रिश्तों के बदलते पैमाने

रिश्तों के बदलते पैमाने

सपना मेरे कॉलेज जीवन की सहेली है। उस दिन पार्टी में वह अचानक करीब 18 साल बाद मिली। उसका दूसरा बच्चा गोद में था। हमारी बातचीत शुरू ही हुई थी कि एक महिला आई और सपना के बच्चे को गोद में लेकर खिलाने लगी। इससे मुझे और सपना को ठीक से बात करने के लिए सुविधा हो गई। बाद में सपना ने उस महिला से परिचय कराया - ‘यह मेरी पड़ोसी राशि दीदी हैं, मानो मेरी बड़ी बहिन ही पड़ोस में रहती हों।’

सुनील और अनिल जिगरी दोस्त हैं। दोनों का एक ही व्यवसाय है और दोनों का परिवार मिलकर एक ही छत के नीचे रहता है, मानो दो भाई साथ रहते हों।

बैंक में कार्यरत चार दोस्तों ने मिलकर एक जमीन खरीदी और उस पर 4 फ्लैट बनाकर पड़ोसी-पड़ोसी की तरह सुख- दुःख में एकसाथ रहने लगे।

माला ने एक मौसी बनाई हुई हैं, जिनकी माला के यहां हर कार्य में प्रमुख भूमिका होती है। माला का अनमोल आधार है यह मौसी। यहां तक की माला की माँ या सास भी आती हैं तो भी वह मौसी से पूछ कर ही निर्णय लेती है।

पिछले 10 सालों में जीवन जीने के मायने कुछ इस तरह बदले हैं कि उसका परिणाम हर कहीं नज़र आता है। यहां तक कि रिश्तों पर भी स्वार्थ-ग्रस्त जीवन का प्रभाव पड़ने लगा है। बच्चे एकल परिवार में पल-बढ़ रहे हैं। बच्चों की छुट्टियों में रिश्तेदारों के यहां रहने जाने का रिवाज़ ही नहीं रहा। छुट्टियों में बच्चों के अलग-अलग क्लासिज़ हैं, जो स्कूल के दिनों में नहीं हो सकती। समय कम है और सीखना अधिक है। इस समयाभाव के कारण बच्चों का रिश्तेदारों से जो संबंध, लगाव या प्रेम पहले अपने आप होता था, वह नहीं हो पाता। समय की कमी और स्थान की दूरी के कारण रिश्तों की दूरियां बढ़ती जा रही हैं।

बच्चे को माता-पिता के प्रेम के अलावा मौसी, चाचा, चाची, मामा, मामी, दादा, दादी, नाना, नानी के प्रेम की भी आवश्यकता होती है। परिवार के अलावा कोई मौसी जैसा या नानी जैसा प्रेम करने वाला मिलता है तो बच्चा उनसे जुड़ जाता है। हम दो हमारा एक की स्थिति में तो ऐसे माने हुए रिश्ते ही प्रेम का आधार होंगे क्योंकि यह समय के साथ परिवर्तित होने का स्वाभाविक परिणाम है। सुख-दुःख में जो काम आए, वही रिश्तेदार और सगे-संबंधी भी हो सकते हैं और माने हुए भी। जन्म-मृत्यु, शादी-ब्याह, ये तो जीवन में एक ही बार होने वाली घटनाएं हैं। इस मौके पर सभी सगे-संबंधी आते हैं परंतु इन घटनाओं के अलावा जीवन बहुत बड़ा है। रोजमर्रा के उठने वाले प्रश्नों और छोटी-छोटी ख़ुशियों के लिए सगे-संबंधी दूर से नहीं आ सकते और न ही हम किसी के लिए जा पाते हैं। ऐसे समय हमारे आसपास के रोज़ मिलने वाले, माने हुए या बनाए हुए रिश्ते ही काम आते हैं।

ऐसे रिश्तों का अन्य रिश्तेदारों की तरह ही आदर करें। सगे-संबंधी भी एक-दूसरे के ऐसे रिश्तों का समुचित सम्मान करें। समय की कमी व स्थान की दूरियों के कारण बनाए रिश्ते भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। भले ही खून का रिश्ता इनसे न हो परंतु ये सगे-संबंधियों से कम नहीं हैं। सिर्फ़ इन्हें सहेजना पड़ता है, जब पराए अपने बन जाते हैं, वरना ऐसे रिश्ते टूटने में भी देर नहीं लगती। आजकल रिश्ते तो ऐसे बदलते हैं जैसे कपड़े।

मैं सपना के मुख से रिश्तों की यह परिभाषा सुन कर हैरान रह गई। मुझे यह देख कर बहुत प्रसन्नता हुई कि कैसे उसके पड़ोस में रहने वाली राशि दीदी उसके और उसके बच्चे के प्रति एक बड़ी बहिन की भूमिका निभा रही थी। बड़ा होने पर वह बच्चा भी उसे मौसी के समान ही प्यार व सम्मान देगा।

सुविचार - सदा कायम रहने वाले रिश्ते खून से नहीं, निभाने से बनते हैं।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

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