जैन धर्म के 24 तीर्थंकर व उनके चिह्न
कवि हिमांशु अग्रवाल द्वारा रचित कविता
आदि प्रभु का बैल जो जोते,
खेत वही लहलाता है। (1)
अजितनाथ का हाथी आए,
प्रभु को शीश बिठाता है। (2)
संभव जी का घोड़ा जब भी,
टकटक करके आता है। (3)
अभिनन्दन जी का बंदर फिर,
खूब छलांग लगाता है। (4)
सुमतिनाथ का चकवा जब,
प्रभु के चरणों में आता है। (5)
नयनों में पा जाता है।(6)
सुपार्श्वप्रभु का सतिया जब भी,
सत् का पाठ पढ़ाता है। (7)
चंद्रप्रभु का अर्द्धचन्द्र जब,
मस्तक पर खिल जाता है। (8)
जैन धर्म की जय बोलो......
सत्यकर्म की जय बोलो.......
आदिनाथ से वर्धमान तक,
तीर्थंकर की जय बोलो.........
पुष्पदंत के मगर को देखो,
जल में वो मंडराता है। (9)
शीतलनाथ के कल्पवृक्ष से,
काया कल्प बनाता है। (10)
श्रेयांसनाथ का गेंडा जब,
दरिया से बाहर आता है। (11)
वासुपूज्य का भैंसा उसको,
पल में राह दिखाता है। (12)
विमलनाथ का शूकर सबके
पापकर्म का नाश करे। (13)
अनन्तनाथ का सेही तब तब,
भाग भाग कर काम करे। (14)
धर्मनाथ का वज्र दण्ड जब,
दुष्टों पर चल जाता है। (15)
शांतिनाथ का हिरण भी आकर,
शांति छवि बरसाता है। (16)
जैन धर्म की जय बोलो......
सत्यकर्म की जय बोलो.......
आदिनाथ से वर्धमान तक,
तीर्थंकर की जय बोलो.........
कुंथुनाथ का बकरा जब,
प्रभु के चरणों में आता है। (17)
अरहनाथ की मछली को वो,
जल में ही पा जाता है। (18)
मल्लिनाथ का कलशा जब भी,
गंधोदक बरसाता है। (19)
मुनिसुव्रत का कछुआ भी,
फिर धीर-धीरे आता है। (20)
नमिनाथ का नीलकमल जब,
कीचड़ में खिल जाता है। (21)
नेमिनाथ का शंख बजे तो,
मन सुखमय हो जाता है। (22)
पार्श्वनाथ का सर्प विषैला,
भी अमृत हो जाता है। (23)
वर्धमान का सिंह गाय संग,
पानी पीने आता है। (24)
जैन धर्म की जय बोलो......
सत्यकर्म की जय बोलो.......
आदिनाथ से वर्धमान तक,
तीर्थंकर की जय बोलो.........
।।ओऽम् श्री महावीराय नमः।।
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