बस एक बूंद

बस एक बूंद

नर्मदा के कछार के समीप कान्हा किसली का घना जंगल था। उस जंगल से एक गुरु और शिष्य गुजर रहे थे। शिष्य ने गुरु से पूछा - गुरुजी! आपको यह घना जंगल देखकर कैसा लग रहा है? गुरु जी ने कहा - बेटा! मुझे यह जंगल देखकर एक कहानी याद आ रही है। एक बार एक यात्री ऐसे ही घने जंगल से गुज़र रहा था। उसी समय एक मोटा हाथी झूमता हुआ उस यात्री के पीछे पड़ गया। उसने पीछे मुड़कर देखा तो घबरा कर खूब तेज दौड़ने लगा। दौड़ते-दौड़ते एक बरगद पर चढ़ गया। हाथी को भी न जाने कैसी धुन सवार हुई कि वह भी पेड़ को सूँड में फंसा कर जोर-जोर से झकझोऱने लगा।

यात्री ने बरगद के पाए को पकड़कर रखना ही उचित समझा। इसी घबराहट में नीचे देखा तो बहुत बड़ा कुआं था और उस कुएं में 5 अजगर मुंह फाड़े फुफकार रहे थे। ऊपर नज़र दौड़ाई तो देखता है कि ऊपर सफेद और काले दो चूहे मिलकर उसकी डाली को कुतर रहे हैं। पेड़ के हिलने से मधुमक्खी के छत्ते में से निकलकर मधुमक्खियां उसे काटने लगती हैं।

तभी एक विद्याधर वहां से गुज़रता है। विद्याधर की पत्नी, यात्री की दशा देखकर करुणा से भर जाती है और अपने पति से निवेदन करती है कि देखो! यह व्यक्ति कितनी बड़ी विपत्ति में फंसा हुआ है। विद्याधर, यात्री की विपत्ति को देखकर सहयोग के लिए यात्री से अनुरोध करने आते हैं कि चलो! मेरे विमान में बैठ जाओ। मैं इन विपत्तियों से तुम्हें बचाने आया हूँ।

तभी मधुमक्खी के छत्ते से शहद की बूंद टपक कर यात्री के होंठ पर गिरती है। यात्री अपनी जीभ को होंठ पर घुमाता है। उस मधु बिंदु के स्वाद में लीन होकर सारी विपत्ति को भूल जाता है। विद्याधर उसे अपने विमान में बैठा कर सुरक्षित स्थान में पहुंचाने का बार-बार आग्रह करते हैं लेकिन यात्री एक बूंद और चख लेने तक प्रतीक्षा करते हुए उसके विमान में नहीं बैठता।

विद्याधर कई बार लौटकर पुनः पुनः आता है लेकिन यात्री एक बूंद और चख लेने की इच्छा ही व्यक्त करता रहता है। विद्याधर निराश होकर चला जाता है। अंत में हाथी उस पेड़ को इतनी ज़ोर से हिलाता है कि यात्री के हाथ से पेड़ की डाली छूट जाती है और वह नीचे कुएं में गिर जाता है। वहाँ बैठे हुए 5 अजगर मुँह फाड़े उसका इन्तज़ार कर रहे थे। यात्री उनके मुख में जाकर अपना अंत कर लेता है।

कहानी सुना कर गुरु जी बहुत देर तक मौन रहे। शिष्य ने कहानी का प्रयोजन स्पष्ट करने का निवेदन किया। गुरु ने मौन तोड़ते हुए कहा कि वत्स! काल रूपी हाथी, जीवन रूपी वृक्ष को उखाड़ देना चाहता है। दिन-रात रूपी एक काला और एक सफेद - ये दो चूहे जीवन की डाली को काट रहे हैं। परिवारजन रूपी मधुमक्खियाँ छत्ते को हिलाने से हर पल डस रही हैं और मनुष्य का कुएं में गिरना निश्चित है। कुएं में गिरते ही चारों गतियों और निगोद रूपी पाँच अजगर में से कोई एक उसे निगल जाता है। गुरु रूपी विद्याधर उसे तत्वज्ञान कराते हुए इस दुःख से मुक्त करना चाहते हैं किंतु विषय-भोग रूपी मधु-बिंदु के स्वाद की लालसा में यह प्राणी संसार में दुःखी होता रहता है।

यही सबके जीवन का सारांश है।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

Comments

Popular posts from this blog

बालक और राजा का धैर्य

चौबोली रानी (भाग - 24)

सती नर्मदा सुंदरी की कहानी (भाग - 2)

सती कुसुम श्री (भाग - 11)

हम अपने बारे में दूसरे व्यक्ति की नैगेटिव सोच को पोजिटिव सोच में कैसे बदल सकते हैं?

मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 18 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर व उनके चिह्न

बारह भावना (1 - अथिर भावना)

रानी पद्मावती की कहानी (भाग - 4)

चौबोली रानी (भाग - 28)