अभिषेक पाठ- अर्थ सहित (4)

अभिषेक पाठ- अर्थ सहित (4)
(आचार्य माघनन्दीकृत)  

भृंगार-चामर-सुदर्पण-पीठ-कुम्भः,

तालध्वजातप-निवारक-भूषिताग्रे।

वर्धस्व नन्द जय पाठ-पदावलीभिः,

सिंहासने जिन भवन्त-महं श्रयामि।।

भृंगार - झारी

चामर - चवंर

सुदर्पण - विशेष प्रकार का दर्पण

पीठ - सिंहासन

कुम्भः - कलश

ताल - व्यजन (पंखा)

ध्वजा - ध्वज

आतप - ताप

निवारक - निवारण करने वाला अर्थात् छत्र

भूषित - शोभायमान

अग्रे - सामने

वर्धस्व - बढ़े

 नन्द - आनन्द 

 जय - जयजयकार

 पाठ - पाठ(उच्चारण)

पद - पंक्तियों की

आवलीभिः - समूहों के द्वारा

सिंहासने - सिंहासन पर

 जिन - जिनेन्द्र भगवान

भवन्तम् - आपको 

अहं - मैं

श्रयामि - स्थापित करता हूँ

जिनके सामने झारी, चवंर, विशेष प्रकार का दर्पण, पीठ, कलश, व्यजन (पंखा), घ्वज, ताप निवारण करने वाला अर्थात् छत्र - ये आठ शुभ मंगल द्रव्य शोभायमान हो रहे हैं, आनन्द बढ़ने के भाव को लेकर जयजयकार के पाठ (उच्चारण) की पंक्तियों के समूहों के द्वारा सिंहासन पर, हे जिनेन्द्र भगवान! आपको मैं स्थापित करता हूँ।

वृषभादिसुवीरान्तान् जन्माप्तौ जिष्णुचर्चितान्।

स्थापयाम्यभिषेकाय भक्त्या पीठे महोत्सवम्।।

 वृषभ - वृषभदेव 

आदि - को आदि लेकर

सुवीरान्तान् - शुभ महावीर तक

जन्म - जन्म के

आप्तौ - प्राप्त करने पर

जिष्णु - देवताओं के द्वारा

चर्चितान् - जिनकी पूजा की गई

स्थापयामि - स्थापन करता हूँ

अभिषेकाय - अभिषेक के लिए

भक्त्या - भक्ति पूर्वक

पीठे - सिंहासन पर 

महोत्सवम् - महान् उत्सव मनाते हुए

वृषभदेव आदि से लेकर शुभ महावीर तक जन्म के प्राप्त करने पर भी जिनकी देवताओं के द्वारा पूजा की गई है, मैं उनको अभिषेक के लिए महा उत्सव मनाते हुए भक्ति पूर्वक सिंहासन पर स्थापना करता हूँ। 

ऊँ ह्रीं श्रीधर्मतीर्थाधिनाथ भगवन्निह पाण्डुशिलापीठे 

सिंहासने तिष्ठ तिष्ठ।

हे श्री धर्मतीर्थ के नाथ भगवन्! इस पाण्डुक शिला की पीठ पर रखे सिंहासन पर विराजमान होओ।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏

विनम्र निवेदन

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