अभिषेक पाठ- अर्थ सहित(2)
अभिषेक पाठ- अर्थ सहित (2)
(आचार्य माघनन्दीकृत)
याः कृत्रिमास्तदितराः प्रतिमा जिनस्य
संस्नापयन्ति पुरुहूत-मुखादयस्ताः।
सद्भाव-लब्धि-समयादि-निमित्त-योगात्।
तत्रैव-मुज्ज्वल-धिया कुसुमं क्षिपामि।।
याः - जो
कृत्रिमाः - बनाए गए हैं
तत् - उससे
इतराः - विपरीत अर्थात् अकृत्रिम
प्रतिमा - प्रतिमा
जिनस्य - जिनेन्द्र भगवान की
संस्नापयन्ति - अभिषेक करते हैं
पुरुहूत - देवों में
मुख - प्रमुख
आदयः - आदि
ताः - वह
सद्भाव - समीचीन भावों से
लब्धि - प्राप्त
समयादि - समय आदि के
निमित्त - निमित्त के
योगात् - योग से
तत्र - वहाँ
एवम् - वैसा ही
उज्ज्वल - प्रकाशित
धिया - बुद्धि वाला होता हुआ
कुसुमम् - पुष्प को
क्षिपामि - क्षेपण करता हूँ
अर्थ - जो जिनेन्द्र भगवान की कृत्रिम प्रतिमाएं और उससे विपरीत अकृत्रिम प्रतिमाएं हैं, उनकी देवों में प्रमुख सौधर्म इन्द्र आदि ने स्थापना की है और अभिषेक किया है। समीचीन अर्थात् सच्चे भावों को व सम्यक् समय आदि को प्राप्त करके इन निमित्तों के योग से यहाँ देवों जैसा ही प्रकाशित, उज्ज्वल बुद्धि वाला होता हुआ मैं पुष्प को क्षेपण करता हूँ।
।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।
सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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