असली हीरा

असली हीरा

एक विदुषी महिला पहाड़ियों में घूम रही थी। एक नदी किनारे उसे बहुत ही कीमती नग मिला। अगले दिन उसकी मुलाकात एक भूखे-प्यासे, थके-हारे मुसाफ़िर से हुई। महिला ने अपना झोला खोला और अपना खाना उसके साथ बाँट कर खा लिया। मुसाफ़िर की नज़र उस हीरे पर पड़ी। उसे वह हीरा बहुत पसंद आया। उसने महिला से याचना की कि वह हीरा उसे दे दे। महिला ने बिना किसी संकोच के हीरा उसे दे दिया।

मुसाफ़िर अपनी किस्मत पर खुश होता हुआ वहाँ से चला गया। वह जानता था कि हीरा बहुत कीमती है और अब उसे ज़िंदगी भर पैसों की कोई कमी नहीं होगी।

कुछ दिनों बाद वही मुसाफ़िर उस विदुषी महिला को ढूंढता हुआ वापिस आया। उसने वह हीरा महिला को वापिस किया और बोला - मैं जानता हूँ कि यह हीरा कितना कीमती है। फिर भी इसे लौटा रहा हूँ। मैं आपके पास इससे भी अधिक कीमती चीज़ पाने की आशा से आया हूँ।

महिला के पास उस समय कुछ भी नहीं था। वह सोच में पड़ गई। महिला के असमंजस भरे मौन को तोड़ते हुए मुसाफ़िर बोला - हो सके तो अपने भीतर का वह बेशकीमती ज्ञान मुझे दे दीजिए, जिसके कारण आपने हीरा मुझे दे दिया था।

वास्तव में असली हीरा तो वह संतोष रूपी धन है, जो मन को शांत रखता है।

सुविचार - महान श्रमण (संत) वह नहीं, जिसके लाखों-करोड़ों अनुयायी हों, महान संत वह है, जो पूर्ण शांत, सरल हो; चाहे उसका अनुसरण करने वाला एक भी अनुयायी न हो।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

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