तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ जी (भाग - 15)
तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ जी (भाग - 15)
भगवान पार्श्वनाथ का वैराग्य और दीक्षा कल्याणक
एक बार पौष कृष्णा एकादशी के दिन पार्श्वकुमार धर्मसभा में बैठे थे और उनका जन्मदिवस मनाया जा रहा था। देश-देशान्तर के राजाओं की ओर से उत्तमोत्तम वस्तुएँ भेंट की जा रही थी। अयोध्या का राजदूत भी भेंट लेकर आया।
वह विनयपूर्वक स्तुति करके कहने लगा - हे प्रभो! हमारी अयोध्या नगरी के राजा जयसेन को आपके प्रति प्रगाढ़ स्नेह है, इसलिए ये उत्तम रत्न एवं हाथी आदि वस्तुएँ आपको भेंट स्वरूप भेजी हैं।
पार्श्वकुमार ने प्रसन्न दृष्टि से राजदूत की ओर देखा और अयोध्या के वैभव की बात पूछी। राजदूत ने कहा - महाराज! हमारी अयोध्या तो तीर्थंकरों की खान है। जिस पुण्यभूमि पर तीर्थंकर जन्म लेते हों, वहाँ के वैभव का तो क्या कहना? असंख्य वर्ष पूर्व जब भगवान ऋषभदेव ने अयोध्यानगरी में अवतार लिया था, उस समय इन्द्र ने उस नगरी की रचना की थी। तत्पश्चात् भगवान अजितनाथ, अभिनन्दन नाथ, सुमतिनाथ तथा अनन्तनाथ जी तथा भरत चक्रवर्ती, भगवान रामचन्द्र आदि अनेक महान पुरुषों ने अयोध्यानगरी को पावन किया है।
अयोध्यानगरी का पूर्वकाल का वर्णन सुन कर पार्श्वकुमार गम्भीर विचारों में डूब गए। उसी समय उन्हें मतिज्ञानावरण का सातिशय क्षयोपशम हुआ। ज्ञानवैभव के वृद्धिगत होते ही उन्हें पूर्वकाल के अनेक भवों का साक्षात्कार हुआ अर्थात् जातिस्मरण हुआ और वे संसार से विरक्त हो गए - अरे! यह जीव स्वर्गलोक के वैभव का भी अनेकों बार उपभोग कर चुका है। तथापि इसे तृप्ति नहीं हुई। वास्तव में बाह्य पदार्थों से जीव को कभी तृप्ति नहीं हो सकती। धन्य हैं वे तीर्थंकर जिन्होंने संसार को छोड़ कर मोक्षपद प्राप्त कर लिया। अब मुझे जगत के सामान्य मनुष्यों की तरह संयम रहित काल गँवाना उचित नहीं है। जिस मार्ग पर तीर्थंकर चले हैं, मुझे भी उसी मार्ग पर चलना है। इसलिए मैं आज ही मुनि दीक्षा धारण करूँगा और आत्मसाधना करूँगा।
पार्श्वकुमार माता-पिता की आज्ञा लेकर ‘विमला’ नामक शिविका में आरूढ़ होकर वन में गए और स्वयं दीक्षा लेकर तपस्या में लीन हो गए। पार्श्वकुमार ने 30 वर्ष की अवस्था में अपने जन्म दिवस के दिन दीक्षा ग्रहण की। उनके साथ अन्य 300 राजाओं ने भी जिन दीक्षा ली।
प्रभु को ध्यान में तुरन्त ही सातवाँ गुणस्थान प्रगट हुआ और मनःपर्यय ज्ञान की प्राप्ति हुई। उनका प्रथम आहार गुल्मखेटनगर के ब्रह्मदत्त राजा ने करवाया और धन्यता प्राप्त की।
क्रमशः
।।ओऽम् श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नमः।।
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