परम पूज्य उपाध्याय श्री 108 विशोकसागर जी मुनि महाराज का 49वाँ अवतरण दिवस
परम पूज्य उपाध्याय श्री 108 विशोकसागर जी मुनि महाराज का 49वाँ अवतरण दिवस
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से)
पिछले वर्ष हिसार नगरी में मंगल चातुर्मास के दौरान श्री 108 मुनि श्री विशोकसागर जी महाराज के 48वें अवतरण दिवस पर दिनांक 1 सितम्बर 2022 को दिए गए प्रवचन के कुछ अंश -
आज श्रमणमुनि श्री 108 विशोकसागर जी मुनिमहाराज का 48वाँ अवतरण दिवस हिसार नगरी की जैन लाइब्रेरी के विशाल प्रांगण में बहुत धूमधाम से मनाया गया। मुनि श्री के करमपुरा, नई दिल्ली, सोनीपत, चण्डीगढ़, ललितपुर, टीकमगढ़ आदि दूर-दूर से आए भक्तजनों ने भक्तिभाव से महाराज श्री को आहारदान देकर, वन्दन-पूजन व शास्त्र भेंट करके और भजनों के सुमधुर गायन द्वारा अतिशय पुण्यलाभ प्राप्त किया। हिसार नगरी भी महाराज श्री के जन्म दिवस को मना कर धन्य हो गई। महाराज श्री के माता-पिता के दर्शन करके तो ऐसा लग रहा था, जैसे साक्षात् महाराजा सिद्धार्थ और माता त्रिशला के दर्शन का पुण्यलाभ मिल रहा हो। धन्य हैं वे माता-पिता व अन्य परिवारजन जिन्होंने अपना अमूल्य लाल जन-कल्याण के लिए न्यौछावर कर दिया।
डॉली जैन व अन्य सदस्यों के द्वारा ‘संजय भैया से विशोक सागर’ की लघु नाटिका का प्रस्तुतिकरण तो लाजवाब था, जो लोगों की आँखों को नम कर गया और साथ ही जीवन में महान बनाने की प्रक्रिया को भी आत्मसात् करने में सहयोगी बना।
महाराज श्री ने महान बनने के रहस्य बताते हुए कहा कि दुनिया में तीन प्रकार के लोग जन्म लेते हैं। सबसे श्रेष्ठ, उत्कृष्ट, सबसे महानतम लोग वे होते हैं जिनका जन्म भी महानता के साथ होता है, जीवन भी महान कार्यों में व्यतीत होता है और जीवन के अंत में सब कार्यों से कृतकृत्य होकर परमधाम मोक्ष को प्राप्त करते हैं।
हमारे तीर्थंकर, केवली भगवन् इसी श्रेणी में आते हैं। तीर्थंकर भगवान जन्म से ही तीन ज्ञान (मति, श्रुत, अवधिज्ञान) के धारी होते हैं। अतिशय पुण्य के साथ जन्म लेते हैं। ज्यों-ज्यों वे बड़े होते हैं, त्यों-त्यों उनके हृदय में प्राणीमात्र के कल्याण की भावना बलवती होती जाती है। समय आने पर वे जिनदीक्षा धारण करके स्व और पर का कल्याण करने के मार्ग पर चल पड़ते हैं। दीक्षा के साथ ही उन्हें मनःपर्यय ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है और रत्नत्रय की साधना करके उन्हें केवलज्ञान प्रगट होता है। जब तक केवलज्ञान न हो जाए, तब तक के लिए वे मौन हो जाते हैं और स्वानुभूति की साधना में लीन हो जाते हैं।
केवलज्ञान प्रगट होने पर उनका दिव्य समवशरण लगता है और वे प्राणीमात्र के लिए मोक्ष मार्ग का दिव्यध्वनि के द्वारा उपदेश देते हैं। गणधर उनकी वाणी को ग्रहण करते हैं, मुनियों व आचार्यों द्वारा उसे लेखनीबद्ध किया जाता है और सभी भव्य जीव उनके बताए मार्ग पर चल कर अपना कल्याण करते हैं और अपने मनुष्य जीवन को सार्थक बनाते हैं।
दूसरे प्रकार के महान वे होते हैं, जिनका जन्म तो साधारण अवस्था में होता है, लेकिन सद्निमित्त मिलने पर उनके जीवन में एक दिन ऐसा परिवर्तन आता है कि उनका जीवन महान् कार्यों में लग जाता है। वे स्वयं का भी कल्याण करते हैं और दूसरों को भी कल्याण के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। धन्य है उनका जीवन और उनकी साधना। हमने जो यह नाटिका देखी है, उसका उद्देश्य भी यही था कि चाहे आपका जन्म सामान्य घर में हुआ हो, लेकिन आप अपनी साधना से अपने जीवन को महान् बना सकते हैं और संसार का कल्याण कर सकते हैं।
इसी संदर्भ में मुझे एक प्रसंग याद आ रहा है, जो मैं आपके साथ शेयर करना चाहती हूँ। एक महात्मा जी समय-समय पर विद्यालयों में जाकर संस्कारशाला का आयोजन करते थे ताकि बच्चों में अच्छे संस्कारों का बीजारोपण किया जा सके। उन्होंने बच्चों से एक प्रश्न पूछा कि बताओ, हमारे देश में कितने महापुरुष पैदा हुए हैं?
चलो, हम भी महात्मा जी के पास संस्कारशाला में चलते हैं और इसका उत्तर जानने की जिज्ञासा का समाधान करते हैं। महात्मा जी ने जो प्रश्न पूछा वह याद है न!
बताओ, हमारे भारत देश में कितने महापुरुष पैदा हुए हैं?
तो बच्चे बोले कि बस! इतनी सी बात। यह प्रश्न तो बहुत आसान है। किसी ने कहा - महात्मा गांधी, किसी ने सुभाष चंद्र बोस, किसी ने भगत सिंह, किसी ने गुरु नानक देव....।
महात्मा जी बोले कि किसी का भी उत्तर ठीक नहीं है।
हैं! यह क्या? हमने तो ठीक उत्तर दिया था। ग़लत तो नहीं होना चाहिए।
महात्मा जी ने सबके चेहरे देखे और पुनः बोले कि नहीं! किसी का भी उत्तर ठीक नहीं है।
अब तो बच्चों के साथ-साथ अध्यापक भी सोचने लगे कि वे ऐसा क्यों कह रहे हैं?
महात्मा जी ने कहा कि लगता है, तुमने मेरा प्रश्न ध्यान से नहीं सुना। मैंने पूछा है कि बताओ, हमारे भारत देश में कितने महापुरुष पैदा हुए हैं?
बच्चों! आप यह ध्यान में रखना कि कभी-भी कोई महापुरुष पैदा नहीं होता है।
बच्चों में उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।
बच्चों! याद रखना कि हमेशा पैदा तो बच्चा ही होता है, लेकिन उसके महान कार्य ही उसे महापुरुष बनाते हैं। आपको भी महान् पुरुष बनना है तो अच्छे कार्य करने होंगे और बुरे कार्यों से दूर रहना होगा।
आप किसी महापुरुष की जीवनी पढ़ोगे तो उसमें यह पंक्ति अवश्य लिखी हुई मिलेगी कि उनके मन में बचपन से ही देश-भक्ति, जन-कल्याण, भगवद्भक्ति आदि के संस्कारों का बीजारोपण हो गया था। महात्मा गांधी ने भी बचपन में सत्यवादी हरिश्चन्द्र का नाटक देखा और श्रवणकुमार की कहानी पढ़ी तो उन घटनाओं का प्रभाव उनके मन-मस्तिष्क पर सत्य, अहिंसा आदि का संस्कार बन कर स्थापित हो गया जिसने उन्हें महात्मा बना दिया। उनकी महानता के कारण ही भारतीय करेंसी पर उनकी फोटो छापी जाती है।
तो हे भव्य जीवों! कुछ व्यक्ति साधारण से विशेष बन सकते हैं और जीवों को कल्याण का मार्ग दिखा सकते हैं।
तीसरे प्रकार के व्यक्ति ऐसे होते हैं जो जन्म भी सामान्य अवस्था में लेते हैं, जीवन भी सामान्य स्तर पर जीते हैं। उनका उद्देश्य केवल कमाना-खाना और खाकर सो जाना ही होता है। उसमें भी कोई बुराई नहीं है। लेकिन सामान्य अवस्था में जन्म लेकर निकृष्ट कार्य करना, स्वयं को पतन की ओर ले जाना है।
महान व्यक्ति के लिए स्वर्ग व मोक्ष के द्वार खुलते हैं और पतन की ओर जाने वाले व्यक्ति तो अधोगति के ही पात्र बन कर रह जाते हैं। जानते हो न! अधोगति अर्थात् नरक के द्वार में प्रवेश पाने के बाद सात नरकों की सीट उनके लिए रिज़र्व हो जाती है। हमें तो स्वर्ग की और मोक्ष की सीट रिज़र्व करानी है। जैन धर्म में रिश्वतखोरी नहीं चलती कि काम नरक जाने के करो और सीट स्वर्ग की आरक्षित हो जाए। यदि स्वर्ग व मोक्ष की टिकट लेना चाहते हो या पुनः मनुष्य जन्म प्राप्त करके साधना करके अपना कल्याण करना चाहते हो तो अपने जीवन की दिशा बदलो, दशा तो स्वयं ही बदल जाएगी।
।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।
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धन्यवाद।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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