अभिषेक पाठ- अर्थ सहित(1)

 अभिषेक पाठ- अर्थ सहित

(आचार्य माघनन्दीकृत)

श्रीमन्-नतामर-शिरस्तट-रत्नदीप्ति।
तोयाव-भासि-चरणाम्बुज-युग्ममीशम्।
अर्हंतमुन्नत-पद-प्रदमाभिनम्य-
तन्मूर्ति-षूद्यदभिषेक-विधिं करिष्ये।।
श्रीमत् - जो श्री अर्थात् लक्ष्मी के वैभव से शोभायमान हैं
नत - झुके हुए
अमर- देवताओं के
शिरः - सिर के
तट - तट में स्थित अर्थात् मुकुट में लगे हुए
रत्नदीप्ति - रत्नों की दीप्ति अर्थात् कांति को
तोयाव-भासि- बढ़ाने वाले
चरण-अम्बुज - चरण कमल
युग्मम् - दोनों को
ईशम् - भगवान के
अर्हंतम् - अरिहंत 
उन्नतपदम् - मोक्ष रूपी पद को
प्रदम् - देने वाले
अभिनम्य - नमस्कार करके
तन्मूर्तिषु - उन मूर्तियों पर
उद्यत् - उद्यम/तैयार हुआ हूँ
अभिषेक - अभिषेक की
विधिं - क्रिया को
करिष्ये - करने के लिए या करूँगा
अर्थ - जो श्री अर्थात् लक्ष्मी के वैभव से शोभायमान हैं, ऐसे झुके हुए देवताओं के सिर के तट में स्थित अर्थात् मुकुट में लगे हुए रत्नों की दीप्ति को बढ़ाने वाले मोक्ष रूपी पद को देने वाले अरिहंत भगवान के दोनों चरण कमलों को नमस्कार करके उन मूर्तियों पर अभिषेक की क्रिया को करने के लिए तैयार हुआ हूँ अथवा करूँगा।
अथ पौर्वाह्निक/माध्याह्निक/अपराह्निक- देववन्दनाक्रियायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्म-क्षयार्थं भावपूज-वन्दना-स्तव-समेतं श्रीपंचमहागुरुभक्ति-कायोत्सर्गं करोम्यहम्।
अथ - अब 
पौर्वाह्निक - सुबह के काल में
माध्याह्निक - दोपहर के काल में
अपराह्निक - सांय के काल में 
देववन्दनाक्रियायां - देव वन्दना के अंतर्गत
पूर्वाचार्यानुक्रमेण - पूर्वाचार्यों की परम्परा से
सकलकर्म-क्षयार्थं - समस्त कर्मों के क्षय के लिए
भावपूजा- भाव से पूजा के साथ
वन्दना- वन्दना के साथ 
स्तव-समेतं - स्तवन अर्थात् भक्ति के साथ 
श्रीपंचमहागुरुभक्ति-  श्री अर्थात् मोक्ष-लक्ष्मी से युक्त पंच परमेष्ठि की भक्ति करते हुए
कायोत्सर्गं - काया का उत्सर्ग अर्थात् काया के प्रति ममत्व को छोड़ते हुए
करोमि- करता हूँ
अहम्- मैं
अर्थ - अब सुबह के काल में/ दोपहर के काल में/ सांय के काल में मैं देव वन्दना के अंतर्गत पूर्वाचार्यों की परम्परा से समस्त कर्मों के क्षय के लिए भाव से पूजा के साथ, वन्दना के साथ, स्तवन अर्थात् भक्ति के साथ श्री अर्थात् मोक्ष-लक्ष्मी से युक्त पंच परमेष्ठि की भक्ति करते हुए काया का उत्सर्ग अर्थात् काया के प्रति ममत्व को छोड़ते हुए करता हूँ।
(श्वासोच्छवासपूर्वक नौ बार णमोकार मंत्र का स्मरण करें)

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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