षेत्र में 11वें तीर्थंकर का शासन चल रहा था। ‘अमिततेज’ वहाँ के राजा ‘ज्वलनजटी’ नामक राजा का पौत्र था। वे जैन धर्म के प्रेमी, सम्यग्दृष्टि और चरमशरीरी थे।
महाराजा ‘ज्वलनजटी’ के गुणवान पुत्र ‘अर्ककीर्ति’ का विवाह पोदनपुर के राजकुमार ‘त्रिपृष्ठ वासुदेव’ की बहिन ‘ज्योतिमाला’ के साथ हुआ था और ‘ज्योतिमाला’ व ‘अर्ककीर्ति’ के पुत्र ‘अमिततेज’ का विवाह उसके मामा त्रिपृष्ठ की पुत्री ‘ज्योतिप्रभा’ के साथ हुआ था।
त्रिपृष्ठ के पुत्र ‘श्रीविजय’ का विवाह ‘अमिततेज’ की बहिन ‘सुतारा’ के साथ हुआ था।
इस प्रकार 12 भव तक साथ रहने वाले ‘अमिततेज’ (भगवान शान्तिनाथ का जीव) और ‘श्रीविजय’ (गणधर का जीव) इस 9वें भव में परस्पर एक दूसरे के बहनोई थे।
महाराजा ‘ज्वलनजटी’ अपने पुत्र-पौत्र सहित विजयार्द्ध के विद्याधरों पर राज्य करते थे। उनके महाभाग्य से एक बार जगनन्दन और अभिनन्दन नाम के दो गगनगामी मुनिवर उनकी नगरी में पधारे। राजा ने अत्यन्त भक्तिभाव से उनकी वन्दना-स्तुति की और मुनिराज ने उनको धर्मवृद्धि का आशीर्वाद दिया। राजा ने सम्यक्त्व सहित श्रावक-व्रत अंगीकार किए।
एक बार महाराजा ‘ज्वलनजटी’ राजसभा में बैठे थे। वहाँ एक दूत समाचार लेकर आया कि त्रिपृष्ठ वासुदेव के पिता, पोदनपुर के राजा, प्रजापति दीक्षा लेकर मुनि हुए और केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्षपद के धारी हुए हैं। यह सुन कर महाराजा ‘ज्वलनजटी’ को वैराग्य हो गया और ‘जगनन्दन’ मुनि के निकट मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली। इसके पश्चात शुद्धोपयोग द्वारा केवलज्ञान प्रगट करके वे भी मोक्ष को प्राप्त हुए।
कुछ समय पश्चात् त्रिपृष्ठ अपने दुष्परिणामों के कारण मरकर सातवें नरक गया और उसके भाई विजय बलभद्र ने दीक्षा लेकर मोक्षगमन किया। अमिततेज के पिता ‘अर्ककीर्ति’ भी वैराग्य प्राप्त करके दीक्षा लेकर मोक्षपद को प्राप्त हुए। अब रथनूपुर में अमिततेज विद्याधरों के राजा बन गए और पोदनपुर के राजा उनके बहनोई ‘श्रीविजय’ हुए। ये दोनों आठ भव पश्चात् तीर्थंकर और गणधर होने वाले हैं।
क्रमशः
।।ओऽम् श्री शान्तिनाथ जिनेन्द्राय नमः।।
Comments
Post a Comment