तांत्रिक
तांत्रिक
संपादक बहुत दिनों से लेखक की रचनाएं नहीं छाप रहा था। लेखक तमतमाया हुआ संपादक के कार्यालय में पहुंचा। उसने संपादक से जवाब तलब किया। संपादक ने ऊट-पटांग जवाब दिए। लेखक तैश में आ गया और ठेठ देशी साहित्य पर उतर आया।
संपादक ने कहा - बेहतर होगा, आप चुपचाप चले जाएँ, वरना....!
‘वरना क्या? तू मुझे फांसी पर चढ़ा देगा? मैंने बड़े-बड़े संपादकों की ऐसी-तैसी कर दी है। तू तो बेचता क्या है? कल का छोकरा....। कल तक तो मुझसे रचनाएं ठीक कराता था। अब संपादक बन गया तो अपने को लेखकों का मसीहा समझता है’, लेखक भड़का।
संपादक ने चपरासी के जरिए लेखक को अपने केबिन से बाहर कर दिया। लेखक बड़बड़ाता हुआ चला गया। रास्ते में उसकी भेंट एक तांत्रिक से हुई। तांत्रिक को अपनी समस्या बताकर लेखक बोला - आप कोई ऐसी तरकीब निकालें, जिससे वह जल्दी से जल्दी संपादक के पद से हटा दिया जाए।
तांत्रिक ने मंत्र पढ़कर अँगूठी पर फूँक मारी और कहा - आप इस अँगूठी को पहन लीजिए। 10 दिन में आपका काम हो जाएगा।
लेखक ने तांत्रिक को 5 रुपए दिए और अँगूठी पहन कर चला गया। शाम को कार्यालय से लौटते समय संपादक की भेंट उसी तांत्रिक से हुई।
अपनी परेशानी बता कर संपादक ने कहा - कोई ऐसी तरकीब बताओ जिससे उस लेखक की प्रतिभा मुझे प्राप्त हो जाए। कमबख़्त बहुत प्रतिभाशाली है।
तांत्रिक ने मंत्र पढ़ा, अँगूठी पर फूँक मारी और संपादक को देते हुए बोला - इस अँगूठी को पहन लो। 10 दिन के भीतर तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाएगी।
संपादक ने तांत्रिक को 5 रुपए दिए और अँगूठी लेकर विदा ली।
दोनों जहाँ के तहाँ और तांत्रिक की दुकान चल निकली।
क्या हम किसी समस्या का हल आपस में बैठ कर नहीं निकाल सकते? हमें हर कार्य में किसी तीसरी शक्ति की आवश्यकता क्यों पड़ती है? दोनों एक-दूसरे की बात शांत मन से सुनते और कहते, तो दोनों की बात बन जाती।
सुविचार - मिथ्यात्व के साथ लगा हुआ असंयम ही सर्व पापों का मूल है। सर्व दुःखों का हेतु है तथा संयम सम्पूर्ण सुखों का साधन है।
।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।
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