तत्त्वार्थसूत्र शंका समाधान भाग-५३

 तत्त्वार्थसूत्र शंका समाधान भाग-५३

तृतीय अध्यायः-

शंका ६८ -विजयार्द्ध पर्वत यह नाम क्यों है? इसके अन्य भी नाम बताइये?

समाधान - चक्रवर्ती के विजयक्षेत्र की अर्द्धसींमा इस पर्वत से निर्धारित होती है। अतः इसका नाम ‘विजयार्द्ध’ सार्थक है। गुण से यह ‘रजताचल’ है अर्थात् चांदी से निर्मित एवं शुभ्र वर्ण है।

शंका ६९-चक्रवर्ती अपनी प्रशस्ति कहाँ लिखते हैं?

समाधान -विजयार्द्ध से उत्तर में और क्षुद्र हिमवान पर्वत से दक्षिण दिशा में गंगा, सिन्धु नदियों तथा म्लेच्छ खण्डों के मध्य में एक सौ योजन ऊँचा, पचास योजन लम्बा जिनमंदिरों से युक्त स्वर्ण व रत्नों से निर्मित एक वृषभगिरि नामक पर्वत है। इस पर्वत पर चक्रवर्ती अपनी प्रशस्ति लिखते हैं।

शंका ७० -विजयार्द्ध व म्लेच्छखंडों में कौन सा काल रहता है?

समाधान -भरतक्षेत्र के म्लेच्छखण्ड में और विजयार्द्ध पर्वत पर चतुर्थकाल के आदि और अन्त के सदृश काल रहता है।

शंका ७१ -विजयार्द्ध पर उत्पन्न मानव क्या कहलाते हैं? उनकी आजीविका क्या है?

समाधान -विजयार्द्ध पर्वत निवासी मानव यद्यपि भरतक्षेत्र के मानवों के समान षट्कर्मों से ही आजीविका करते हैं, परन्तु प्रज्ञप्ति आदि विद्याओं के धारण करने के कारण विद्याधर कहे जाते हैं।

शंका ७२ -हैमवत और हरि क्षेत्र के ये नाम किस कारण हैं?

समाधान -हिमवान् क्षेत्र के समीप होने से हैमवत क्षेत्र कहलाता है। यह हिमवान् महाहिमवान् के तथा पूर्वा पर समुद्रों के मध्य में है। यह जघन्य भोगभूमि है। हरित् वर्ण मनुष्य के योग से हरि क्षेत्र कहलाता है।

हरि का अर्थ ‘सिंह’ है। सिंह का परिणाम शुक्ल है। सिंह के समान शुक्ल परिणाम वाले जीव जहाँ रहते हैं वह हरि क्षेत्र है। यह मध्यम भोगभूमि है।

शंका ७३-विदेह क्षेत्र नाम किस कारण है?

समाधान- विदेह में रहने वाले मानव मुनिवत् निरन्तर विदेह अर्थात् कर्मबन्ध का उच्छेद करने के लिये अथवा देह का नाश करने के लिये निरन्तर प्रयत्न करते हैं और विदेहत्व, अशरीरत्व, सिद्धत्व को प्राप्त कर लेते हैं। अतः विदेही मनुष्यों के सम्बन्ध से क्षेत्र का नाम भी विदेह पड़ गया है।

और भी वहाँ पर जिनधर्म के विनाश का अभाव होने से और सदा धर्म का प्रवर्तन होने से प्रायः करके मनुष्य शरीर रहित होकर सिद्ध होते हैं, इसलिये भी यह क्षेत्र विदेह कहलाता है।

शंका ७४ -रम्यक क्षेत्र की रम्यक संज्ञा क्यों है?

समाधान - रमणीय देश, नदी, वन और पर्वत आदि से युक्त होने के कारण इसे रम्यक क्षेत्र कहते हैं। यह मध्यम भोगभूमि है।

शंका ७५- हैरण्यवत क्षेत्र की हैरण्यवत संज्ञा क्यों है?

समाधान - हिरण्य वाले (सुवर्ण वाले) रुक्मी पर्वत के समीप होने से इसका नाम हैरण्यवत क्षेत्र पड़ा है। यह जघन्य भोगभूमि क्षेत्र है।

शंका ७६-ऐरावत क्षेत्र का ऐरावत नाम कैसे पड़ा है?

समाधान - ऐरावत क्षत्रिय के योग से यह ऐरावतक्षेत्र कहलाता है। रक्ता तथा रक्तोदा नदियों के बीच अयोध्या नगरी है। उस नगरी का शासक ऐरावत राजा था। उसके नाम से क्षेत्र का नाम ऐरावत पड़ा है।

शंका ७७ - उत्तम भोगभूमि कहाँ है ?

समाधान - पूर्व विदेह में उत्तर दिग्वर्ती गजदन्तों के बीच में उत्तरकुरु नाम उत्तम भोगभूमि है। इस उत्तर कुरु में ही जम्बूवृक्ष है। पश्चिम विदेह में दक्षिण दिगवर्ती गजदन्तों के बीच देवकुरु नामक उत्तम भोगभूमि है। देवकुरु के मध्य एक शाल्मलि वृक्ष है।

शंका ७८ - कर्मभूमियाँ कितनी हैं व भोगभूमियाँ कितनी हैं?

समाधान - पंचमेरु संबंधी पाँच भरत, पाँच ऐरावत और पाँच विदेह ये १५ कर्मभूमियाँ हैं। पाँच देवकुरु, पाँच उत्तरकुरु में दस उत्तम भोगभूमि है, पाँच रम्यक व पाँच हरि क्षेत्र में मध्यम भोगभूमि है और पाँच हैमवत व हैरण्य में जघन्य भोगभूमि है। इस प्रकार कुल भोगभूमियाँ तीस हैं।

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏


विनम्र निवेदन

यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।

धन्यवाद

Comments

Popular posts from this blog

बालक और राजा का धैर्य

सती नर्मदा सुंदरी की कहानी (भाग - 2)

मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 18 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश

सती कुसुम श्री (भाग - 11)

सती मृगांक लेखा (भाग - 1)

चौबोली रानी (भाग - 24)

सती मृगा सुंदरी (भाग - 1)

सती मदन मंजरी (भाग - 2)

सती गुणसुंदरी (भाग - 3)

सती मदन मंजरी (भाग - 1)