प्रेम का घोड़ा

प्रेम का घोड़ा

एक व्यापारी को अपने घोड़े से अनंत प्रेम था। एक बार वह घोड़े को लेकर यात्रा पर निकला। रात उसने एक गाँव में बिताई। लोगों की निगाह उसके घोड़े पर पड़ते ही वे उसकी ओर आकर्षित हो जाते थे। घोड़ा अत्यन्त सुंदर और शक्तिशाली था। उसकी चमक, उसकी चाल, उसकी तेजी, उसकी शान और पैरों की टॉप ने लोगों को मोह लिया। जो भी उस घोड़े को देखता, वह ईर्ष्या से भर जाता और सोचता कि यह तो मेरे पास होना चाहिए था। इसके पास क्यों है?

गाँंव के बड़े-बड़े लोगों ने आकर उससे कहा कि जो भी कीमत लेनी है ले लो लेकिन यह घोड़ा हमें दे दो। व्यापारी ने कहा कि इस घोड़े से मुझे अत्यंत गहन प्रेम है और प्रेम कभी भी बेचा नहीं जाता। जो बेचा जाता है, वह प्रेम नहीं है। लोगों का मन ईर्ष्या से भर गया। उन्होंने मन ही मन निश्चय किया कि किसी भी प्रकार से इस घोड़े को प्राप्त करना है।

दूसरे गाँव में पहुँचकर व्यापारी ने घोड़े को रात में एक वृक्ष से बांधा और स्वयं भी वहीं पर लेट गया। सुबह जब वह उठा तो घोड़ा वहाँ पर नहीं था। गाँव के लोग वहाँ पर एकत्रित होकर कहने लगे कि यह तो बहुत दुःख की बात है कि हमारे गाँव में तुम्हारा घोड़ा चोरी चला गया है। यह तो गाँव की बहुत बड़ी बदनामी है। जितना हमें तुम्हारे घोड़े के जाने का दुःख नहीं, उतना हमें गाँव की बदनामी का दुःख है। लेकिन उस व्यापारी के चेहरे पर शिकन नहीं पड़ी।

वह मिठाई की दुकान की ओर उछलते हुए भागा और मिठाई खरीद कर लोगों को बांटते हुए कहने लगा कि भगवान को मेरा बार-बार धन्यवाद! वहाँ पर उपस्थित लोग आश्चर्य में पड़ गए और कहने लगे कि आख़िर ख़ुशी मनाने की बात क्या है? यह तो दुःख का समय है। तुम्हारा घोड़ा गया है और तुम ख़ुशियाँ मना रहे हो?

उसने कहा कि क्या यह उसकी कम कृपा है कि उस समय मैं घोड़े पर नहीं था। मैं नीचे सो रहा था। अन्यथा लोग मुझे भी लेकर भाग जाते। धन्यवाद है उस परमात्मा को! उसने मुझे बचा लिया। जो प्रभु प्रफुल्लता को जन्म देगा, जीवन में ख़ुशियाँ लाएगा, उसे दोष कैसे दिया जा सकता है? व्यवहार में जीवन को देखने का ढंग अच्छा होना चाहिए।

उसने कहा कि घोड़ा चला गया लेकिन मैं सुरक्षित रह गया। उसने गाँव वालों को समझाया कि हम जीवन को किस दृष्टि से देखते हैं, यह हम पर निर्भर करता है। अंधकार के पक्ष से या प्रकाश के पक्ष से? यदि आशा के उज्ज्वल पक्ष से देखेंगे तो जीवन में फूल खिलेंगे, आलोक उतरेगा। हम व्यवहार को नापते हैं पूर्व में किए गए निश्चय से, इसलिए वह हमें गंदा दिखाई पड़ता है। व्यवहार को व्यवहार की तरह देखेंगे तो होठों पर मुस्कुराहट का जन्म होगा। जीवन में परमात्मा की कृपा के फूल, व्यवहार का आदर करने के उपरांत ही खिलते हैं। जीवन में आनन्द का अनुभव होने के लिए चाहिए जीवन में आशा का संचार। उदास नज़रों से आलोक नजर नहीं आता है। उदास मन में तो धर्म भी अपवित्र हो जाता है।

जीवन में उत्कृष्ट उपलब्धि प्राप्त करने के लिए मुस्कुराहट चाहिए, आनंद पूर्ण दृष्टिकोण चाहिए। जब जीवन में उदासी आ जाती है, तब पवित्र धार्मिक स्थान भी मरघट लगने लगते हैं। यदि जीवन में कुछ पाना चाहते हो तो प्रत्येक क्षण हँसता हुआ व्यक्तित्व, सूरज की बरसती हुई रोशनी की तरह मुस्कुराता हुआ चेहरा ही रहना चाहिए।

उस व्यापारी की मुस्कुराहट से, जो गाँव वाले स्वयं को दोषी मान रहे थे, वे भी चिन्ता से मुक्त होकर अपने-अपने काम में लग गए। उसका घोड़ा वास्तव में प्रेम का घोड़ा बन गया।

सुविचार - घर में अपने वृद्ध माँ-बाप को प्रेम से सँभालें, बोझ मान कर नहीं। जो वृद्धाश्रम व जीवदया आदि में धन का तो दान करता है, पर प्रेमपूर्ण वचनों का दान नहीं करता, उसे दयालु कहना दया का अपमान करना है।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

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