अपनी अपनी बात

अपनी अपनी बात

बड़े ही विचित्र, विद्वान और ज्ञान के धनी तीन मित्र थे। एक भौतिक शास्त्री, दूसरा गणितज्ञ और तीसरा रसायन शास्त्री। एक दिन तीनों घूमने निकले। थोड़ी देर घूमने के बाद वे एक झील के किनारे बैठ गए। पहला भौतिक शास्त्री विद्वान बोला - मैं झील में जाता हूँ और इसका घनत्व बताता हूँ। जब बहुत देर तक वह नहीं निकला, तब दूसरे विद्वान गणितज्ञ ने कहा - मैं झील में जाता हूँ और इसकी लंबाई-चौड़ाई मालूम करता हूँ। वे दोनों काफ़ी समय तक वापस नहीं लौटे। बहुत देर हो गई थी। तब तीसरे रसायन शास्त्री विद्वान ने स्वयं से कहा - चलो यार! घर वापस चलें। यह रासायनिक पानी की झील है और हर पदार्थ इसमें जा कर घुलनशील हो जाता है। लगता है कि दोनों मित्र पानी में घुलनशील होने के कारण अदृश्य हो गए हैं। अब वे वापस नहीं आएंगे।

वास्तव में आज का ज्ञान केवल किताबों तक ही सीमित रह गया है। बच्चे विद्यालय में ज्ञान प्राप्त करने नहीं, केवल परीक्षा में पास होने के लिए पढ़ने जाते हैं। जब वे पढ़ाई पूरी करने के बाद डिग्रियों के कागज़ हाथ में लेकर निकलते हैं, तो उन कागज़ों के आधार पर अच्छी नौकरी पाने के लिए इधर-उधर भटकते रहने के सिवाय उनके पास कोई उपाय नहीं होता। पुस्तकीय ज्ञान को व्यवहार में लाने की कला वे नहीं जानते। ऐसे लोग ज्ञानी कहलाने के योग्य नहीं हैं।

सुविचार - शिक्षा-प्रणाली में पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान का समावेश भी होना चाहिए। शिक्षा जीवन-निर्वाह से अधिक जीवन-निर्माण के लिए होनी चाहिए। उसका ध्येय जीविका मूलक नहीं, जीवन मूलक होना चाहिए।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

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