विषयों में फँसे हुए संसारी जीव की कथा
आराधना-कथा-कोश के आधार पर
विषयों में फँसे हुए संसारी जीव की कथा
संसार समुद्र से पार करने वाले सर्वज्ञ भगवान् को नमस्कार करके संक्षेप से संसारी जीव की दशा दिखालाई जाती है, जो बहुत ही भयावनी है।
एक बार कोई मनुष्य एक भयंकर वन में जा पहुँचा। वहाँ वह एक विकराल सिंह को देखकर डर के मारे भागा। भागते-भागते अचानक वह एक गहरे कुएँ में जा गिरा। गिरते हुए उसके हाथों में एक वृक्ष की जड़ें पड़ गई। उन्हें पकड़कर वह लटक गया। वृक्ष पर शहद का एक छत्ता जमा था। इस मनुष्य के पीछे भागते हुए सिंह के धक्के से वृक्ष हिल गया। वृक्ष के हिल जाने से मधुमक्खियाँ उड़ गई और छत्ते से शहद की बूँदें टप-टप टपक कर उस मनुष्य के मुँह में गिरने लगी। इधर कुएँ में चार भयानक सर्प थे, सो वे उसे डसने के लिए मुँह खोले हुए फुँकार करने लगे और जिन जड़ों को यह अभागा मनुष्य पकड़े हुए था, उन्हें एक काला और एक सफेद, ऐसे दो चूहे काट रहे थे। इस प्रकार के भयानक कष्ट में वह फँसा था, फिर भी उससे छुटकारा पाने का कुछ यत्न न करके वह मूर्ख स्वाद की लोलुपता से उन शहद की बूँदों के लोभ को नहीं रोक सका और इसके विपरीत अधिक-अधिक उनकी इच्छा करने लगा। इसी समय वहाँ से जाता हुआ कोई विद्याधर उस ओर आ निकला। उस मनुष्य की ऐसी कष्टमय दशा देखकर उसे बहुत दया आई। विद्याधर ने उससे कहा - भाई, आओ और इस वायुयान में बैठो। मैं तुम्हें इस कष्ट से निकाल लेता हूँ।
इसके उत्तर में उस अभागे ने कहा - हाँ, ज़रा आप ठहरें, यह शहद की बूंद गिर रही है, इसे लेकर अभी निकलता हूँ। वह बूंद उसके मुख में गिर गई। विद्याधर ने फिर उससे आने को कहा। तब भी इसने वही उत्तर दिया कि हाँ! बस यह बूँद और आ रही है, मैं अभी आया। तात्पर्य यह कि विद्याधर ने उसे बहुत समझाया, पर वह ‘हाँ! इस गिरती हुई बूंद को लेकर आता हूँ,’ इसी आशा में फँसा रहा। लाचार होकर बेचारे विद्याधर को लौट जाना पड़ा।
सच है, झूठे विषयों द्वारा ठगे गये जीवों की अपने हित की ओर कभी प्रीति नहीं होती।
जैसे उस मनुष्य को उपकारी विद्याधर ने कुएँ से निकालना चाहा, पर वह शहद की लोलुपता से अपने हित को नहीं जान सका, ठीक इसी तरह विषयों में फँसा हुआ जीव संसार-रूपी कुएँ में काल रूपी सिंह द्वारा अनेक प्रकार के कष्ट पा रहा है, उसकी आयु रूपी डाली को दिन-रात रूपी दो सफेद और काले चूहे काट रहे हैं, कुएँ के चार सर्प रूपी चार गतियाँ इसे डसने के लिए मुँह खोले खड़ी हैं और गुरु इसे हित का उपदेश दे रहे हैं; तब भी यह अपना हित न करके शहद की बूँद रूपी विषयों में लुब्ध हो रहा है और उनकी ही अधिक-अधिक इच्छा करता जाता है। सच तो यह है कि अभी इसे दुर्गतियों का बहुत दुःख भोगना है। इसलिए सच्चे मार्ग की ओर इसकी दृष्टि नहीं जाती।
इस प्रकार यह संसार, दुःख रूपी भंयकर समुद्र, अनन्त दुःखों का देनेवाला है और विषय-भोग विष मिले भोजन या दुर्जनों के समान कष्ट देने वाला है। इस प्रकार संसार की स्थिति देखकर बुद्धिमानों को जिनेन्द्र-भगवान् के उपदेश किये हुए पवित्र-धर्म को, जो कि अविनाशी, अनन्त सुख का देने वाला है, स्थिर भावों के साथ हृदय में धारण करना उचित है।
संसार रुपी मोह मार्ग से निकलना ही उचित है
ReplyDeleteman is trapped by
ReplyDeleteMaya jaal.
Its not easy to come out, but woth the help feom true tracher and God, we should try