साधु समाज के मैकेनिक हैं

साधु समाज के मैकेनिक हैं

सांझ की सुनहरी किरणें अवसान को प्राप्त हो चुकी हैं। थका हारा प्राची का लाल भानु काले-काले बादलों में झुकता-छुपता क्षितिज की गोद में विश्राम करने चला गया है। घनघोर घटा घिर आई है। तेज़ हवाओं के कारण वृक्ष झुके हुए हैं। वृक्षों के हिलने से वृक्षों की शाखाएं दर्द सहन न कर सकने के कारण चीं-चीं, चूँ-चूँ कहकर कराह रही हैं, किंतु पत्ते आनंद से मस्त होकर नाचते हुए गान कर रहे हैं।

शीतल चांद एवं झिलमिल सितारे दुष्ट मेघों के उत्पात से सताए जाने की दहशत के कारण घर से निकलने में हिचकिचा रहे हैं। शशि ने अपनी धवल चादर को धरती मां से ऊपर उठा लिया है। चांद कहता है कि मेरी यह स्वच्छ एवं धवल चादर दुष्ट मेघों के लिए नहीं है।

मेघ आपस में युद्ध रत हैं। प्रलयकारी सिंहनाद के साथ चमकीले आग्नेयास्त्रों से एक-दूसरे पर घातक हमले में तत्पर हैं। मूसलाधार बारिश से धरती सहम उठी है।

एक सभ्य पुरुष मोटरसाइकिल पर सफ़र करता हुआ अपने प्रिय सुरम्य ग्राम की ओर जा रहा है। उसकी मां उसके साथ है। कच्चा फिसलन भरा रास्ता है। अचानक मोटरसाइकिल बंद हो जाती है। मानो उस व्यक्ति के पैरों के नीचे की धरती खिसक गई हो। मां बोली - क्या हुआ, बेटा? गाड़ी क्यों रुक गई?

‘मां! कुछ नहीं। मैं अभी ठीक करता हूँ।’ असफलताएं हाथ लगने के बावजूद वह सुधारने की कोशिश में अग्रसर है।

मन में विचार की तरंगें उठ रही हैं। इस जंगली रास्ते में लूटपाट होने एवं जंगली जानवरों के हमले की अनेक घटनाएं हो चुकी हैं। बड़ी मुश्किल में फंसा हूँ। कहीं झोपड़ी भी तो नज़र नहीं आ रही। रात्रि का समय है। मां मेरे साथ है। इस फिसलन युक्त ऊबड़-खाबड़ रास्ते में कोई यात्री अथवा वाहन भी आने से कतराते हैं।

टॉर्च भी परेशानी में साथ नहीं दे रही। हवाएं तेज़ चल रही हैं। वर्षा सांस नहीं ले रही। ठंड से हाथ पत्थर हो रहे हैं। मां यह मच्छर और कीड़े-मकोड़े भी चैन से नहीं बैठने देते। पूरे बदन में खुजली होने से जलन हो रही है।

‘बेटा! ये मच्छर तो हैं ही, पर ये डरावनी आवाजें, जुगनू का प्रकाश, झींगुरों का आलाप; यह शरीर की सहनशक्ति के अनुपात से कई गुनी तीक्ष्ण ध्वनि उत्पन्न कर रहे हैं। इन सब बातों से मेरा शरीर कांप रहा है।’

एक टिमटिमाता प्रकाश निकट आता प्रतीत हुआ, मानो प्यासे को पानी मिल गया हो। मृत्यु के निकट व्यक्ति को जीवनदान-सा मिल गया हो। उसे निकट आता देख कर उसने शांति से परिपूर्ण राहत की सांस ली।

‘देखो, मां! कोई आ रहा है। शायद साइकिल पर सवार है। कहीं लुटेरा तो नहीं!’ मन में दहशत भी उत्पन्न हुई। पास में आकर साइकिल सवार व्यक्ति ने पूछा - ‘बाबूजी! आप क्यों खड़े हैं?

‘भैया! तीन-चार घंटे हो गए। गांव दूर है। मोटरसाइकिल ने जवाब दे दिया है।’

‘बाबूजी! आप घबराते क्यों हो? पहले मां को यह छाता दो। मैं आपकी गाड़ी अभी ठीक करता हूँ।’

‘भैया! कैसे ठीक होगी? मैंने पूरी कोशिश कर ली, परंतु ठीक नहीं हुई। इसे तो मैकेनिक के पास ले जाना पड़ेगा।’

‘बाबूजी! आप डरें नहीं। मैं जानता हूँ कि आप अत्यधिक परेशान हो चुके हैं।’ साइकिल सवार बोला - ‘मैं मैकेनिक हूँ।’

वह सभी पुर्ज़ों की जांच करके निष्कर्ष पर पहुंचा और कहा - ‘बाबू जी! आपने इसमें फिल्टर नहीं लगवाई। फिल्टर न होने के कारण कार्बाेरेटर में कचरा आ गया है, जिससे आपको इतना अधिक परेशान होना पड़ा। यदि आप फिल्टर लगवा लेते तो यह विपत्ति न आती।’

उसने कार्बाेरेटर खोला, कचरा साफ करके गाड़ी स्टार्ट की।

वास्तव में जिस समाज में धर्म रूपी फिल्टर नहीं रहती, उस समाज में दहेज प्रथा, मांसाहार, व्यभिचार, चोरी, अपहरण, हत्या, लूटपाट, नशाखोरी, लड़ाई-झगड़ा रूपी कचरा, आचरण रूपी कार्बाेरेटर में आ जाता है, जिससे समाज रूपी गाड़ी बिगड़ जाती है और समाज के सभ्य नागरिक दुःखी, परेशान, पतित होकर विकास में बाधक बनकर विनाश को प्राप्त होते हैं।

प्रकृति भी उनका साथ नहीं देती है। अकाल, अनावृष्टि, रोग, भूकम्प, तूफ़ान आदि घटनाएं घटित होती हैं। साधु-संत-महात्मा-मुनि आदि महापुरुष समाज के मैकेनिक होते हैं जो अपनी तपस्या, वाणी एवं आचरण से समाज का कचरा साफ करके धर्म रूपी फिल्टर (छलनी) लगाते हैं। तब समाज सुखी हो जाता है और समाज में मानवता की सरिता प्रवाहित होने लगती है।

सुविचार - धर्म का सम्बन्ध आत्मा से है। जो इसे नहीं जानता, वह बाह्य झगड़ों में ही उलझा रहता है।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

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