रावण अभिमानी

रावण अभिमानी

श्री रामचंद्र जी को पता लगा कि सीता रावण के घर पर है, तो वे सुग्रीव से बोले - चलो! सीता को लिवा लावें।

सुग्रीव ने कहा - प्रभु! रावण कोई साधारण आदमी नहीं है। उससे भिड़ना आग में हाथ डालना है।

श्री रामचंद्र जी ने कहा - कोई बात नहीं। सीता को आपत्ति में पड़ी देखकर हम चुप भी नहीं बैठ सकते। यह कभी भी संभव नहीं है। हमें अपना कर्तव्य अवश्य पालन करना चाहिए। होगा तो वही, जो प्रकृति को मंजूर है।

श्री रामचंद्र जी की सहज सरलता के द्वारा सभी तरह का वातावरण उनके अनुकूल होता चला गया। यद्यपि उनके विपक्ष में रावण बहुत बलवान और शक्तिशाली था, परंतु वह समझता था कि मुझे किसी की क्या परवाह है! मैं अपने भुजबल और बुद्धि से जैसा चाहूँ, वैसा कर सकता हूँ। बस रावण के इस घमंड की वजह से उसकी स्वयं की ही ताकत उसका नाश करने वाली बन गई।

अतः अभिमान करना बड़ा दुर्गुण है।

सुविचार - यदि अपराधी पर क्रोध आता है, तो तुम्हारा सबसे बड़ा अपराध यही है कि तुमने अपने क्रोध पर क्रोध क्यों नहीं किया कि वह आया ही क्यों? तुम्हारा किया गया क्रोध तुम्हारे अब तक किए गए चारों पुरुषार्थों को नष्ट कर देगा।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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