रक्षा - बंधन

रक्षा - बंधन

रक्षा बंधन का अर्थ है - बंधन से रक्षा

क्या हमें किसी ने बांध रखा है?

हाँ, आपने बिल्कुल ठीक सोचा।

हमें कर्मों ने बांध रखा है। इसीलिए हम संसार में घूमते रहते हैं। जन्म-मरण का चक्कर है कि समाप्त होने में ही नहीं आ रहा।

हर रोज़ पूजा में कहते हैं कि अष्ट कर्म को दहन करने के लिए हम धूप समर्पित करते हैं। जैसे धूप जल कर नष्ट हो जाती है और उसका धुआँ अपनी सुगन्धित सुवास फैलाता हुआ ऊपर की ओर उठता चला जाता है और अनन्त आकाश में विलीन हो जाता है।

उसी प्रकार हमारी आत्मा से भी कर्म-मल नष्ट हो जाएं और हमारी आत्मा मोक्ष को प्राप्त करे तथा जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाए।

तभी रक्षा बंधन पर्व सार्थक हो सकेगा।

पर वे आठ कर्म हैं कौन-कौन से?

हाँ, वे हैं - ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, वेदनीय, मोहनीय (ये चारों घातिया कर्म कहलाते हैं जो आत्मा का घात करते हैं) और आयु, नाम, गोत्र व अंतराय (ये अघातिया कर्म हैं जो समय पाकर स्वयमेव नष्ट हो जाते हैं)।

इनमें से मोहनीय कर्म सभी कर्मों का राजा है।

क्या आप इसके विषय में जानना चाहते हैं?

जो कर्म जीव को मदिरापान किए हुए व्यक्ति की तरह मदोन्मत्त करता है उसे मोहनीय कर्म कहते हैं।

आप प्रतिदिन स्तुति में पढ़ते हैं -

मोह नींद के जोर, जगवासी घूमे सदा

कर्म चोर चहुँ ओर, सर्वस्व लूटे सुध नहीं

यह कितने प्रकार का होता है?

यह 2 प्रकार का होता है।

दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय

दर्शन मोहनीय कर्म किसे कहते हैं?

जो कर्म सम्यक-दर्शन में बाधा डाले, उसे दर्शन मोहनीय कर्म का बंध कहते हैं।

यह सच्चे देव, गुरु, शास्त्र पर श्रद्धान नहीं होने देता और हम कुदेव को पूजते रहते हैं, कुगुरु की सेवा करते रहते हैं और कुशास्त्र पर श्रद्धा करते हैं।

कुदेव, कुगुरु व कुशास्त्र की क्या पहचान है?

जो देव, गुरु व शास्त्र मोक्ष का मार्ग न दिखा कर संसार में ही भ्रमण का कारण बनते हैं वे सच्चे देव, सच्चे गुरु व सच्चे शास्त्र नहीं हो सकते।

जो स्वयं वीतरागी हो और हमें भी वही रास्ता दिखाए, वही अनुसरण करने योग्य हैं।

चारित्र मोहनीय कर्म का क्या काम है?

यदि हमें सच्चे देव, गुरु व शास्त्र पर श्रद्धान हो भी जाए तो यह कर्म उस मार्ग पर चलने में बाधा डालता है।

आचार्य अनुभव सागर जी एक उदाहरण के माध्यम से समझाते हुए कहते हैं कि -

मान लो, मैं किसी व्यक्ति से पूछता हूँ कि भैया, मुझे नसिया जी जाना है तो मुझे किस रास्ते से जाना चाहिए? चूंकि वह इसी नगर का रहने वाला है और सभी रास्तों से परिचित है, इसलिए वह बताता है कि महाराज जी, आप यहाँ से मेन सड़क पर जाओगे तो वहाँ एक चौराहा मिलेगा। वहाँ से आप दायीं ओर वाली सड़क पर मुड़ जाना। लगभग 2 किलोमीटर चलने के बाद नसिया जी का मुख्य द्वार दिखाई देने लगेगा और आप कुछ ही मिनटों में वहाँ पहुँच जाओगे।

मैं उससे फिर पूछता हूँ कि यह रास्ता तो बहुत लंबा है।

क्या कोई और छोटा रास्ता नहीं है?

वह बताता है कि हाँ महाराज! फिर आपको मेन सड़क पर न जाकर इस गली में से जाना होगा।

आगे एक छोटी सी पगडण्डी आएगी। इस रास्ते से आप जल्द ही नसिया जी पहुँच जाओगे।

पर मुझे उस व्यक्ति पर विश्वास ही नहीं है। उसकी बातों पर श्रद्धा ही नहीं है तो मैं उसकी बात को सच नहीं मानता।

यह है दर्शन मोहनीय कर्म जो मुझे उस मोक्ष मार्ग को सही नहीं मानने देता।

पर जाना तो है न!

जब मैं अन्य लोगों से पूछता हूँ तो वे भी वही मार्ग बताते हैं।

तब मुझे लगता है कि वह व्यक्ति सही कह रहा था।

चारित्र मोहनीय कर्म का क्या काम है?

मुझे रास्ता तो मालूम हो गया पर चारित्र मोहनीय कर्म उस मार्ग पर चलने से रोकता है।

Main सड़क का मार्ग तो बहुत लम्बा है। तुम आधे रास्ते में ही थक कर बैठ जाओगे। उस रास्ते पर तो कभी न जाना।

और वह पगडण्डी वाला रास्ता?

अरे नहीं! उस पर तो कोई भी नहीं जाता। एकदम सुनसान है। रास्ते में कँटीली झाड़ियां उगी हुई हैं। उबड़-खाबड़ रास्ता है।

वहाँ से जाना तो खतरे से खाली नहीं है।

इस प्रकार चारित्र मोहनीय कर्म हमें उस कठिन डगर पर बढ़ने से रोकता है। यह हमें मोक्ष का मार्ग मालूम होते हुए भी चलने नहीं देता। जब इन कर्मों का आवरण हट जाता है, तभी हम इस पर कदम बढ़ा सकते हैं।

जो इस मोक्ष मार्ग पर चल पड़ते हैं, वे एक दिन अवश्य ही कर्म-बन्धन से मुक्ति पाकर अपनी मंज़िल पर पहुँच जाते हैं।

(आचार्य अनुभव सागर जी महाराज के प्रवचनों से उद्धृत)

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