मंदिर नियमावली

मंदिर नियमावली

मन्दिरजी में प्रवेश से लेकर अभिषेक और शांति धारा कैसे की जाए पढ़िए इस कविता में … और अंतर्मन को रखें विशाल

निःसही निःसही कह करें प्रवेश, फिर दर्शन विधि पढ़ माथा टेक।

स्तुति पाठ पूजन सामायिक, साइड खड़े हो पढ़े प्रत्येक।

सिर पर टोपी और दुपट्टा, ध्यान रखें यह बात विशेष।

साइड खड़े हो तिलक करें, पूजन फल तब परम विशेष।

मंद ध्वनि में पूजन पाठ, सहयोगी बन सबके आप।

स्वाध्याय तब ठीक से होगा, और ठीक जिनवर का जाप।

छोटा सा जब मंदिर अपना, माइक करें न कभी प्रयोग।

ध्वनि प्रदूषण तभी रुकेगा, और बनेगा पुण्य का योग।

जिन पूजन अभिषेक महान्, पापाचरण तजिए श्रीमान।

कविवर बुधजन कहते हैं, उत्तम फल तब ही बस जान।

कटे फटे न पहनें वस्त्र, नाखून रखें न कभी बड़े।

सभी पुराने रक्षा-सूत्र, छोड़ कलाई रखिये शुद्ध।

थोड़े-थोड़े जल से ही, श्री जिन का अभिषेक करें।

गंधोदक का ठीक विसर्जन, करके सब तब विघ्न हरें।

अभिषेक विधि चल रही हो जब, रोकें परिक्रमा वेदी की तब।

विधि पूर्ण जब हो जावे, गंधोदक माथे तब लगावें।

यह भी निश्चित ध्यान रखें, पूजन जब प्रारंभ करें।

भूमि गिरे न द्रव्य पवित्र, हाथ रकेबी उतनी ही भरें।

जिनवाणी के पन्ने देख, बीच पृष्ठ न चावल एक।

स्वाध्याय के ग्रन्थ प्रत्येक, करें विराजित माथा टेक।

कुर्सी बैठते जो श्रावक, केवल रखें इतना ध्यान।

दीवाल तरफ या पीछे बैठ, निर्बाध पूज कर बने महान।

पहले नित प्रक्षाल करें, तब ही फिर अभिषेक विधि।

बाद न जिन स्पर्श करें, अतिशय तब रिद्धि सिद्धि।

क्रम-क्रम से अभिषेक करें, न झुंड बना अवरोध बनें।

महापुराण को पढ़िएगा, अनुचर प्रभु के इन्द्र बने।

शांतिधारा विधि महान, अनुशासन रखिये श्रीमान।

पुण्यार्जक को करने दें, अनुमोदन भी पुण्य समान।

अंत भावना इतनी बस, अंतर्मन को रखें विशाल।

पंडित और पुजारी जन के, सहयोगी बन बने महान।

‘अनेकांत’ पथ चलकर के, सहधर्मी को गले लगाएं।

जिन शासन के झंडे को फिर, सिद्धालय तक फहराएं।

।।ओऽम् श्री महावीराय नमः।।

Comments

Popular posts from this blog

बालक और राजा का धैर्य

चौबोली रानी (भाग - 24)

सती नर्मदा सुंदरी की कहानी (भाग - 2)

सती कुसुम श्री (भाग - 11)

हम अपने बारे में दूसरे व्यक्ति की नैगेटिव सोच को पोजिटिव सोच में कैसे बदल सकते हैं?

मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 18 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर व उनके चिह्न

बारह भावना (1 - अथिर भावना)

रानी पद्मावती की कहानी (भाग - 4)

चौबोली रानी (भाग - 28)