बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी (भाग - 15)
बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी (भाग - 15)
नेमिकुमार के विवाह की योजना
अब बलभद्र और श्री कृष्ण को ऐसा लगने लगा कि नेमिकुमार के मन में संसार के लिए किंचित राग जागृत होने लगा है, इसलिए महाराजा समुद्रविजय की सम्मति से उन्होंने नेमिकुमार के विवाह के विषय में विचार किया और श्री कृष्ण, महाराजा उग्रसेन की पुत्री राजुल से विवाह की बातचीत के लिए जूनागढ़ गए।
महाराजा उग्रसेन स्वयं को धन्य मानने लगे कि मेरी पुत्री राजुलकुमारी को नेमिकुमार जैसा पति मिले, इससे अधिक सौभाग्य की बात और क्या हो सकती है? जब राजुल को ज्ञात हुआ कि भावी तीर्थंकर नेमिकुमार उसके पति होंगे, तो उसके हृदय में दिव्य हर्ष की अनुभूति हुई।
इधर द्वारिका में भी नेमिकुमार राजुल से विवाह करने के लिए सहमत हो गए और सारी नगरी में हर्ष का वातावरण छा गया।
एक ओर तो नेमि-राजुल के विवाह का अवसर निकट आ रहा था, दूसरी ओर श्री कृष्ण के चित्त में शान्ति नहीं थी।bउनका अंतर एक अव्यक्त भय से अशांत था। सत्यभामा और राजसभा वाली घटना से उन्हें चिन्ता थी कि नेमिकुमार मेरी अपेक्षा अधिक बलवान व पराक्रमी है। वे बात ही बात में मुझे जीत सकते हैं, इसलिए विवाह के बाद कदाचित् वे मुझसे यह राज्य छीन लेंगे तो क्या होगा?
एक बार उन्होंने अपने मन की चिन्ता ज्येष्ठ भ्राता बलदेव के निकट प्रगट की, तब बलभद्र ने कहा - हे भाई कृष्ण! हम जानते हैं कि नेमिकुमार तीर्थंकर होने वाले हैं। जन्म से ही हमने इन्द्रों को उनकी सेवा करते हुए देखा है। वंश परम्परा से तो महाराजा समुद्रविजय के राज्य के उत्तराधिकारी नेमिकुमार ही हैं, परन्तु वे अति वैराग्यवान हैं। उन्हें तो पहले से ही राज्य की या भोगों की कोई आकांक्षा नहीं है। इसलिए ‘वे तुम्हारा राज्य ले लेंगे’, ऐसा भय रखने का कोई कारण नहीं है। उनके आगमन से तो अपने राज दरबार की शोभा बढ़ जाती है। उनका चित्त संसार से इतना उदासीन है कि वैराग्य का कोई भी प्रसंग आने पर वे तुरन्त संसार का त्याग कर देंगे और दीक्षा लेकर मुनि हो जाएंगे।
बलभद्र की बात सुनकर श्री कृष्ण के चित्त में कुछ शान्ति हुई। अब वे कोई ऐसा प्रसंग उपस्थित करने की युक्ति सोचने लगे कि जिसे देख कर नेमिकुमार के मन में वैराग्य हो जाए और वे राज्य छोड़ कर वन में चले जाएं। वैराग्य का कौन-सा प्रसंग उपस्थित हुआ? यह अगले प्रकरण में पढ़ेंगे।
क्रमशः
।।ओऽम् श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय नमः।।
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