धन्य मुनि की कथा

आराधना-कथा-कोश के आधार पर

धन्य मुनि की कथा

सर्वोच्च धर्म का उपदेश करने वाले श्री जिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार कर धन्य नाम के मुनि की कथा लिखी जाती है, जो पढ़ने या सुनने से सुख प्रदान करने वाली है।

जम्बूद्वीप के पूर्व की ओर बसे हुए विदेहक्षेत्र की प्रसिद्ध राजधानी वीतशोकपुर का राजा अशोक बड़ा ही लोभी राजा हो चुका है। जब फसल काट कर खेतों पर खले किए जाते थे तब वह बेचारे बैलों का मुँह बँधवा दिया करता और रसोई घर में रसोई बनाने वाली स्त्रियों के स्तन बँधवाकर उनके बच्चे को दूध नहीं पीने देता था। सच है, लोभी मनुष्य कौन सा पाप नहीं करते हैं।

एक दिन अशोक के मुँह में कोई बीमारी हो गई। जिससे उसका सारा मुँह आ गया। सिर में भी हजारों फोड़े-फुंसी हो गए। उससे उसे बड़ा कष्ट होने लगा। उसने उस रोग की औषधि बनवाई। वह उसे पीने को ही था कि इतने में अपने चरणों से पृथ्वी को पवित्र करते हुए एक मुनि आहार के लिए इसी ओर आ निकले। भाग्य से ये मुनि भी राजा की तरह इसी महारोग से पीड़ित हो रहे थे। इन तपस्वी मुनि की यह कष्टमय दशा देखकर राजा ने सोचा कि जिस रोग से मैं कष्ट पा रहा हूँ, जान पड़ता है उसी रोग से ये तपोनिधि भी दुःखी हैं, यह सोचकर या दया से प्रेरित होकर राजा जिस दवा को स्वयं पीने वाला था, उसे उसने मुनिराज को पिला दिया और साथ ही उन्हें पथ्य भी दिया। दवा ने बहुत लाभ किया। बारह वर्ष का यह मुनि का महारोग थोड़े ही समय में मिट गया, मुनि भले चंगे हो गए।

अशोक जब मरा तो इस पुण्य के फल से वह अमलकण्ठपुर के राजा निष्ठसेन की रानी नन्दमती के धन्य नाम का सुन्दर गुणवान् पुत्र हुआ। धन्य को एक दिन श्री नेमिनाथ भगवान् के पास धर्म का उपदेश सुनने का मौका मिला। वह भगवान् के द्वारा अपनी उमर बहुत थोड़ी जानकर उसी समय सब माया ममता छोड़ मुनि बन गया। एक दिन वह शहर में भिक्षा के लिए गया, पर पूर्वजन्म के पापकर्म के उदय से उसे भिक्षा न मिली। वह वैसे ही तपोवन में लौट आया।

यहाँ से विहार कर वह तपस्या करता तथा धर्मोपदेश देता हुआ सौरीपुर आकर यमुना के किनारे आतापन योग द्वारा ध्यान करने लगा। इसी ओर यहाँ का राजा शिकार के लिये आया हुआ था, पर आज उसे शिकार न मिला। वह वापिस अपने महल को जा रहा था कि इसी समय इसकी नजर मुनि पर पड़ी। इसने समझ लिया कि बस, शिकार न मिलने का कारण इस नंगे का दिख पड़ना है, इसी ने यह अपशकुन किया है। यह धारणा कर इस पापी राजा ने मुनि को बाणों से खूब बेध दिया। मुनि ने तब शुक्लध्यान की शक्ति से कर्मों का नाश कर सिद्धगति प्राप्त की। सच है, महापुरुषों की धीरता बड़ी ही चकित करने वाली होती है, जिससे महान् कष्ट के समय में भी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

वे धन्यमुनि रोग, शोक, चिन्ता आदि दोषों को नष्ट कर मुझे शाश्वत, कभी नाश न होने वाला सुख दें, जो भव्यजनों का भय मिटाने वाला है, संसार समुद्र से पार करने वाला है, देवों द्वारा पूजा किये जाते हैं, मोक्ष रमणी के स्वामी हैं, ज्ञान के समुद्र हैं और चारित्र-चूड़ामणि हैं।

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