दर्शन का महत्व

दर्शन का महत्व

एक नगर में कहीं से प्रस्थान करके एक मुनिराज पधारे थे। बड़ी संख्या में स्त्री-पुरुष उनका धर्म उपदेश श्रवण करने के लिए जाया करते थे तथा अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार नियम लेते थे। एक दिन एक ऐसा प्राणी शास्त्र सभा में गया जिसकी रुचि धर्म के प्रति कुछ भी नहीं थी। श्रावकों ने मिलकर मुनिराज जी से निवेदन किया कि महाराज! आज एक ऐसा व्यक्ति आया है जो कि धर्म को नहीं जानता। यहां तक कि वह भगवान के दर्शन करने के लिए मंदिर में भी नहीं जाता। अतः किसी भांति उसे कुछ नियम देकर सन्मार्ग पर लगाइए।

यह सुनकर मुनिराज ने उसे बुलाया और कहा कि भैया सभी लोग नियम ले रहे हैं, तुम भी कुछ ले लो। उसने उत्तर दिया - महाराज जी! हम नियम नहीं निभा सकेंगे। महाराज जी ने प्रेम पूर्वक समझाया कि एक छोटा सा नियम केवल भगवान के दर्शन करने का ले लो।

उसने कहा - महाराज जी! मंदिर तक हमारा जाना कठिन है। हां! हमारे दरवाज़े पर से मंदिर दिखलाई पड़ता है तो वहीं से दर्शन कर सकते हैं। महाराज जी ने कहा - अच्छा! वहीं से कर लेना। पहले तुम दर्शन करने की आदत तो डालो। वह यह नियम लेकर अपने घर चला गया।

प्रातः काल अपनी प्रतिज्ञा अनुसार श्रद्धा पूर्वक अपने दरवाज़े के सामने से मंदिर जी का दर्शन करके वह भगवान को मन ही मन प्रेम-पूर्वक प्रणाम कर जैसे ही वापस लौटा, उसके पैर में कांटा गड़ गया। उसे बहुत दुःख हुआ और कहने लगा कि यदि हम दर्शन न करते तो कांटा नहीं चुभता। वह मुनिराज जी के पास जाकर बोला कि महाराज जी! आपसे मैंने कल नियम लिया था। उसके अनुसार प्रातः काल श्री मंदिर जी का दर्शन किया किंतु उसके फल से हमारे पैर में कांटा चुभ गया। मुनिराज अवधि ज्ञानी थे अतः वे सारी बातें जान गए और कहने लगे कि बच्चे! आज तो तुम्हें सांप काटने वाला था। तुम्हारी मृत्यु हो जाती परंतु मंदिर के दर्शन का नियम लेने के कारण तुम्हें केवल कांटा चुभ कर रह गया। मुनिराज जी उसको लेकर उसी स्थान पर गए जहां उसको कांटा लगा था। वहां एक पत्थर की शिला पड़ी थी। उसको जब उठाया गया, तब उसके नीचे एक बहुत बड़ा भयंकर नाग बैठा था।

सुविचार - यदि हम श्रद्धा-पूर्वक दर्शन का नियम ग्रहण कर लें तो निसंदेह हमारा कल्याण हो सकता है।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

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