प्रतिज्ञा का फल

प्रतिज्ञा का फल

आचार्य शांति सागर महाराज फलटन की ओर जा रहे थे। रास्ते में एक मच्छीमार नदी में जाल डालने की तैयारी कर रहा था। आचार्य श्री को आता देखकर मच्छीमार हुक्का भरकर उनके सामने बढा़कर पीने का आग्रह करने लगा। आचार्य श्री ने कहा - हुक्का पीना बुरी चीज है। मैं उसे नहीं पीता हूँ।

अभी तक जितने भी साधु मिले थे, वे सब तो बड़े आनंद से पीते थे, किंतु इस अनोखे साधु को देखकर मच्छीमार बहुत प्रभावित हुआ। उसने हाथ जोड़कर साधु से कुछ प्रतिज्ञा देने को कहा। आचार्य श्री ने उसे शराब छोड़ देने को कहा। उसने शराब छोड़ दी।

अब उसके घर में कुछ पैसों की भी बचत होने लगी। कुछ वर्षों में उसके पास अच्छी रकम जमा हो गई। 3 वर्ष बाद उसे फिर महाराज के दर्शन हो गए। उसने आचार्य श्री के चरणों में गिर कर कहा कि महाराज! मैं तो सुखी हो गया और उनसे अपने यहां भोजन करने का आग्रह करने लगा।

तब आचार्य ने कहा - तुम जब मच्छी-मांस खाना छोड़ दोगे, तब तुम्हारे यहां भोजन करेंगे।

उसने ऐसा ही किया। अब उसका जीवन पलट चुका था।

सुविचार - दुर्गुणों के त्याग से आत्मा के परिणामों में निर्मलता आती है। परिणामों की शुद्धि से समाधि उपलब्ध होती है। शुद्ध आत्मा की उपलब्धि ही अनन्त सुख, शिव सुख का कारण है। ये विषय भोग रोग के समान हैं। इनमें आसक्ति न करें।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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