दसवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ जी (भाग - 4)

दसवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ जी (भाग - 4)

भगवान शीतलनाथ का तप एवं मोक्ष कल्याणक

भगवान शीतलनाथ निज चैतन्य के शांतरस में लीन होकर परम शीतल हो गए। तीन रत्न, चार ज्ञान, पाँच महाव्रत और छह आवश्यक के धारी वे मुनिराज दो उपवासों के पश्चात् तीसरे दिन अरिष्ट नगरी में पधारे और वहाँ के राजा पुनर्वसु ने नवधा भक्ति से अत्यन्त हर्ष-पूर्वक खीर का आहारदान देकर उन्हें पारणा कराया। प्रथम आहारदान देने वाले उन राजा के महाभाग्य की देवों ने भी सराहना की और आकाश से पुष्पवृष्टि करके दिव्य वाद्यों का उद्घोष किया।

भगवान शीतलनाथ ने तीन वर्ष तक मुनि अवस्था में रह कर परमात्म साधना की और अंत में पौष कृष्णा चतुर्दशी की सायंकाल केवलज्ञान प्रगट करके स्वयं परमात्मा बन गए। देवों व मनुष्यों ने उनके परमात्म-पद प्राप्ति का महान् उत्सव किया। तिर्यंच भी भगवान के दर्शन करके आनन्दित हो उठे। यहाँ तक कि नरक में दो घड़ी के लिए साता का अनुभव होने लगा। उन्हें नरक में भी सम्यक्त्व की अपूर्व शीतलता प्राप्त हुई।

देवों ने धर्मसभा के रूप में अद्भुत समवशरण की रचना की और इन्द्र स्वयं आकर प्रभु की पूजा करके धर्मोपदेश श्रवण करने बैठा। उस धर्मसभा में ‘अनगार’ आदि 81 गणधर थे, जो आश्चर्यकारी सप्त-ऋद्धि के धारक थे। वे सप्त-ऋद्धियाँ थी - बुद्धि, तप, विक्रिया, रस, बल, औषधि और अक्षीण। इनके अतिरिक्त 1400 श्रुतकेवली, 69 हज़ार उपाध्याय, 7200 अवधिज्ञानी, 12 हज़ार विक्रिया लब्धिधारी मुनिवर और 7500 मनःपर्ययज्ञानी थे।

एक साथ हज़ारों केवली भगवन्त और लाखों मुनि भगवन्तों के मेले का यह मंगल दृश्य मुमुक्षु के मन में मोक्षसाधना की ललक जागृत कर रहा था। वहाँ 3 लाख आर्यिकाएँ और पाँच लाख श्रावक-श्राविकाएँ प्रभु द्वारा बताए गए मोक्षमार्ग का उपदेश सुन कर आत्मज्ञान प्राप्त करके अंतरात्मा होकर परमात्म-पद की साधना कर रहे थे।

इस प्रकार लाखों वर्षों तक धर्मोपदेश देकर लाखों जीवों का मिथ्यात्व छुड़ाते हुए व सम्यक्त्व आदि रत्नों की प्राप्ति कराते हुए तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ सम्मेदशिखर पधारे। अब मोक्षपुरी जाने में मात्र एक मास शेष रह गया था। उन्होंने ‘विद्युतवर’ टोंक पर स्थिर योग धारण किया। उनका विहार व वाणी स्थिर हो गई। वे आश्विन शुक्ला अष्टमी के दिन सम्पूर्ण योगनिरोध करके सभी शेष रहे कर्मों का क्षय करके सिद्धालय में सिधारे।

देवों ने दसवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ का मोक्षकल्याणक मनाया। इस प्रकार भव्य जीवों को परम शीतलता प्रदान करने वाले तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ भव्य जीवों के लिए मंगलरूप हों।

।।ओऽम् श्री शीतलनाथ जिनेन्द्राय नमः।।

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