14 गुण स्थान (भाग - 5)

14 गुण स्थान (भाग - 5)

क्रोध कषाय

अपना और पर का घात करने वाले क्रूर परिणामों को क्रोध कहा गया है।

क्रोध की तीव्रता जितनी अधिक होगी, यह जीव के लिए उतना ही घातक सिद्ध होता है।

  1. जो क्रोध पर्वत पर खींची गई रेखा के समान कभी न मिटने वाला होगा, वह अनंत काल तक अनंतानुबंधी कषाय का कारण बनेगा।

  2. जो क्रोध पृथ्वी पर खींची गई रेखा के समान कम समय तक रहेगा, वह 6 माह तक अप्रत्याख्यान कषाय का कारण बनेगा।

  3. जो क्रोध धूल पर खींची गई रेखा के समान शीघ्र ही मिटने वाला होगा, वह 15 दिन तक प्रत्याख्यान कषाय का कारण बनेगा।

  4. जो क्रोध जल पर खींची गई रेखा के समान अगले ही क्षण मिटने वाला होगा, वह अन्तर्मुहूर्त काल तक संज्वलन कषाय का कारण बनेगा।

मान कषाय

स्वयं को अन्य से श्रेष्ठ मानना ही मान है। अपने धन, ज्ञान, रूप, कुल, जाति आदि पर घमंड करना मान कषाय है। जो मनुष्यों में सबसे अधिक पाया जाता है।

मान कषाय की प्रगाढ़ता से ही कर्म-बंध की प्रगाढ़ता सुनिश्चित होती है।

मान कषाय चार प्रकार का हो सकता है -

  1. जो मान पाषाण के समान शक्तिशाली होता है, वह अनंत काल तक अनंतानुबंधी कषाय का कारण बनेगा।

  2. जो मान हड्डी के समान शक्तिशाली होता है, वह 6 माह तक अप्रत्याख्यान कषाय का कारण बनेगा।  

  3. जो मान काष्ठ के समान कम शक्तिशाली होता है, वह 15 दिन तक प्रत्याख्यान कषाय का कारण बनेगा।

  4. जो मान धूल के समान अगले ही क्षण समाप्त हो जाता है, वह अन्तर्मुहूर्त काल तक संज्वलन कषाय का कारण बनेगा।

माया कषाय

किसी के साथ छल-कपट करना मायाचारी कहलाता है। किसी को धोखा देने या विश्वासघात करने से माया कषाय का बंध होता है। यह चार प्रकार से जीव को कष्ट देता है -

  1. यदि इसकी जड़ें बाँस की जड़ों के समान गहरी हैं तो यह अनंत काल तक अनंतानुबंधी कषाय का कारण बनेगा।

  2. यदि इसकी जड़ें मेढा के सींग के समान गहरी हैं तो यह 6 माह तक अप्रत्याख्यान कषाय का कारण बनेगा।

  3. यदि यह गोमूत्र के समान पतला है तो यह 15 दिन तक प्रत्याख्यान कषाय का कारण बनेगा।

  4. यदि यह खुरण (खुर) के समान ऊपरी सतह पर ही है तो यह अन्तर्मुहूर्त काल तक संज्वलन कषाय का कारण बनेगा।

लोभ कषाय

किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति लालच या तृष्णा का भाव रखना ही लोभ कहलाता है। पंचेन्द्रिय के विषयों में आसक्ति रखना या पर (दूसरे की) वस्तु में ममत्व, मोह भाव रखना अथवा अनावश्यक वस्तुओं का संग्रह करना लोभ कषाय के बंध का कारण है।

लोभ चार प्रकार से जीव को बंधन में बांधता है -

  1. यदि इसका रंग किरमी के रंग  के समान गहरा है तो यह अनंत काल तक अनंतानुबंधी कषाय का कारण बनेगा।

  2. यदि इसका रंग काजल/रोगन/ग्रीस के रंग के समान है तो यह 6 माह तक अप्रत्याख्यान कषाय का कारण बनेगा।

  3. यदि इसका रंग कीचड़ के रंग के समान धूसर हैं तो यह 15 दिन तक प्रत्याख्यान कषाय का कारण बनेगा।

  4. यदि इसका रंग सूखी हल्दी के समान हल्का है तो यह अन्तर्मुहूर्त तक संज्वलन कषाय का कारण बनेगा।

नोट

  1. कषाय 10 वें गुणस्थान तक रहती हैं।

  2. कषाय-रहित जीव अरिहंत व सिद्ध होते हैं।

  3. नरक गति में क्रोध, मनुष्य गति में मान, तिर्यंच गति में माया और देव गति में लोभ कषाय मुख्य होती है।

  4. क्रोध को क्षमा से, मान को विनय से, माया को सरलता से और लोभ को संतोष से जीतना चाहिए।

  5. पहले व दूसरे गुणस्थान में 25 कषाय होती हैं।

  6. तीसरे व चौथे गुणस्थान में 21 कषाय होती हैं।

  7. 5 वें गुणस्थान में 17 कषाय पाई जाती हैं।

  8. छठे गुणस्थान में 13 कषाय होती हैं।

  9. 7 वें व 8 वें गुणस्थान में 13 कषाय होती हैं।

  10. 9 वें गुणस्थान में 7 कषाय होती हैं।

  11. 10 वें गुणस्थान में मात्र सूक्ष्म संज्वलन लोभ होता है।

  12. इससे आगे के गुणस्थानों में कषाय नहीं पाई जाती।

क्रमशः

।।ओऽम् श्री महावीराय नमः।।

Comments

  1. बहुत ही सरल भाषा मे समजाया है ।अच्छा है.

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  2. जयजिनेन्द्र , आशा है, इसी प्रकार सभी का सहयोग मिलता रहेगा।🙏🙏🙏

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