भगवान महावीर स्वामी के जीवन की प्रेरक कथा
भगवान महावीर स्वामी के जीवन की प्रेरक कथा
उन्मत्त हाथी हुआ शांत
राजा सिद्धार्थ की गजशाला में सैकड़ों हाथी थे। एक दिन चारे को लेकर दो हाथी आपस में भिड़ गए। उनमें से एक हाथी उन्मत्त होकर गजशाला से भाग निकला। उसके सामने जो भी आया, वह कुचला गया। उसने सैकड़ों पेड़ उखाड़ दिए, घरों को तहस-नहस कर डाला और आतंक फैलाकर रख दिया।
महाराज सिद्धार्थ के अनेक महावत और सैनिक मिलकर भी उसे वश में नहीं कर सके। वर्द्धमान को यह समाचार मिला तो उन्होंने आतंकित राज्यवासियों को आश्वस्त किया और स्वयं उस हाथी की खोज में चल पड़े।
प्रजा ने चैन की सांस ली, क्योंकि वर्द्धमान की शक्ति पर उसे भरोसा था। वह उनके बल और पराक्रम से भली-भांति परिचित थी। एक स्थान पर हाथी और वर्द्धमान का सामना हो गया। दूर से हाथी चिंघाड़ता हुआ भीषण वेग से दौड़ा चला आ रहा था मानो उन्हें कुचलकर रख देगा। लेकिन उनके ठीक सामने पहुंचकर वह ऐसे रुक गया मानो किसी गाड़ी को आपातकालीन ब्रेक लगाकर रोक दिया गया हो।
महावीर ने उसकी आंखों में झांकते हुए मीठे स्वर में कहा - ‘हे गजराज! शांत हो जाओ! अपने पूर्व जन्मों के फलस्वरूप तुम्हें पशु योनि में जन्म लेना पड़ा। इस जन्म में भी तुम हिंसा का त्याग नहीं करोगे तो अगले जन्म में नर्क की भयंकर पीड़ा सहनी होगी। अभी समय है, अहिंसा का पालन कर तुम अपने भावी जीवन को सुखद बना सकते हो।’
वर्द्धमान के उस उपदेश ने हाथी के अंतर्मन पर प्रहार किया। उसके नेत्रों से आंसू बहने लगे। उसने सूंड उठाकर उनका अभिवादन किया और शांत भाव से गजशाला की ओर लौट गया।
क्या समझे?
जय जिनेन्द्र।
।।ओऽम् श्री महावीराय नमः।।
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