एक महात्मा

एक महात्मा

एक महात्मा था। वह बहुत बड़ा बैरागी व मस्त था।

उसके पास एक दिन एक भक्त आया और बोला - महाराज! धन्य है आज की बेला और धन्य है आज का स्वर्णिम दिन जो आप जैसे त्यागी संतों के दर्शन हुए। महाराज! आपका जीवन तो बहुत शांत एवं सुखी प्रतीत हो रहा है। किसी भी तरह की आपको चिंता नहीं है, परंतु मेरा जीवन सदा अशांति से आच्छादित रहता है। रात-दिन एक न एक चिंता सताती रहती है। सुख की नींद भी नहीं ले सकता। आपके और मेरे जीवन में इतना अंतर क्यों?

महाराज ने कहा - भक्त! इन प्रश्नों का उत्तर अभी नहीं मिलेगा, पर एक बात सुन। तेरी मृत्यु आज से आठवें दिन होने वाली है। इसलिए अभी से उसकी चिंता कर।

महात्मा की बात सुनते ही भक्त घबराया और दौड़ा-दौड़ा अपने घर आया। उसने सोचा अब तो आठवें दिन मरना पड़ेगा। इस दृष्टि से उसने अपने परिवार वालों से व पड़ोसियों से क्षमा याचना कर ली। सांसारिक मोह से विरक्त हुआ, घर के कार्यों से निवृत्त बनकर जीवन का सारा समय धर्म ध्यान में व्यतीत करने लगा। जब 8 दिन पूरे हो गए, तो महाराज उसके घर पर गए।

भक्त - महाराज! अब मेरी मृत्यु में कितना समय अवशिष्ट है?

महात्मा - भक्त! मौत कब आएगी यह तो केवल ज्ञानी जानते हैं, किंतु बता तेरा यह सप्ताह कैसा बीता?

भक्त - महाराज! मेरे सामने तो मौत नाच रही थी, इसलिए मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। पौद्गलिक सुखों व सांसारिक कर्मों से विमुख होकर मैंने आठों दिन धर्म ध्यान में बिताए।

महात्मा - भक्त! जिस प्रकार तेरे सामने आठों ही दिन मौत नाचती रही और तुमने कोई सांसारिक काम नहीं किया, उसी प्रकार महापुरुषों की आंखों के सामने मौत निरंतर ही नाचती रहती है। वे जानते हैं कि मौत आने वाली है। अतः वे शांत व बेफिक्र रहते हैं। सुख से नींद लेते हैं। भक्त! यह है तेरे प्रश्न का उत्तर।

भक्त - (खुश होकर) प्रभुवर! आपने मुझे बहुत ही अच्छा ज्ञान दिया। मैं आपके उपकार को कभी भी भूल नहीं सकता। अब मैं भी सांसारिक कार्यों से निवृत होकर धार्मिक कार्यों में प्रवृत्ति करूँगा और मौत को निरंतर याद रखूँगा, जिससे मुझे शांति मिले।

बन्धुओं! किसी भी परिस्थिति में मौत को नहीं भूलना चाहिए। मौत निरंतर हमारे ऊपर घूमती रहती है। वह हर एक को सचेष्ट करती है कि मैं किसी को भी सूचित किए बिना ही अचानक हमला बोलने वाली हूँ। अतः सत्कार्य करने में तनिक भी विलंब नहीं करना चाहिए।

सुविचार - दूसरे को नहीं, स्वयं को बदलो। यही ज्ञानी का लक्षण है।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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