गोलू की सूझ
गोलू की सूझ
एक बेहद पिछड़े गाँव में गोपाल आसरे नाम का एक लड़का रहता था। माता-पिता का इकलौता पुत्र होने के कारण गोपाल को सभी सुख सुविधाएं प्राप्त थी, फिर भी वह बेहद दुःखी रहता था। कारण कि गाँव में कोई स्कूल नहीं था, जिससे वह आगे नहीं पढ़ पा रहा था। उसने अपने माता-पिता से शहर जाकर आगे पढ़ने की आज्ञा मांगी, किंतु उन्होंने कठोर शब्दों में इंकार कर दिया। इससे गोपाल इतना अधिक दुखी हुआ कि उसने खाना-पीना ही छोड़ दिया था। हार कर उसके पिता ने गोपाल को शहर के एक स्कूल में प्रवेश दिला दिया।
गाँव वालों ने सुना तो कहने लगे - बेचारा गोलू! उसके भाग्य में शहर की धूल ही लिखी थी। पता नहीं क्यों वह गाँव का सुख छोड़कर आँख फोड़ने शहर चला गया। गोपाल का नाम गाँव में बेचारा गोलू हो गया। गोपाल ने छुट्टी में गाँव आने पर सुना तो हंसते-हंसते दोहरा हो गया, पर वह जहाँ से भी निकलता, सभी उसे दयनीय नज़रों से देख कर कहते - बेचारा गोलू शहर में रहकर कैसा कमज़ोर हो गया है? अरे! इसकी तो मति मारी गई है।
जितने मुंह उतनी बातें। इन बातों से परेशान हो गोपाल ने गाँव आना-जाना कम कर दिया। उसने सोचा कि जब वह खूब पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बन जाएगा, तभी गाँव लौटेगा। गोपाल ने छात्रवृत्ति पाते हुए बी.ए. फर्स्ट क्लास में पास किया। इस बार गोपाल की बड़ी इच्छा हुई, गाँव में सबसे मिलकर अपनी सफलता के बारे में बताने की। छुट्टी होने पर वह खुशी-खुशी गाँव पहुँचा।
सूट-बूट में गोपाल जब गाँव पहुंचा तो उसे बड़ा अजनबीपन महसूस हुआ। सब बड़े ही आश्चर्य से देख रहे थे। गोपाल को उनका व्यवहार अजीब तो लगा, पर उसने सबको शिक्षा का महत्व समझाने की कोशिश की। उसने सबको बताया कि वह फर्स्ट क्लास में बी.ए. पास करके अब एम.ए. करने जा रहा है।
गोपाल के मुँह पर तो किसी ने कुछ नहीं कहा, किंतु जैसे ही गोपाल वहाँ से हटा, खुसर-पुसर शुरू हो गई। बेचारा गोलू, इतने बरस शहर की खाक छानी, पर किस्मत तो देखो। बेचारा अभी बी.ए., एम.ए. के फेर में ही है। मैट्रिक भी नहीं कर पाया।
गोपाल ने सुना तो वह सोचने लगा - काश! ये जान पाते कि इस विद्याविहीन गाँव में असली बेचारा कौन है? गाँव वालों की शिक्षा को दूर करने के लिए गोपाल ने शहर जाने का विचार त्याग दिया। गाँव में ही रह कर उसने अपने गाँव वालों को शिक्षित करने की प्रतिज्ञा की। उसके परिश्रम से सारा गाँव शिक्षा की ज्योति से जगमगा उठा।
गोलू की सूझबूझ से गाँव वालों का जीवन ही बदल गया।
सुविचार - पर वस्तु को देख कर यदि राग-द्वेष नहीं हुआ, तो समझ लेना कि आपने जीवन की कला सीख ली है। हमने अपनी आत्मा और उसके ज्ञानगुण की कीमत को जान लिया है।
।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।
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