पात्र हो?

पात्र हो?

बियाबान जंगल कई साधकों का साधना स्थल और प्रभु पार्श्वनाथ का प्रभावना स्थल था। अनेकानेक जिनालयों से युक्त नैना गिरी की तलहटी और उत्तंग पर्वत और इसके साथ-साथ दिगंबर जैन आचार्य का सान्निध्य; इन सारे सामंजस्यों के कारण लोगों के लिए वह बियाबान जंगल, जंगल में मंगल का कारण हुआ करता था।

इसी जंगल में एक दिन एक मनचला युवक कौतुकतावश आ गया। वहां जंगल की अनुपम छटा निहारने के बाद वह संत चरण में बिना आशा और विश्वास के पहुंच गया। संत का सौम्य रूप, हंसता हुआ मुख मंडल, सत्य-संयम और सदाचार से युक्त उनका आभामंडल उस युवक को नास्तिकता से आस्तिकता की ओर ले गया। जैसी उसने कभी सोची भी नहीं होगी, ऐसी भावना उसके अंदर जाग गई।

उसकी आत्मा कहने लगी - सुशील! अब अपने सोए हुए परमात्मा को जगाओ। कंकर में शंकर का दर्शन करो। प्रभु से परमेश्वर बनने के मार्ग पर चलो। त्रियंच का नहीं तीर्थंकर का अनुसरण करो, नर से नाहर नहीं नारायण बनने का अभ्यास करो, सुशील!

ये सारी की सारी भावनाएं भी उसे शांत नहीं रख सकी। वह उठा और आचार्य प्रवर के चरणों में नमस्कार करके बोला - गुरुदेव! मुझे अपने चरण में शरण दो। बस! यही मेरी भावना है कि आपके चरणों में मेरा सुमरण हो।

आचार्य प्रवर मुस्कुराए और कहा - भाई! क्या तुम इसके पात्र हो?

सुशील एक तर्कशील युवक था। उसने तुरंत ही विचार किया। उसने सोचा पात्र का अर्थ हुआ दोना (कटोरा)। जिस प्रकार दोना खाली होने पर ही भरा जा सकता है, उसी प्रकार मैं भी खाली मिलूं, तो गुरुदेव मुझमें ज्ञानामृत भर सकते हैं। यही सोचकर सुशील उनके श्री चरणों में साष्टांग लेट गया। सुशील के साष्टांग प्रणाम करते ही आचार्य ने कहा - उठो वत्स! तुम पात्र हो। तुमने मेरी भावना पहचान ली। अब तुम मेरे पास रहकर ज्ञानार्जन कर सकते हो। मैं तुम्हें आत्मा से परमात्मा बनने की विधि बता सकता हूँ। मैं इस सागरविहीन बिंदु को सिंधु में मिला सकता हूँ।

सुशील धन्य-धन्य हो गया, श्री गुरु आशीष पाकर। जो कुछ समय पहले एक मनचला युवक था, अब वही मन को अपने अनुसार चलाने लगा। उसके अंदर परमात्मा का एहसास कराने वाले गुरु और कोई नहीं, संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज हैं। वह युवक कोई और नहीं, परम पूज्य आचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी महाराज हैं।

सुविचार - मैं भी गुरु चरण की कृपा से परमात्मा के गुणों को अपनी आत्मा को स्थित करने का पात्र बन सकूं - इसी अभिलाषा से गुरु की शरण में जाना चाहिए।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

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