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Showing posts from October, 2024

मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 25 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश

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मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 25 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश ( परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से ) भगवान महावीर का मोक्षकल्याणक दिवस आज दिनांक 25 अक्टूबर, 2022 को हिसार नगर में मुनि श्री विशोक सागर जी महाराज के सान्निध्य में भगवान महावीर का मोक्षकल्याणक दिवस बहुत श्रद्धा-भक्ति व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। बड़े मन्दिर जी, नागोरी गेट में साक्षात् पावापुरी जल-मन्दिर की प्रतिकृति बनाई गई, जिससे हमें उनके मोक्ष-क्षेत्र पर उनके दर्शन करने व लाडू समर्पित करने की अनुभूति हुई। सब भक्तों ने मोक्ष प्राप्ति की कामना करते हुए सूर्य की पहली किरण के साथ ही भगवान के चरणों में लाडू समर्पित किया। भगवान महावीर ने हमें मोक्ष का मार्ग दिखाया और आज से 2548 वर्ष पूर्व मोक्ष प्राप्त किया था। तभी से हर वर्ष उनके अनुयायी इसी उपलक्ष्य में कार्तिक कृष्ण अमावस्या की प्रातःकाल की प्रत्यूष बेला में भगवान का पूजन-अभिषेक करके उनके चरणों में लाडू समर्पित करते हैं और उसी सांयकाल को उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी, इसलिए गौतम गणेश व भगवान के मोक्षलक्ष्मी स्वरूप...

मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 23 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश

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मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 23 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश ( परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से ) ध्यानतेरस बना धनतेरस प्यारे बंधुओं! आज कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी का दिन है। यह 13 प्रकार के चरित्र की याद दिलाने वाला तथा तेरहवें गुणस्थान की महिमा दिखाने वाला पावन पुनीत दिन है। आज के ही दिन अंतिम तीर्थंकर श्री भगवान महावीर स्वामी ने योग निरोध किया था। भगवान ने मोक्ष गमन से तीन दिन पहले समवशरण का त्याग किया और वर्तमान पावापुरी के जलमंदिर में एक ऊँचे स्थान पर, जो उस समय एक टीले के रूप में था, वहाँ ध्यानस्थ होकर बैठ गए। भगवान की वाणी व विहार दोनों थम गए थे। साधक जन भी भगवान का अनुसरण करते हुए इस दिन अलौकिक इच्छा को छोड़कर मोक्ष की इच्छा रखें। इसलिए आचार्य कुंदकुंद देव कहते हैं कि साधु जन रत्नत्रय का फल प्राप्त करें और ऐसी भावना भाएं कि मेरे दुखों का क्षय हो तथा मोक्ष की प्राप्ति हो। हे भगवान! आपके दोनों चरण मेरे हृदय में रहें तथा मेरा हृदय आपके चरणों में लीन रहे और तब तक लीन रहे, जब तक मुझे निर्वाण की प्राप्ति न हो सके। भगवान महावीर कहते हैं कि वह धन धन नहीं है...

कुरल काव्य भाग - 80 (मित्रता के लिए योग्यता की परख)

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तमिल भाषा का महान ग्रंथ कुरल काव्य भाग - 80 मित्रता के लिए योग्यता की परख मूल लेखक - श्री ऐलाचार्य जी पद्यानुवाद एवं टीकाकार - विद्याभूषण पं० श्री गोविन्दराय जैन शास्त्री महरोनी जिला ललितपुर (म. प्र.) आचार्य तिरुवल्लस्वामी ने कुरल काव्य जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने सभी जीवों की आत्मा का उद्धार करने के लिए, आत्मा की उन्नति के लिए कल्याणकारी, हितकारी, श्रेयस्कर उपदेश दिया है। ‘कुरल काव्य’ तमिल भाषा का काव्य ग्रंथ है। कुछ लोग कहते हैं कि इसके रचयिता श्री एलाचार्य जी हैं जिनका अपर नाम कुंदकुंद आचार्य है, लेकिन कुछ लोग इस ग्रंथ को आचार्य तिरुवल्लुवर द्वारा रचित मानते हैं। यह मानवीय आचरण की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला, सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ है। अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्वान पंडित श्री गोविंदराय शास्त्री ने इस ग्रंथ का तमिल भाषा लिपि से संस्कृत भाषा एवं हिंदी पद्य गद्य रूप में रचना कर जनमानस का महान उपकार किया है। परिच्छेद: 80 सख्यार्थं योग्यतापरीक्षा अपरीक्ष्यैव मैत्री चेत् कः प्रमादो ह्यतः परः। भद्राः प्रीतिं विधायादौ न तां मुंचति कर्हिचित्।।1।। इससे ब...

सती सुलोचना और जयकुमार की कहानी

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सती सुलोचना और जयकुमार की कहानी सती सुलोचना भरत क्षेत्र में बनारस नगर के राजा अकम्पन और रानी सुप्रभा की पुत्री थी। उसकी छोटी बहन लक्ष्मीमति थी। सुलोचना लक्ष्मी के समान सबको आनंदित करने वाली तथा कला रूपी गुणों के द्वारा चांदनी के समान सुशोभित हो रही थी। जब सुलोचना विवाह के योग्य हुई तो राजा अकम्पन ने उसके स्वयंवर की सोची। राजा अकम्पन का भाई, जो अवधिज्ञानी विचित्रांगद नाम का देव था, स्वर्ग से आया था। उसने नगर के समीप स्वयंवर के लिए राजभवन बनाकर एक भव्य विशाल मंडप सजाया। सारे देश-विदेश से राजा और राजकुमार एकत्रित हो गए। सब विद्याधर और विद्यापति भी आ गए। सुलोचना भी पूरे सोलह श्रृंगार के साथ सुसज्जित होकर स्वयंवर मंडप में आ गई थी। हस्तिनापुर के राजा सोमप्रभ का पुत्र जयकुमार भी वहाँ आया हुआ था। जयकुमार गुणों की खान, रूपवान तथा महाप्रतापी था। उसके समान पूरे राज भवन में कोई नहीं था। वह जिनेंद्र भगवान का बहुत बड़ा उपासक था। राजकुमारी सुलोचना ने जय कुमार के गले में वरमाला डाल दी। इस बात से अन्य राजाओं का आपस में विरोध शुरू हो गया और वे सब आपस में युद्ध करने लगे। जयकुमार ने अर्ककीर्ति को हरा कर यु...

दुआ और बद् दुआ (शंका समाधान)

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दुआ और बद् दुआ (शंका समाधान) किसी के द्वारा दी गई दुआ और बद् दुआ का हम पर क्या प्रभाव पड़ता है? किसी के द्वारा दी गई दुआ और बद् दुआ का हमारे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। लेकिन कब और कैसे? यह समझना भी बहुत आवश्यक है। यदि हम किसी अच्छे व्यक्ति के प्रति कोई ग़लत काम कर रहे हैं या ग़लत भावना भा रहे हैं कि इसका नाश हो जाए, और उससे प्रभावित होने वाला व्यक्ति हमें बद् दुआ दे रहा है तो हम पर उसकी बद् दुआ का प्रभाव अवश्य पड़ेगा और उसके स्थान पर हम स्वयं ही दुःखों के शिकार हो जाएंगे। इसके विपरीत यदि हम किसी के प्रति कोई बुरा काम या बुरा भाव नहीं कर रहे और फिर भी दूसरा आदमी हमें ईर्ष्यावश बद् दुआ दे रहा है क्योंकि वह हमारी उन्नति को सहन नहीं कर पा रहा, तो उसके द्वारा दी गई बद् दुआ का हम पर कोई असर नहीं होने वाला। वह बद् दुआ हमारे उन्नति के मार्ग की रुकावट नहीं बन सकती। इसी प्रकार यदि हम कोई ग़लत काम कर रहे हैं या किसी के प्रति बुरे भाव कर रहे हैं और कोई व्यक्ति उस बुरे काम में हमारे सहयोग के लिए हमारे लिए सफल होने की दुआ कर रहा है, उस बुरे काम की अनुमोदना कर रहा है, तो उसकी वह दुआ कभी फलीभूत नहीं...

रानी चेलना की कहानी

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रानी चेलना की कहानी राजा चेटक वैशाली नगर के राजा थे। उनकी रानी का नाम सुभद्रा था। उनके 10 पुत्र व सात पुत्रियां थी, जिनमें से एक पुत्री का नाम चेलना था। एक दिन राजा चेटक के दरबार में एक चित्रकार आया। वह अपनी कला में बहुत निपुण और बुद्धिमान था। उसने चेलना से बिना पूछे उसका चित्र बनाया और हुबहू वैसा ही चित्र बना दिया जैसे चेलना ही बैठी हो। उस चित्रकार में एक गुण था कि गुप्त अंग में भी कोई निशान आदि हो, तो वह निशान भी चित्र में बना देता था। चेलना का वह चित्र उसने मंदिर के बाहर वाली दीवार पर लगा दिया। राजा चेटक को पता चल गया कि राजकुमारी चेलना का चित्र मंदिर में लगा है। वह चित्रकार पर बहुत क्रोधित हुआ और उसे नगर से जाने को कह दिया। चित्रकार राजगिरी नगर में चला गया और उसने वहां के मंदिर में वह चित्र लगा दिया। वहां के राजा श्रेणिक ने वह चित्र देखा तो वह उस पर मोहित हो गया और अपनी सुध-बुध खो बैठा। वह न खाता, न पीता, न उसका दरबार में मन लगता। वह बहुत ही कमज़ोर हो गया। अभय कुमार जो उनका बड़ा पुत्र था, उसने राजा श्रेणिक से पूछा कि पिताजी! आपको क्या रोग हो गया है? मैं आपकी मदद करूंगा। राजा श्रेणिक ...