दसवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ जी (भाग - 2)

दसवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ जी (भाग - 2)

भगवान शीतलनाथ का भद्रपुर में अवतार

उन भावी तीर्थंकर ने स्वर्ग के वैभव के बीच भी असंख्यात वर्षों तक मोक्ष साधना अनवरत चालू रखी। स्वर्गलोक में उन्हें अनेक कल्पवृक्ष प्राप्त थे, पर उनकी वासनाएँ समाप्त हो गई थी। उनको प्राप्त हुए विषयों को भोगने की वृत्ति ही नहीं होती थी। उन्हें तो बाह्य विषयों से रहित चैतन्य का आनन्द भोगने की लालसा रहती थी। आत्मा का पूर्ण आनन्द प्राप्त करने के लिए वे मनुष्य लोक में आना चाहते थे। जब स्वर्ग की आयु 6 मास शेष रह गई, तब उनका मनुष्य लोक में अवतरित होने का समय आ गया।

आज से असंख्यात वर्ष पूर्व भरतक्षेत्र में भद्रपुर (भद्रिलापुर) नाम की नगरी थी। वहाँ दृढ़रथ महाराज और सुनन्दा महारानी के राजमहल में 6 मास से रत्नों की वर्षा होने लगी थी। 6 मास पश्चात् चैत्र कृष्णा अष्टमी के दिन रात्रि के पिछले प्रहर में सुनन्दा महारानी ने अति मंगलसूचक 16 स्वप्न देखे और उसी काल में भगवान शीतलनाथ का जीव स्वर्ग से चय कर उनके उदर में आ गया। धन्य हुए वे माता-पिता और धन्य हुई वह भद्रिलापुर नगरी। असंख्य वर्षों के पश्चात् वह आश्चर्यकारी मंगल घटना घटित होने जा रही थी।

उस तीर्थंकर आत्मा के भरतक्षेत्र में अवतरण होते ही धर्म के विरहकाल का अंत हुआ और धर्म की धारा पुनः प्रवाहित होने लगी। उनके जन्म से पूर्व ही भरतक्षेत्र का धर्मतीर्थ जीवंत हो उठा। देवों ने आकर भगवान का गर्भकल्याणक महोत्सव मनाया और माता-पिता का सम्मान किया।

नौ महीने सुखपूर्वक बीत गए। स्वर्ग के देव जिनकी सुविधाओं का ध्यान रखते हों और सेवा करते हों, उनके पुण्योदय से माता को कोई पीड़ा नहीं हुई। माघ कृष्ण द्वादशी के दिन उत्तम योग नक्षत्र में सुनन्दा माता की कुक्षि से बाल-तीर्थंकर का जन्म हुआ।

भरतक्षेत्र में दसवें तीर्थंकर का जन्म होते ही इन्द्र का आसन कंपायमान होने लगा। वे आनन्दपूर्वक भगवान का जन्मोत्सव मनाने भद्रिलापुर में आ पहुँचे। धूम-धाम से बाल-तीर्थंकर को मेरुपर्वत पर ले जाकर उनका जन्माभिषेक किया गया। भगवान के अवतार से जीवों को शीतलता प्राप्त हुई, इसलिए इन्द्र ने उन्हें ‘शीतलनाथ’ नाम से सम्बोधित करके उनकी स्तुति की।

भगवान शीतलनाथ की आयु एक लाख पूर्व वर्ष थी और ऊँचाई 90 धनुष थी। 25 हज़ार पूर्व वर्ष की आयु में उनका राज्याभिषेक हुआ। प्रतापी तीर्थंकर के राज्य में प्रजा सर्व प्रकार से सुखसम्पन्न और धर्मपरायण थी। 50 हज़ार पूर्व वर्ष तक उन्होंने राज्यभोग किया।

क्रमशः

।।ओऽम् श्री शीतलनाथ जिनेन्द्राय नमः।।

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