उत्तम त्याग

उत्तम त्याग

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से)

आज दसलक्षण धर्म के अष्टम दिवस पर ‘उत्तम त्याग’ धर्म पर आधारित दिगम्बर जैन मुनि श्री विशोक सागर जी महाराज द्वारा दिए गए प्रवचन के कुछ अंश -

आदमी के हृदय में अनुराग होना चाहिए, आदमी के जिग़र में, आग होना चाहिए।

इन सारी बातों को बनाए रखने के लिए, आदमी के जीवन में कुछ त्याग होना चाहिए।।

‘उत्तम त्याग’ धर्म का पालन करना है; तो जोड़ो नहीं, छोड़ो। छोड़ने से व्यक्ति हल्का होता है और जोड़ने से भारी। जैसे समुद्र हर समय पानी को संग्रह करता रहता है तो वह भारी होकर ज़मीन पर ही पड़ा रहता है और बादल उसमें से जो पानी सोख कर वाष्प बनाते हैं, उन्हें वर्षा के रूप में पुनः धरती को वापिस लौटा देते हैं; इसलिए वे हल्के होकर आकाश में विचरण करते हैं।

नदियों का जल मीठा होता है, क्योंकि वे अपना जल लोगों की प्यास बुझाने और खेती-बाड़ी आदि अन्य कामों के लिए बाँटती रहती हैं; लेकिन ज्यों ही वे समुद्र में जा कर मिलती हैं, वे वहीं स्थिर हो जाती हैं और उनका जल भी ख़ारा हो जाता है। इसलिए यदि स्वयं को उपयोगी बनाना है, तो बांटो और बांटते रहो।

अर्जन के साथ विसर्जन बहुत आवश्यक है। हम एक श्वास लेते हैं, तो दूसरा श्वास छोड़ते भी हैं। तभी हमारा जीवन चल पाता है। यदि श्वास को छोड़ा न जाए, तो वह अन्तिम श्वास बन जाएगी और हम मरण को प्राप्त हो जाएंगे।

एक छोटे-से त्याग से मानव, मनुष्य से देव बन सकता है। परिग्रह का भार, संग्रह-वृत्ति से आसक्ति का भाव ही हमें संसार में भ्रमण कराता रहता है। जैसे-जैसे यह वज़न हल्का होता जाता है, वैसे-वैसे मनुष्य ऊचाइयों को प्राप्त करता है और एक दिन परमात्मा के पद पर आसीन हो जाता है। अधिक परिग्रह नरकायु का कारण है।

भावों की विशुद्धि के लिए बाह्य परिग्रह का त्याग किया जाता है और आत्मा की विशुद्धि के लिए अवगुणों का त्याग किया जाता है। अपनी सम्पत्ति का एक अंश छोड़ना दान कहलाता है और सर्वस्व छोड़ना त्याग की श्रेणी में आता है।

उत्तम त्याग जो पाओगे, श्रावक मुनि बन जाओगे।

भवसागर तिर जाओगे - 2

उत्तम त्याग हृदय लाओ, पाप-पुण्य को कट जाओ।

सच्चा त्यागी ही, शिवपद को पाए रे.....।

जीवन है पानी की बूँद, कब मिट जाए रे.....।

होनी अनहोनी कब क्या घट जाए रे.....।

इसलिए जब भी मौका मिले, त्याग व दानकार्य से पीछे नहीं हटना चाहिए।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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