जैन धर्म का गणित

जैन धर्म का गणित

जैन धर्म का गणित एक बार जरूर पढ़िए 

1 - आत्मा 1 होती है

2 - जीव 2 प्रकार के होते हैं

3 - योग 3 होते हैं

4 - गतियां 4 होती हैं

5 - पाप 5 होते हैं

6 - द्रव्य 6 होते हैं

7 - तत्त्व 7 होते हैं

8 - कर्म 8 होते हैं

9 - पदार्थ 9 होते हैं

10 - धर्म 10 होते हैं

11 - प्रतिमा 11 होती हैं

12 - भावना 12 होती हैं

13 - चारित्र 13 होते हैं

14 - गुणस्थान 14 होते हैं

15 - प्रमाद 15 होते हैं

16 - कषाय 16 होते हैं

17 - मरण 17 होते हैं

18 - दोष 18 होते हैं

19 - जीव समास 19 होते हैं

20 - प्ररूपणा 20 होती हैं

21 - औदायिकभाव 21 होते हैं

22 - परिषह 22 होते हैं

23 - वर्गणा 23 होती हैं

24 - तीर्थंकर 24 होते हैं

25 - क्रियाएँ 25 होती हैं

26 - पृथ्वियाँ 26 होती हैं

27 - पंचेंद्रियों के विषय 27 होते हैं

28 - साधू के मूलगुण 28 होते हैं

29 - मनुष्यों की संख्या 29 अंक प्रमाण है

30 - णमोकारमंत्र में 30 व्यंजन होते हैं

31 - प्रथम पटल में 31 पटल हैं

32 - अन्तराय 32 होते हैं

33 - सर्वार्थसिद्धि में 33 सागर आयु होती हैं

34 - अतिशय 34 होते हैं

35 - णमोकार मंत्र में 35 अक्षर होते हैं

36 - आचार्यों के मूलगुण 36 होते हैं

37 - पाँचवे गुणस्थान में आश्रवद्वार 37 होते हैं

38 - भगवान् पार्श्वनाथ के समोवशरण में 38 हजार आर्यिकाएं थी

39 - तत्वार्थसूत्र के तीसरे अध्याय के 39 सूत्र होते हैं

40 - भवनवासी 40 होते हैं

41 - चार आराधनाओं के 41 प्रभेद होते हैं

42 - तत्वार्थसूत्र के चौथे अध्याय के सूत्र 42 होते हैं

43 - तीसरे गुणस्थान में आस्रवद्वार 43 होते हैं

44 - कल्याणमंदिर के 44 श्लोक होते हैं

45 - मनुष्य लोक का विस्तार 45 लाख योजन होता है

46 - अरिहंतों के मुलगुण 46 होते हैं

47 - घातिया कर्म 47 होते हैं

48 - भक्तामर में 48 श्लोक हैं

49 - नरक पटल 49 होते हैं

50 - सम्यक्त्व के 50 मल होते हैं

51 - इष्टोपदेश के श्लोक 51 होते हैं

52 - नंदीश्वरद्वीप के चैत्याल्य 52 होते हैं

53 - जीव के भाव 53 होते हैं

54 - बडे समाधिमरण के छंद 54 होते हैं

55 - सोलहवें स्वर्ग की देवियों की आयु 55 पल्य होती है

56 - जम्बूद्वीप में नक्षत्र 56 होते हैं

57 - आस्रव के कुल भेद 57 होते हैं

58 - द्रव्यसंग्रह में गाथा 58 होती हैं

59 - सातवें गुणस्थान मे बंधने वाले कर्म 59 होते हैं

60 - श्रावकव्रतां के अतिचार 60 होते हैं

61 - आचार्य, उपाध्याय के कुल मूलगुण 61 होते हैं

62 - पुद्गल विपाकी कर्म 62 होते हैं

63 - शलाका पुरुष 63 होते हैं

64 - ऋद्धियाँ 64 होती हैं

65 - बारहवें गुणस्थान में अनुदय कर्म 65 होते हैं

66 - भगवान महावीर की वाणी नहीं खिरने के दिन 66 थे

67 - पाँचवे गुणस्थान में बंधने वाले कर्म 67 होते हैं

68 - पुण्यकर्म 68 होते हैं

69 - सम्मूर्च्छन तिर्यंचों के 69 भेद होते हैं

70 - ढाई द्वीप की मुख्य नदियाँ 70 होती हैं

71 - अरिहंत, उपाध्याय परमेष्ठी के मूलगुण 71 होते हैं

72 - भगवान महावीर की आयु 72 वर्ष थी

73 - कषायमार्गणा मे सातवें गुणस्थान में उदयकर्म 73 होते हैं

74 - तत्वसार ग्रन्थ की गाथा 74 होती हैं

75 - गुण संक्रमण के कर्म 75 होते हैं

76 - द्वीपकुमार के भवन 76 होते हैं

77 - भगवान श्रेयांसनाथ के गणधर 77 थे

78 - जीव विपाकी कर्म 78 होते हैं

79 - अरिहंत, उपाध्याय, सिद्धपरमेष्ठी के कुल मूलगुण 79 होते हैं

80 - पंचमेरू के चैत्यालय 80 होते हैं

81 - भगवान शान्तिनाथ जी, कुन्थुनाथ जी और पार्श्वनाथ जी के गणधरों की संख्या मिलाकर 81 हो जाती है

82 - अरिहंत और आचार्य परमेष्ठी के कुल मूलगुण 82 होते हैं

83 - तत्वार्थसूत्र के आठवें, नौवें और दसवें अध्याय के सूत्रों की संख्या मिलाकर 83 हो जाती है

84 - णमोकारमन्त्र से 84 लाख मन्त्र निकलते हैं

85 - चौदह गुणस्थान में सत्वकर्म 85 होते हैं

86 - भगवान सुपार्श्वनाथ जी के समवशरण में वादी मुनीराज 86 सौ थे

87 - भगवान शीतलनाथ जी के गणधर 87 थे

88 - भगवान पुष्पदन्त जी के गणधर 88 थे

89 - आचार्य, उपाध्याय और साधु परमेष्ठी के कुल मूलगुण 89 होते हैं

90 - जम्बूद्वीप की कुल नदियाँ 90 हैं

91 - अधोग्रैवेयक के चैताल्य 91 हैं

92 - सामान्य मनुष्य के चौथे गुणस्थान में कर्म उदय 92 होते हैं

93 - नामकर्म के भेद 93 होते हैं

94 - भगवान चन्द्रप्रभ जी के एक कम 94 गणधर थे

95 - भगवान सुपार्श्वनाथ जी के 95 गणधर थे

96 - चक्रवर्ती की 96 हजार रानीयाँ होती हैं

97 - कुभोगभुमियाँ एक कम 97 होती हैं

98 - जीव समास के 98 भेद हैं

99 - सुमेरू पर्वत पृथ्वी से 99 हजार योजन ऊँचा है

100 - इंद्रों की कुल संख्या 100 होती है

ये है जैन धर्म की गिनती।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

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