दूध-पानी की दोस्ती

दूध-पानी की दोस्ती

एक गृहिणी ने दूध उबालने से पहले उसमें थोड़ा-सा पानी मिलाया। दूध में पानी मिलते ही दूध ने अपने समस्त गुण पानी को दे दिए। पानी को अपने जैसा श्वेत और शक्तिवान बना लिया। अग्नि में ताप आते ही दूध और पानी दोनों तपने लगे। दूध को जलते देखकर पानी की आँख में आँसू आने लगे और उसने भी अपना शरीर अग्नि में होम करना आरम्भ कर दिया। भला एक मित्र दूसरे मित्र को अग्नि का ताप सहते हुए कैसे देख सकता था?

दूध को भी यह सहन नहीं हुआ कि मेरा मित्र मेरे कारण अपना अस्तित्व ही नष्ट करने लगे। वह अपने मित्र की इस संकट की अवस्था को देखकर क्रोध से उफ़ान भरता हुआ सीधे अग्नि में गिरना ही चाहता था कि आज तो इसे बुझा कर ही मुझे शांति मिलेगी, तभी गृहिणी के द्वारा उस पर ठंडे पानी के छींटे पड़ने शुरू हो गए।

पानी के ठंडे छींटे पड़ते ही उसने सोचा कि मेरा मित्र मुझे समझाने आया है - हे मित्र! डरो नहीं, मैं तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाला। जब तक मेरा एक बूँद पानी भी शेष रहेगा, मैं सदा तुम्हारे साथ ही बना रहूँगा। अपनी विशुद्धि को बढ़ाने के लिए तपना तो पड़ता ही है। मैं तो वाष्प बन कर हवा में विलीन हो जाऊँगा, लेकिन तुम्हारी शुद्धता को बढ़ाने में अवश्य सहायक बनूँगा।

अपने मित्र के समझाने पर दूध शांत हो गया, वरना उसने तो अपने मित्र पानी को जलाने वाली अग्नि को ही बुझाने की ठान ली थी।

सुविचार - सज्जन पुरुषों की मित्रता की पहचान संकट के समय में ही हुआ करती है।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

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