बैंक में संपत्ति
बैंक में संपत्ति
सेठ बुलाकी राम करोड़पति सेठ था। घर में किसी प्रकार की कमी नहीं थी। वह हर दृष्टि से संपन्न था। सेठ जी ने अपने पुत्र का नाम रखा अमीरचंद। कुछ दिनों पश्चात मोटर दुर्घटना में माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। अमीरचंद घर में अकेला रह गया।
नाम से वह अमीरचंद अवश्य था किंतु खर्च करने में बहुत कंजूस था। उसकी कंजूसी को देखकर साथियों ने उसका नाम कंजूसचंद रख दिया। जो भी आय होती, वह उसे बैंक में जमा करता जाता।
समय-समय पर साथी उससे कहते रहते - मित्र! धन क्या साथ जाएगा? इतनी कंजूसी करना उचित नहीं है।
वह कहता कि यह मेरी घरेलू बात है। किसी को भी हस्तक्षेप करने की अपेक्षा नहीं है। तुम लोगों की तरह मैं फालतू खर्च करने वाला नहीं हूँ और अधिक खर्च करना भी मुझे पसंद नहीं है।
लोभी व्यक्ति का धन स्वयं के उपभोग में नहीं आता है, अपितु अन्य के ही उपयोग में आता है। अमरचंद के नौकर-चाकर भी परेशान होकर बोले - बाबूजी! खान-पान में इतनी कंजूसी बरतना बुद्धिमता नहीं है। लेकिन वह किसकी मानने वाला था? धीरे-धीरे सारे नौकर बाबूजी से विदा हो गए।
उसके सामने खाना बनाने की नई समस्या उत्पन्न हो गई।
भूख लगी तो बाबूजी होटल पहुंच गए और उच्च स्तर के भोजन का ऑर्डर दिया। भोजन समाप्ति के पश्चात् जब बिल देखा, तो घबरा गया। इधर-उधर दौड़ जाने की सोचने लगा।
होटल के मालिक ने कहा - बाबूजी! बिल की पेमेंट कीजिए।
उसने कहा - मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं। इसके बदले में बर्तन साफ करवा लीजिए।
लाखों करोड़ों की संपत्ति का अधिनायक कंजूसी के कारण झूठे बर्तन साफ करने लगा। अब वह वहीं रहने लगा और होटल का बचा-खुचा खाना खाकर उदर पूर्ति करने लगा। उसके एवज में प्रतिदिन बर्तन साफ करना प्रारंभ कर दिया।
अब उसने धीरे-धीरे अपना सारा इस्टेट बेचकर रुपए बैंक में जमा कर दिए और टूटी-फूटी झोंपड़ी में रहने लगा। कपड़े तार-तार हो गए, फिर भी नए कपड़े नहीं खरीदे। कंजूसचंद अब भयंकर रोग से ग्रस्त हो गया। उपचार के लिए पैसा खर्च करना उसने उचित नहीं समझा। सही इलाज नहीं होने के कारण वह यमराज का अतिथि बन गया। उसकी सारी संपत्ति बैंक में रह गई।
जो व्यक्ति कंजूस व लोभी होता है, वह इस लोक में भी सुखी नहीं होता और परलोक में भी सुखी नहीं होता है। अतः लोभ सर्वथा त्याज्य है। लोभी आदमी न सुख से जी सकता है और न ही मर सकता है।
नहीं सौख्य को पा सके, लोभी नर कंजूस।
भोग न सकता वित्त को, मानव मक्खी चूस।।
सुविचार - जहाँ ममत्व (मूर्च्छा) है, वही परिग्रह है और जहाँ परिग्रह है, वहाँ महाव्रत का अभाव है।
।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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