क्षमाशील बनो

क्षमाशील बनो

एक संत बहुत निस्पृही, शांत स्वभावी एवं क्षमाशील थे। भ्रमण करते-करते अचानक वे एक गन्ने के खेत में जा पहुँचे। उन्होंने खूब गन्ने काटे और सिर पर गन्नों का गट्ठर रखकर चल पड़े बाजार में बेचने। पर मार्ग में गन्ने के लालच में बच्चे उनके पीछे लग गए। वे उनसे गन्नों की मांग करने लगे। संत बहुत उदार प्रकृति के थे। वे किसी को क्या अस्वीकार करते और फिर अबोध बच्चों का आग्रह! वे सभी को गन्ने देते चले गए। बच्चे भी गन्ने का रसास्वादन करते रहे। घर पहुंचते-पहुंचते महात्मा के पास सिर्फ एक गन्ना ही शेष रहा।

लेकिन संत श्री की धर्मपत्नी बहुत ही तेज, चिड़चिड़े स्वभाव की महिला थी। वाणी में कर्कश, व्यवहार में तीखी। माधुर्य व विनम्रता का उनमें नितांत अभाव था। पतिदेव के कंधे पर सिर्फ एक ही गन्ना देखकर गुस्से में लाल हो गई और बुरी तरह जल भुन गई। लगी अनर्गल बकवास करने। आपे से बाहर होकर संत से गन्ना छीनकर संत जी की पीठ पर दे मारा। गन्ना टूट गया। दो टुकड़े हो गए, परंतु संत जी हंसने लगे।

वे पुलकित वचन बोल पड़े - बहुत अच्छा हुआ। तुम बहुत समझदार हो, चिंतनशील हो। दोनों के लिए गन्ने के दो टुकड़े मुझे करने पड़ते, लेकिन तुमने बिना कहे मेरा यह कार्य कर दिया। बहुत शांत साध्वी के समान हो तुम तो। धन्य है तुम्हारे ज्ञान व्यवहार में निपुणता को।

संत श्री का ऐसा कोमल मृदुल व्यवहार देख कर उनकी पत्नी पानी-पानी हो गई। पतिदेव के चरणों में उसका सिर झुक गया। कुछ भी नहीं बोल पाई। एकदम अवाक् हो गई।

यह है क्षमा की पराकाष्ठा। क्रोध पर क्षमा की अद्भुत विजय! यदि हम भी महान् बनना चाहते हैं, तो किसी भी स्थिति में इंसान को क्रोध नहीं करना चाहिए। क्षमाशील मानव ही लोकप्रिय बन सकता है। क्षमा मानव का सर्वश्रेष्ठ आभूषण है। अतः क्षमाशील बनो।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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