जैन धर्म में त्याग और तपस्या का महत्त्व
जैन धर्म में त्याग और तपस्या का महत्त्व
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से)
आज दसलक्षण धर्म के समापन के अवसर पर दिगम्बर जैन मुनि श्री विशोक सागर जी महाराज द्वारा दिए गए प्रवचन के कुछ अंश -
दुनिया में जैन धर्म में होने वाली त्याग और तपस्या का कोई सानी नहीं है। तत्त्वार्थ सूत्र ग्रन्थ के प्रथम अध्याय की प्रथम पंक्ति में बताया गया है मोक्ष-मार्ग का रहस्य!!
‘सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः।’
सम्यक् (उचित प्रकार से) दर्शन अर्थात् श्रद्धा से सम्यक् ज्ञान व सम्यक् चारित्र को धारण करना ही मोक्ष का मार्ग है। सम्यक् ज्ञान मध्य दीपक के समान है, जो श्रद्धा को भी प्रज्ज्वलित रखता है और चारित्र अर्थात् आचरण को भी सम्यक् बनाए रखने में सहायक है। जैसे नदी के दोनों किनारे नदी के प्रवाह को सही दिशा प्रदान करते हैं और अंत में सागर में समा जाने में सहायक बनते हैं; वैसे ही श्रद्धा सहित उचित प्रकार से प्राप्त किया हुआ ज्ञान हमारे द्वारा किए गए धर्माचरण की सहायता से हमें मोक्षपुरी तक पहुँचाता है। श्रद्धा नहीं तो ज्ञान व्यर्थ है और उस पर आचरण नहीं तो श्रद्धा व ज्ञान दोनों व्यर्थ हैं। श्रावक, मुनिराज के समान पूर्ण रूप से महाव्रतों को धारण नहीं कर सकता, तो उसे अणुव्रतों के रूप में अष्टमूलगुणों को अवश्य ग्रहण करना चाहिए।
धार्मिक क्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं - निवृत्तिमूलक और प्रवृत्तिमूलक। निवृत्तिमूलक क्रियाओं में दोषों, अवगुणों और व्यसनों का त्याग किया जाता है और प्रवृत्तिमूलक क्रियाओं में गुणों को ग्रहण किया जाता है।
दसलक्षण धर्म के दस दिनों में पहले चार दिन क्रोध, मान, माया, लोभ का त्याग करने को कहा गया और अगले चार दिनों में सत्य, संयम, तप और त्याग को धारण करने को कहा गया है। इन 8 दिनों की साधना के बाद 9वें दिन हमें यह सम्यक् रूप से ज्ञान हो गया कि मैं ‘अकिंचन’ हूँ। मेरा कोई नहीं है। न ये शरीर मेरा है और न ये संसार की वस्तुएँ मेरी हैं। दसवें दिन साधक सबसे प्रीति हटा कर ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर लेता है और मोक्ष की साधना में लग जाता है।
यहाँ तप व तपस्वी दोनों की प्रशंसा की जाती है। मुनि श्री ने कहा कि यदि आप व्रत-उपवास आदि नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं, केवल बीड़ी-सिगरेट, गुटखा-तम्बाकू, मदिरा आदि का भी त्याग कर दो, तो तुम तपस्वी बन जाओगे। त्याग से डरना नहीं है, उसके महत्त्व को समझना है। सच्चा त्याग सीखना हो तो पशु-पक्षियों से सीखो, जो अपरिग्रही होते हैं, सूर्योदय से पहले कुछ नहीं खाते और सूर्यास्त के बाद कुछ नहीं खाते। शाम होते ही अपने घोंसलों में विश्राम के लिए चले जाते हैं और सुबह उठते हैं, तो चहकते हुए उठते हैं और हम सब कुछ जोड़ कर रखते हैं, सोते हैं तो थके हुए होते हैं और उठते हैं तो चिन्ताग्रस्त होते हैं।
यदि आप समस्त चिन्ताओं से मुक्त होना चाहते हैं तो श्री णमोकार महामंत्र का जाप करो। इसके प्रभाव से विष निर्विष हो जाता है, अग्नि जल में बदल जाती है और सूली भी सिंहासन बन जाती है। यह महामंत्र है, जो समस्त विपत्तियों और विघ्न-बाधाओं को हरने वाला है। यह सम्पूर्ण शक्तियों का पुंज है, जिसके श्रवण मात्र से ही हमारा हित हो जाता है। उपवास करने से हम इन्द्रियों पर नियन्त्रण करना सीख जाते हैं। कहा भी गया है कि इच्छा निरोधः तपः। अपनी शक्ति और भक्ति के अनुसार तप-त्याग करें व श्री णमोकार महामंत्र की आराधना करें।
।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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