हठ का फल

हठ का फल

एक घना जंगल था। उसमें एक पुराना तालाब बना हुआ था, जो काफ़ी गहरा था। तालाब के किनारे जल मुर्गियां और उनके बच्चे घूमते रहते थे। वे कभी पानी में तैरते, कभी पंखों से एक दूसरे पर पानी डालते थे और कभी एक दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश करते। तालाब के किनारे पर एक चिंटू नाम के चूहे का बिल था। चिंटू के तीन छोटे-छोटे बच्चे थे। जब चिंटू उनके लिए खाना जुटाने बिल से बाहर निकल जाता था, तो बच्चे भी बिल से निकल आते थे। वे तीनों तालाब के किनारे आकर बैठ जाते थे। वहां से देखते कि पानी में जल मुर्गाबी और उनके बच्चे तैर रहे हैं। उन्हें पानी में खेलते हुए देखकर चूहे के उन तीनों बच्चों का मन ललचा जाता। उनका मन करता था कि वे भी पानी में तैरें, पर वहां एक बड़ी सी जल मुर्गाबी थी, जो उन्हें पानी में नहीं आने देती थी।

शाम को चूहे के बच्चे घर लौटे। चिंटू के साथ बैठकर सब ने खाना खाया। चिंटू के बड़े बेटे का नाम था मिंटू। वह बोला - ‘पिताजी! मुर्गाबी काकी बहुत ख़राब हैं।’

‘क्यों? क्या बात है बेटा? उन्होंने क्या किया?

‘पिताजी! ख़ुद तो सारे दिन पानी में खेलती रहती हैं, उनके बच्चे भी पानी में तैरते रहते हैं, उन्हें वह मना नहीं करती। हम किनारे पर बैठे-बैठे उनका खेल देखते रहते हैं। हमारा मन करता है कि हम भी उनके साथ खेलें। मुर्गाबी काकी ने मना कर दिया। उन्होंने हमें तालाब में पैर भी नहीं रखने दिया।’

मिंटू की बात सुनकर चिंटू चूहे ने उसे समझाया कि बेटा मुर्गाबी काकी तुम्हारी भलाई की बात कहती हैं। हम पानी में नहीं तैर सकते। पानी में जाएंगे तो डूब जाएंगे। तुम अभी छोटे हो, नासमझ हो, तुम्हें बड़ों का कहना मानना चाहिए।

दूसरे दिन जब चिंटू बिल से बाहर चला गया, तो उसके दोनों बच्चे भी बाहर निकले। इधर-उधर घूम कर वे किनारे पर आकर बैठ गए। बहुत देर बाद बड़ी मुर्गाबियां खाना खाने चली गई। मिंटू ने सोचा कि अब तो हमें कोई रोकने वाला नहीं है। क्यों न हम आज पानी में तैरें? वह अपने छोटे भाइयों से बोला - चलो आज हम भी तैरेंगे।

प्रीतू बोला - ‘भैया! पिताजी ने मना किया था न!’

मिंटू बोला - ‘पिताजी को हम बताएंगे ही नहीं। तुझे पानी में खेलना है तो जल्दी चल।’

प्रीतू की बात बिना सुने ही मिंटू तालाब में तेजी से उतर गया। उसके पीछे-पीछे धीरे-धीरे नीतू और प्रीतू भी चले। वे अभी पानी में उतरने की सोच ही रहे थे कि एक आवाज़ सुनाई दी। कोई ज़ोर-ज़ोर से कह रहा था - ‘बचाओ! बचाओ!!’

उन्होंने ध्यान से सुना, तब पता लगा कि आवाज़ तो उनके बड़े भैया मिंटू की ही है। बात यह हुई कि तालाब था गहरा! मिंटू जैसे ही उस में उतरा, तो डूबने लगा। अब वही सहायता के लिए ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था। उसकी आवाज़ सुनकर दूसरे किनारे पर तैर रहे मुर्गाबी के बच्चे भी दौड़े आए। उन्होंने गोता लगाकर मिंटू को निकालने की बहुत कोशिश की, पर सब बेकार।

मिंटू का कुछ पता नहीं लग पा रहा था। नीतू-प्रीतू ने भी तालाब में उतरने की कोशिश की, पर मुर्गाबी के बच्चों ने रोक दिया। वे बोले कि यदि तुम उतरोगे, तो तुम भी डूब जाओगे। विवश होकर दोनों तालाब के किनारे बैठ कर रोने लगे। थोड़ी देर में मुर्गाबियां घर से खाना खाकर लौट कर आई, तो नीतू-प्रीतू ने उन्हें रोते-रोते सारी बात बताई। मुर्गाबी काकी सारी बात समझ गई। तभी उसने अपने बच्चों के पास डूबते-बहते मिंटू को देखा। काकी ने झपट कर अपनी चोंच से उसकी पूँछ पकड़ ली। उसने मिंटू को किनारे पर लाकर धूप में लिटा दिया। नीतू-प्रीतू भी सहमे से उनके पास बैठ गए।

शाम तक भी मिंटू में चलने-फिरने की हिम्मत नहीं आ सकी। चिंटू चूहा अपने तीनों बच्चों को घर में न पाकर ढूंढता हुआ तालाब के किनारे आया। सारी बात जानकर वह मिंटू को उठाकर घर ले गया। मिंटू को बुख़ार भी आ गया था। कई दिन तक उसने शीलू लोमड़ी की कड़वी दवा खाई, भूखा-प्यासा रहा, तब कहीं जाकर ठीक हुआ। उसने और नीतू-प्रीतू ने सोच लिया कि अब हम सदैव बड़ों की आज्ञा मानकर काम करेंगे और कभी भी हठ नहीं करेंगे।

सुविचार - माता-पिता सदैव अपने बच्चों के शुभचिन्तक होते हैं। अतः उनका कहना मानो।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

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