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Showing posts from December, 2022

संवेदनशील बनें

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संवेदनशील बनें महावीर अपनी माता त्रिशला के साथ राजोद्यान में टहल रहे थे। उद्यान के बीच में हरी दूब का एक बड़ा सा गोलाकार मंडल था। उसके बीच में संगमरमर का एक क्रीड़ा पर्वत था। जगह-जगह फव्वारे छूट रहे थे। महावीर चुपचाप पेड़-पौधों, फूलों की शोभा को निहारते हुये आगे चले जा रहे थे। माता त्रिशला अपने परिकर के साथ विचरती हुई हरी दूब के विस्तृत मंडल में विहार करने लगी। वे गर्मी की सन्ध्या में नंगे पैरों से उस पर चलकर हरी दूब का शीतल सुख पाना चाहती थी। महावीर मंडल के बाहर खड़े-खड़े उन सबको ताकते रह गये। माँ के बहुत पुकारने के बाद भी उन्होंने दूब के आंगन में पैर नहीं बढ़ाया। माँ से रहा नहीं गया। आप ही दौड़ी आई और बेटे को अपने से सटाकर बोली -  ‘यहां क्यों खड़ा रह गया, बेटा! चल न भीतर, देख तो दूब कैसी शीतल और कोमल है और देख तो वे फव्वारे।' महावीर चुप रहे। बोले नहीं। माँ ने बेटे के गाल और बाल सहला कर पूछा - अरे! चुप क्यों है ? तभी देखा - महावीर के गाल गीले हैं। माँ ने पूछा - बेटा! तुझे यह क्या हो गया ? महावीर ने भोलेपन से जबाब दिया - तुम जब इस नन्हीं कोमल दूब को रौंदती हुई चलती हो न, तो हमको बहु...

बस एक बूंद

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बस एक बूंद नर्मदा के कछार के समीप कान्हा किसली का घना जंगल था। उस जंगल से एक गुरु और शिष्य गुजर रहे थे। शिष्य ने गुरु से पूछा - गुरुजी! आपको यह घना जंगल देखकर कैसा लग रहा है ? गुरु जी ने कहा - बेटा! मुझे यह जंगल देखकर एक कहानी याद आ रही है। एक बार एक यात्री ऐसे ही घने जंगल से गुज़र रहा था। उसी समय एक मोटा हाथी झूमता हुआ उस यात्री के पीछे पड़ गया। उसने पीछे मुड़कर देखा तो घबरा कर खूब तेज दौड़ने लगा। दौड़ते-दौड़ते एक बरगद पर चढ़ गया। हाथी को भी न जाने कैसी धुन सवार हुई कि वह भी पेड़ को सूँड में फंसा कर जोर-जोर से झकझोऱने लगा। यात्री ने बरगद के पाए को पकड़कर रखना ही उचित समझा। इसी घबराहट में नीचे देखा तो बहुत बड़ा कुआं था और उस कुएं में 5 अजगर मुंह फाड़े फुफकार रहे थे। ऊपर नज़र दौड़ाई तो देखता है कि ऊपर सफेद और काले दो चूहे मिलकर उसकी डाली को कुतर रहे हैं। पेड़ के हिलने से मधुमक्खी के छत्ते में से निकलकर मधुमक्खियां उसे काटने लगती हैं। तभी एक विद्याधर वहां से गुज़रता है। विद्याधर की पत्नी, यात्री की दशा देखकर करुणा से भर जाती है और अपने पति से निवेदन करती है कि देखो! यह व्यक्ति कितनी बड़ी विपत्ति में फ...

सेवा का मेवा

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सेवा का मेवा राजदरबार में एक सेवक का पद रिक्त था। साक्षात्कार हेतु पहुंचने वाले अभ्यर्थियों की कतार बहुत लंबी थी। प्रतीक्षा करते-करते बहुत समय बीत गया था लेकिन साक्षात्कार अभी आरंभ ही नहीं हुआ था। गर्मी और तेज़ धूप के कारण सभी अभ्यर्थी अत्यंत उद्विग्न और व्यग्र हो रहे थे। केवल एक युवक ऐसा था जो हाथ में जल का कलश लिए सभी को शीतल जल पिला रहा था। वह कभी किसी का पसीना पोंछता, कभी किसी को पंखा झलता। आख़िर जब दोपहर भी ढलने लगी तो अभ्यर्थियों के सब्र का बांध अब टूटने लगा। आक्रोश और आवेश भरे स्वर में वे चिल्लाने लगे - जब साक्षात्कार ही नहीं लेना था तो हमें यहां बुला कर क्यों परेशान किया गया है ? किसी का चयन ही नहीं करना था तो हमारा समय क्यों बर्बाद किया गया ? सहसा सिंहद्वार के पट खुले। मुख पर सहज मुस्कान लिए महाराज स्वयं उपस्थित थे। वे बोले - साक्षात्कार तो हो चुका और चयन भी। यह कह कर एक हाथ में जल का कलश और दूसरे हाथ में पंखा लिए हुए युवक का कंधा थाम कर वे उसे भीतर ले गए। सुविचार - जिस आत्मा में सम्यग्दर्शन का प्रख़र प्रकाश आविर्भूत हो जाता है, वह आत्मा मोक्ष की उपलब्धि अवश्य करती है। ।। ओऽम् श...

चांदी की थाली

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चांदी की थाली बहुत पुरानी बात है। एक ग्राम में भोले नाम का एक सुनार और लटूरी नाम का एक खगार रहता था। दोनों की आपस में घनिष्ठ मित्रता थी, लेकिन दोनों बहुत शरारती थे। एक दिन भोले सुनार ने अपने मित्र लटूरी को अपने घर निमंत्रण पर बुलाया। उसने अपने मित्र को चांदी की थाली में भोजन कराया। उस थाली को देखकर लटूरी के मन में उसे पाने की लोलुपता चक्कर काटने लगी। उसने सोचा कि रात्रि में देखेंगे। भोजन होने के बाद भोले ने उस थाली को अपनी रसोई में छींके पर रख दिया। वह अपने मित्र लटूरी के मन को समझ गया था कि यह कुछ गड़बड़ करेगा, इसलिए उसने उस थाली में पानी रख दिया कि यदि वह थाली उठाएगा तो पानी गिरने की आवाज होगी और पता चल जाएगा। आधी रात को लटूरी उठा, थाली में अंगुली डालकर देखा तो पानी था। उसने उसमें राख आदि डाल दी। जब पानी सूख गया तो उसने थाली उठाई और घर के पास तालाब में दबाकर वापस आकर सो गया। जब उसके मित्र की नींद खुली तो सबसे पहले उसने छींके पर देखा तो थाली गायब थी। उसने अपने मित्र को देखा तो उसके पैर भीगे हुए थे। वह सारा मामला समझ गया। वह तालाब के पास गया और थाली निकाल लाया। उसे साफ़ करके रख दिया। सुबह...

कहीं देर न हो जाए

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कहीं देर न हो जाए माधुरी अपनी उम्र के 27 वर्ष पूर्ण कर चुकी थी। जैसी उम्र पाई थी वैसी ही उसने काया पाई। बस! पाए न थे तो बड़ा दहेज देने योग्य धनी मां-बाप। बूढ़े पालक 24 घंटे उसके भविष्य के लिए चिंतित रहते थे। उसका ब्याह जो करना था। बीसियों लड़के माधुरी को पसंद कर चुके थे पर जब दहेज का मामला आता तो बात टाल कर चले जाते। मां-बाप एक दूसरे को ढांढस बंधाते। कहते कि कोई बात नहीं, अभी निमित्त नहीं आया है। माधुरी की अनुपस्थिति में उसकी तकदीर को और अपनी ग़रीबी को कोसते-कोसते 1 वर्ष और हाथ से निकल गया। अब तो माधुरी के पिता नारायणदास एक और जहां चिंता से घुलने लगे, वहीं दूसरी ओर शर्म से गडे़-गड़े भी रहने लगे। आख़िरकार वे दहेज के लिए धन कहां से लाएं ? खिन्न होकर सोचते - बड़ा व्यापारी होता तो ब्लैक की कमाई काम आ जाती, अफ़सर होता तो घूस की कमाई से दहेज इकट्ठा कर लेता, नेता होता तो कुर्सी का असर काम बना देता। वह था साधारण आदमी और उसके पास ही असाधारण अभावों से भरी ज़िंदगी। रोज़-रोज़ की झेंप और माधुरी का मौन उन्हें खाए जा रहा था। बेटी की मां शांति बाई ने एक दिन धीरे से नई चर्चा की - ‘माधुरी की नौकरी ही लगवा दी ज...

सती अंजना सुन्दरी

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सती अंजना सुन्दरी सती अंजना सुन्दरी महेन्द्रपुर के राजा महेन्द्र व रानी हृदयवेगा की परम प्यारी पुत्री थी। बालकपन में ही वह सब विद्याओं व कलाओं में निपुण हो गई थी। इसको धर्मशास्त्र की शिक्षा भी पूर्णरूप से दी गई थी। युवती होने पर माता-पिता ने उसका सम्बन्ध आदित्यपुर के राजा प्रह्लाद एवं रानी केतुमती के पुत्र पवनकुमार के साथ निश्चित कर दिया। पवनकुमार ने अंजना के रूप, गुण और शिक्षा की बहुत प्रशंसा सुनी थी। उससे मिलने की इच्छा से वे एक रात्रि को अपने मित्र के साथ विमान द्वारा महेन्द्रपुर को रवाना हुए। जिस समय वे महेन्द्रपुर पहुँचे, अंजना सुन्दरी अपने महल के ऊपर सखियों के साथ बैठी हुई अपना मनोरंजन कर रही थी। पवनकुमार छिप कर उनकी गुप्त वार्ता सुनने लगे। ये सब सखियाँ अंजना के संबंध पर अपना-अपना विचार प्रकट कर रही थी। अभाग्य से उसकी एक मूर्ख सखी ने पवनकुमार के सम्बन्ध पर कुछ असंतोष प्रकट किया। अंजना लज्जावश चुप रही। पवनकुमार इसे अपना अपमान समझकर बहुत दुःखी हुए। उनकी अंजना से अरुचि हो गई। वे मित्र सहित अपने स्थान को लौट आए और अंजना के साथ विवाह न करने की दिल में ठान ली। यह समाचार किसी को मालूम न...

साधु समाज के मैकेनिक हैं

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साधु समाज के मैकेनिक हैं सांझ की सुनहरी किरणें अवसान को प्राप्त हो चुकी हैं। थका हारा प्राची का लाल भानु काले-काले बादलों में झुकता-छुपता क्षितिज की गोद में विश्राम करने चला गया है। घनघोर घटा घिर आई है। तेज़ हवाओं के कारण वृक्ष झुके हुए हैं। वृक्षों के हिलने से वृक्षों की शाखाएं दर्द सहन न कर सकने के कारण चीं-चीं, चूँ-चूँ कहकर कराह रही हैं, किंतु पत्ते आनंद से मस्त होकर नाचते हुए गान कर रहे हैं। शीतल चांद एवं झिलमिल सितारे दुष्ट मेघों के उत्पात से सताए जाने की दहशत के कारण घर से निकलने में हिचकिचा रहे हैं। शशि ने अपनी धवल चादर को धरती मां से ऊपर उठा लिया है। चांद कहता है कि मेरी यह स्वच्छ एवं धवल चादर दुष्ट मेघों के लिए नहीं है। मेघ आपस में युद्ध रत हैं। प्रलयकारी सिंहनाद के साथ चमकीले आग्नेयास्त्रों से एक-दूसरे पर घातक हमले में तत्पर हैं। मूसलाधार बारिश से धरती सहम उठी है। एक सभ्य पुरुष मोटरसाइकिल पर सफ़र करता हुआ अपने प्रिय सुरम्य ग्राम की ओर जा रहा है। उसकी मां उसके साथ है। कच्चा फिसलन भरा रास्ता है। अचानक मोटरसाइकिल बंद हो जाती है। मानो उस व्यक्ति के पैरों के नीचे की धरती खिसक गई हो।...

जैन धर्म का गणित

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जैन धर्म का गणित जैन धर्म का गणित एक बार जरूर पढ़िए  1 - आत्मा 1 होती है 2 - जीव 2 प्रकार के होते हैं 3 - योग 3 होते हैं 4 - गतियां 4 होती हैं 5 - पाप 5 होते हैं 6 - द्रव्य 6 होते हैं 7 - तत्त्व 7 होते हैं 8 - कर्म 8 होते हैं 9 - पदार्थ 9 होते हैं 10 - धर्म 10 होते हैं 11 - प्रतिमा 11 होती हैं 12 - भावना 12 होती हैं 13 - चारित्र 13 होते हैं 14 - गुणस्थान 14 होते हैं 15 - प्रमाद 15 होते हैं 16 - कषाय 16 होते हैं 17 - मरण 17 होते हैं 18 - दोष 18 होते हैं 19 - जीव समास 19 होते हैं 20 - प्ररूपणा 20 होती हैं 21 - औदायिकभाव 21 होते हैं 22 - परिषह 22 होते हैं 23 - वर्गणा 23 होती हैं 24 - तीर्थंकर 24 होते हैं 25 - क्रियाएँ 25 होती हैं 26 - पृथ्वियाँ 26 होती हैं 27 - पंचेंद्रियों के विषय 27 होते हैं 28 - साधू के मूलगुण 28 होते हैं 29 - मनुष्यों की संख्या 29 अंक प्रमाण है 30 - णमोकारमंत्र में 30 व्यंजन होते हैं 31 - प्रथम पटल में 31 पटल हैं 32 - अन्तराय 32 होते हैं 33 - सर्वार्थसिद्धि में 33 सागर आयु होती हैं 34 - अतिशय 34 ...