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Showing posts from August, 2023

परम पूज्य उपाध्याय श्री 108 विशोकसागर जी मुनि महाराज का 49वाँ अवतरण दिवस

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परम पूज्य उपाध्याय श्री 108 विशोकसागर जी मुनि महाराज का 49वाँ अवतरण दिवस ( परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से ) पिछले वर्ष हिसार नगरी में मंगल चातुर्मास के दौरान श्री 108 मुनि श्री विशोकसागर जी महाराज के 48वें अवतरण दिवस पर दिनांक 1 सितम्बर 2022 को दिए गए प्रवचन के कुछ अंश - आज श्रमणमुनि श्री 108 विशोकसागर जी मुनिमहाराज का 48वाँ अवतरण दिवस हिसार नगरी की जैन लाइब्रेरी के विशाल प्रांगण में बहुत धूमधाम से मनाया गया। मुनि श्री के करमपुरा, नई दिल्ली, सोनीपत, चण्डीगढ़, ललितपुर, टीकमगढ़ आदि दूर-दूर से आए भक्तजनों ने भक्तिभाव से महाराज श्री को आहारदान देकर, वन्दन-पूजन व शास्त्र भेंट करके और भजनों के सुमधुर गायन द्वारा अतिशय पुण्यलाभ प्राप्त किया। हिसार नगरी भी महाराज श्री के जन्म दिवस को मना कर धन्य हो गई। महाराज श्री के माता-पिता के दर्शन करके तो ऐसा लग रहा था, जैसे साक्षात् महाराजा सिद्धार्थ और माता त्रिशला के दर्शन का पुण्यलाभ मिल रहा हो। धन्य हैं वे माता-पिता व अन्य परिवारजन जिन्होंने अपना अमूल्य लाल जन-कल्याण के लिए न्यौछावर कर दिया। डॉली जैन व अन्य सदस्यों के द्वारा ‘संजय...

झूठ का फल

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झूठ का फल प्रमोद का मन आज पढ़ने में नहीं लग रहा था। उसके स्कूल की छुट्टी थी, किंतु पिताजी की आज्ञा से विवश होकर वह पढ़ रहा था। आज उसकी इच्छा सिनेमा देखने की थी। प्रमोद सातवीं कक्षा का विद्यार्थी था। वह अच्छा और होनहार लड़का था। पढ़ने में सबसे आगे तो नहीं, पर दूसरे नंबर पर अवश्य रहता था। उसके माता-पिता उसे अपने साथ ही दो-तीन माह बाद पिक्चर दिखाते थे। वे उसे कुछ दिन पहले पिक्चर दिखा कर लौटे थे इसलिए डेढ़ माह तक तो पिक्चर देखने का सवाल ही नहीं था, लेकिन वह नई पिक्चर की इतनी तारीफ़ अपने मित्रों से सुन चुका था कि झूठ बोलकर पिक्चर जाने का मन बना रहा था। इसी वजह से वह कमरे में कुर्सी पर बैठा सामने मेज़ पर किताब रख कर पढ़ने का बहाना करता हुआ पिक्चर जाने की तरकीब निकाल रहा था। शाम होने को थी। सोचते-सोचते उसे एक तरकीब सूझ गई और मन ही मन उसने पूरी योजना बना डाली। वह तुरंत ही किताब बंद करके उठा और रसोई में खाना बनाती माँ के पास पहुंच गया - ‘माँ! माँ! आज बड़ी भूल हो गई मुझसे,’ कहते हुए प्रमोद ने ऐसा मुंह बनाया, जैसे बड़ा भारी नुकसान कर बैठा हो। ‘क्या हो गया बेटा ? ’ - माँ एकदम से घबरा कर बोली। ‘क्या बताऊं, म...

मृत्यु नहीं जीवन

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मृत्यु नहीं जीवन एक महात्मा जी जंगल से गुज़र रहे थे। अचानक सामने डाकुओं का एक दल आ खड़ा हुआ। डाकुओं के सरदार ने कड़क कर कहा कि जो भी माल-असबाब है, निकाल कर रख दो, वरना जान से हाथ धो बैठोगे। महात्मा जी ने कहा कि वह तो भिक्षा पर पलने वाला संन्यासी है। उसके पास माल-असबाब कहाँ से आएगा। डाकुओं के सरदार ने अट्टहास करते हुए कहा कि यदि उसके पास कुछ भी नहीं है, तो उसकी जान तो है। उसे ही ले लेते हैं। महात्मा जी ने कहा कि यह ठीक है। तुम मेरी जान ले लो लेकिन मेरी जान लेने से पहले सामने के दरख़्त से दो पत्ते तोड़ लाओ। डाकू पत्ते तोड़ लाया और महात्मा जी को देने लगा। महात्मा जी ने कहा कि ये पत्ते मुझे नहीं चाहिए। तुम इन्हें वापस पेड़ पर लगा आओ। डाकुओं के सरदार ने विचलित होते हुए कहा कि कहीं टूटे हुए पत्ते भी दोबारा पेड़ पर लग सकते हैं? यह तो प्रकृति के विरुद्ध है। महात्मा जी ने समझाते हुए कहा कि यदि किसी को जीवन नहीं दे सकते, तो कम से कम मृत्यु तो मत दो। महात्मा जी की बातें सुनकर डाकू की आंखें खुल गई और वह अपने साथियों के साथ सदा के लिए दस्युवृत्ति त्याग कर एक नेक इंसान बन गया। सुविचार - तीर्थंकर स्वयंबुद्ध ...

पहले पात्र स्वच्छ करो

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पहले पात्र स्वच्छ करो एक राजा ने एक साधु से कुछ उपदेश देने को कहा। साधु ने कहा - मैं आपके महल में आकर ही उपदेश दूँगा। साधु जी महल में पहुंचे। राजा ने सबसे पहले साधु को भोजन परोसा। साधु ने धूल-मिट्टी से भरा कटोरा राजा के आगे बढ़ा दिया। राजा ने कहा - इस कटोरे में तो धूल-मिट्टी लगी है। इसमें शुद्ध भोजन परोसा गया, तो वह भी अशुद्ध हो जाएगा। तब साधु ने कहा - राजन्! इसी प्रकार आत्मा में जब तक तीव्र कषायों का कचरा भरा है, तब तक उसमें उपदेश कैसे समा सकता है? वह तो व्यर्थ ही चला जाएगा। राजा साधु की बात के मर्म को समझ गया। जब तक हमारा हृदय कुटिलता से भरा हुआ है, तब तक उसमें सरलता की बातें कैसे समा सकती हैं? सरल बनने के लिए मन से सारे दूषित विचार बाहर निकालने पड़ेंगे, तभी उसमें अपनी आत्मा की छवि दिखाई देगी। जैसे गंदले पानी में हम अपना प्रतिबिम्ब नहीं देख सकते, उसे देखने के लिए साफ़ निर्मल पानी होना आवश्यक है। उसी तरह मन में विचारों की गंदगी भरी होने से उसमें अच्छे विचार नहीं समा सकते। उपदेश को ग्रहण करने के लिए सुपात्रता होनी आवश्यक है। मान लो पानी की मिट्टी थोड़ी देर के लिए नीचे बैठ भी जाए, तो ज़रा सी...

दिखावा - दु:ख का कारण

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दिखावा - दु:ख का कारण टीकमगढ़ में एक सुनारिन थी। वह अपने पति से बोली कि हमें 30 तोले के बखौरे बनवा दो। बहुत दिनों से उनकी इस बात पर लड़ाई चल रही थी। सुनार ने क्या किया कि किसी तरह कर्ज़ा लेकर 30 तोले के बखौरे बनवा दिए। उसने बखौरे तो पहन लिए, पर देस में रिवाज था मोटी धोती पहनने का। मोटी धोती पहनने के कारण हाथ-पैर ढके रहते थे। सो किसी ने सुनारिन से न कहा कि बखौरे बहुत अच्छे बने हुए हैं। उसको मन ही मन बहुत गुस्सा आया कि हठ करके तो यह गहना बनवाया था और किसी ने नहीं पूछा। उसके मन में बहुत तेजी से गुस्सा बढ़ा, तो उसने अपने घर में आग लगा दी। जब घर में आग लग गई, तब वह बहुत घबराई। अब तो वह हाथ पसार-पसार कर लोगों को आवाज़ देकर बुलाने लगी कि अरे! दौड़ो, घर जला जा रहा है। बहुत से लोग आने लगे। स्त्री उनसे कहती - अरे! वह रस्सी पड़ी है, वह कुँआ है। पानी खींच कर ले आओ। घर जला जा रहा है। इतने में एक स्त्री ने उसे हाथ में बखौरा पहने देखा। उस स्त्री ने कहा - जीजी! यह बखौरा कब बनवाया था? यह तो बहुत सलोना है। सुनारिन बोली - अरी बहन! अगर पहले ही इतनी बात बोल देती, तो मैं घर में आग क्यों लगाती? तो भैया! सारा जगत दि...

उत्तम आर्जव

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उत्तम आर्जव ( परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से ) ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय।। व्यर्थ है पूजा हमारी, यदि कलुषता भरी मन में, व्यर्थ है शृंगार हमारा, यदि मानवता नहीं तन में। व्यर्थ सारा हो रहा, पुरुषार्थ आज तक का, व्यर्थ है मस्तक झुकाना, यदि सरलता नहीं मन में।। मायाचारी जीव जगत के निशदिन पाप कमाते हैं। बगुला भक्ति दिखा-दिखा कर निशदिन एब छिपाते हैं। आर्जव के बिना धर्म के द्वार में प्रवेश सम्भव नहीं, साधना का आधार बिन्दु है आर्जव धर्म। आर्जव का अर्थ है सरलता, विश्वास तथा वास्तविकता। मन, वचन, काय की एकता का नाम सरलता है। सरल व्यक्ति के साथी देव भी हुआ करते हैं। कपटी-छली व्यक्ति का कोई सहायक नहीं होता। छल व्यक्ति के विश्वास को समाप्त कर देता है। मायाचारी करना स्वयं को धोखा देना है। माया, छल, कपट बहुत बड़े पाप हैं। एक पाप को छिपाने में सैंकड़ों पाप हो जाया करते हैं। कपट अविश्वास को पैदा कर देता है। एक बार टूटे हुए विश्वास का जुड़ना बहुत कठिन होता है। टूटा धागा तो फिर भी जुड़ सकता है, पर उसमें गाँठ आ जाती है। अविश्वसनीय मनुष्य जीता-जागता मुर्दा...

मुकुट सप्तमी पर्व

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मुकुट सप्तमी पर्व ( परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से ) क्षमा में सुख है क्रोध में दुःख। क्षमा में शांति है, क्रोध में अशांति। क्षमा में सहिष्णुता है, क्रोध में असहिष्णुता। क्षमा में प्रेम है, क्रोध में घृणा। क्षमा में शीतलता है, क्रोध में लाभ। क्षमा  में विवेक है, क्रोध में अविवेक। क्षमा में हर्ष है, क्रोध में विषाद। क्षमा में धर्म है, क्रोध में अधर्म। आज का दिन धर्म के रसिक धर्म पिपासुओं के लिए मंगलकारी दिन है। आज के पावन दिन ही भगवान पार्श्वनाथ स्वामी ने मुक्ति को प्राप्त किया था, निर्वाण की यात्रा संपन्न की थी। भगवान पारसनाथ क्षमा की जीवंत मूर्ति थे। श्री पारसनाथ भगवान के पूर्व के दसवें भाव में उनका जीव मरुभूति नाम का मंत्री-पुत्र था। मरुभूति का एक कमठ नाम का भाई था। मरुभूति धर्मात्मा था तो कमठ पापी था। मरुभूति शांत भाव से भलाई करता रहा तो कमठ दुश्मनी करता रहा। एक बार मरुभूति राज्य के कार्य से सेना सहित बाहर गया था। तब पीछे से कमठ ने अपनी भाभी के साथ जबरदस्ती कर उसका शीलभंग कर दिया। राजा अरविन्द को जब यह जानकारी मिली तो उन्होंने कमठ को राज्य से बाहर निकाल दिय...