तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ जी (भाग - 12)
तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ जी (भाग - 12)
पार्श्वकुमार का विवाह से इन्कार
राजकुमार पार्श्वकुमार के युवा होने पर माता-पिता ने उनसे विवाह के लिए अनुरोध किया, परन्तु पार्श्वकुमार ने विवाह के लिए अनिच्छा प्रदर्शित की। माता ने कहा - हे कुमार! मैं जानती हूँ कि तुम्हारा अवतार वैराग्य के लिए हुआ है, तुम तीर्थंकर होने वाले हो और इसी कारण मैं स्वयं को धन्य मानती हूँ; परन्तु पूर्वकाल में ऋषभ आदि तीर्थंकरों ने जिस प्रकार विवाह करके अपने माता-पिता की इच्छा पूर्ण की थी, उसी प्रकार तुम भी हमारी इच्छा पूर्ण करो।
तब पार्श्वकुमार गम्भीरतापूर्वक बोले - हे माता! भगवान् ऋषभदेव की बात कुछ और थी। मैं प्रत्येक विषय में उनके बराबर नहीं हूँ। उनकी आयु बहुत लम्बी थी, मेरी तो मात्र सौ वर्ष की है। मुझे तो अल्पकाल में ही संयम धारण करके अपनी आत्मसाधना पूर्ण करनी है। इसलिए मुझे सांसारिक बंधनों में पड़ना उचित नहीं है।
वैरागी राजकुमार की बात सुनकर माता-पिता के नेत्रों में अश्रु छलक आए। कुछ देर तक निराशा में रह कर अंत में उन्होंने समाधान कर लिया। उन्होंने विचार किया - पार्श्वकुमार तो तीर्थंकर बनने के लिए अवतरित हुए हैं। सांसारिक भोगों के लिए उनका अवतार नहीं हुआ है। उन्हें संसार में ढकेलने के स्थान पर हमें उनके मार्ग पर चलना चाहिए।
सर्प युगल का उद्धार
एक बार पार्श्वकुमार अपने मित्र सुभौम कुमार के साथ वन-विहार करने निकले। राजकुमार पार्श्वकुमार को देखकर उनकी प्रजा तो प्रसन्न होती ही थी, वन के पशु-पक्षी भी उनको देखते थे तो आश्चर्यचकित व शांतचित्त होकर देखते ही रह जाते थे कि अहा! यह कोई महान पुरुष है, जिन्हें देख कर हमारा भय दूर हो जाता है और हमारे मन को शांति मिलती है। वन के वृक्ष और पुष्प भी प्रभु को देखकर खिल उठते थे।
पार्श्वकुमार वन में विचरण करते हुए सोच रहे थे कि अब मेरा भी वनविहारी बनने का समय निकट आ गया है। इतने में एक घटना हुई। उन्हें एक तापसी बाबा दिखाई दिया। वह कौन था? यह जानने के लिए हमें उनके पूर्वभवों पर दृष्टिपात करना होगा....।
क्रमशः
।।ओऽम् श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नमः।।
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