णमोकार मंत्र की महिमा
णमोकार मंत्र की महिमा
णमोकार मंत्र मोह-राग-द्वेष का अभाव करने वाला है और सम्यक् ज्ञान कराने वाला है।
इसे नमस्कार मंत्र भी कहा जाता है क्योंकि इसमें अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु; इन पंच परमेष्ठियों को नमन किया गया है। जो जीव इन पाँचों परमेष्ठियों को पहचान कर उनके बताए मार्ग पर चलता है, उसे सच्चा सुख प्राप्त होता है।
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्ज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं।।
लोक में सभी अरिहंतों को नमसकार हो,सब सिद्धों को नमस्कार हो, सब आचार्यों को नमस्कार हो, सब उपाध्यायों को नमस्कार हो और सब साधुओं को नमस्कार हों।
एसो पंच णमोयारो, सव्व पावप्पणासनो।
मंगलाणं च सव्वेसिं पढ़मं होहि मंगलं।।
यह पंच णमोकार मंत्र सब पापों का नाश करने वाला है तथा सब मंगलों में पहला मंगल है, जिसे पढ़ने से जीवन में मंगल ही मंगल होता है।
अरि-हंत अर्थात् जिन्होंने अपने काम, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि शत्रुओं का हनन कर दिया है, उन पर विजय प्राप्त कर ली है, ऐसे अरिहंत परमेष्ठी को मैं नमस्कार करता हूँ।
जो जन्म-मरण के दुःखों से मुक्त होकर सिद्ध हो गए हैं, ऐसे सिद्ध परमेष्ठी को मैं नमस्कार करता हूँ।
जो स्वयं भी सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान व सम्यक् चारित्र का पालन करते हैं और भव्य जनों का भी मोक्ष-मार्ग प्रशस्त करके उन्हें दीक्षा प्रदान करते हैं, जो मुनिसंघ के नायक होते हैं, ऐसे आचार्य परमेष्ठी को मैं नमस्कार करता हूँ।
जो जैन शास्त्रों के ज्ञाता होते हैं और स्वयं सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान व सम्यक् चारित्र रूपी रत्नत्रय का पालन करते हुए संघ में पठन-पाठन कराते हैं, ऐसे उपाध्याय परमेष्ठी को मैं नमस्कार करता हूँ।
लोक में समस्त साधुगण जो अंतरंग व बहिरंग परिग्रह से रहित होकर आत्म-साधना में निरत हैं ऐसे लोक के सभी साधु परमेष्ठी को मैं नमस्कार करता हूँ।
।।ओऽम् श्री महावीराय नमः।।
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