सोलहवें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथ जी (भाग - 9)
सोलहवें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथ जी (भाग - 9 ) भगवान शान्तिनाथ जी के पूर्वभव भगवान शान्तिनाथ जी का छठा पूर्वभव - अच्युत स्वर्ग में इन्द्र अच्युतेन्द्र के रूप में भावी तीर्थंकर के जीव का और प्रतीन्द्र के रूप में गणधर के जीव का पुनः मिलाप एक बार वह मेघनाद मेरुपर्वत के नन्दनवन में विद्या साध रहा था। ठीक उसी समय ‘अच्युतेन्द्र’ भी वहाँ वन्दना करने आए। उन्होंने मेघनाद को देख कर कहा - हे मेघनाद! पूर्वभव में हम दोनों भाई थे। मैं मरकर अच्युतेन्द्र हुआ हूँ और तुझे नरक में जाना पड़ा। वहाँ से निकल कर तू मेघनाद विद्याधर हुआ है। विषयभोगों की तीव्र लालसा से तूने घोर नरक के दुःख भोगे हैं। अब तू सावधान हो जा। इन विषयभोगों को छोड़ और संयम की आराधना कर। तुझे सम्यग्दर्शन तो है ही, अब चारित्र धर्म को अंगीकार कर। तृष्णा की आग विषयभोगों के द्वारा शांत नहीं होती, अपितु चारित्रबल से ही शांत होती है। इसलिए तू आज ही भोगों को तिलांजलि देकर परमेश्वरी जिनदीक्षा धारण कर। यह दीक्षा मोक्ष प्रदान करने वाली है, जिसकी पूजा देव भी करते हैं। अपने भाई अच्युतेन्द्र से चारित्र की अपार महिमा तथा वैराग्य का महान् उपदेश सुन कर ...