सत्य की महिमा
सत्य की महिमा
चेतन राम नाम के लड़के ने चौथी कक्षा की पुस्तक में दोहा पढ़ा था कि -
प्रातः काल की वायु को, सेवन करत सुजान,
ताते मुख छवि बढ़त है, बुद्धि होत बलवान।
तद्नुसार वह प्रतिदिन प्रातः 5.00 बजे पास के बगीचे में घूमने जाया करता था। एक दिन जब वह बगीचे से घर को लौट रहा था तो उसे एक वृक्ष के नीचे पड़ा हुआ एक बटुआ मिला। उसने उसे खोलकर देखा तो उसमें सौ-सौ के नोट दिखे। उसने उनको गिना तो वे 12 नोट निकले। उसने सोचा कि हो न हो यह बटुआ किसी बड़े आदमी का होना चाहिए। वह दौड़ा-दौड़ा उसे अपनी मां के पास ले गया और ख़ुशी-ख़ुशी कहने लगा कि माँ! मुझे एक वृक्ष के नीचे यह बटुआ मिला है, जिसमें सौ-सौ के 12 नोट हैं।
यद्यपि उसके माता-पिता बहुत ग़रीब थे और किसी तरह मेहनत-मजदूरी करके अपना और अपने बच्चों का पालन-पोषण करते थे, किंतु वे बहुत ईमानदार थे। माता ने तुरंत लड़के से कहा कि अपने को दूसरे के पैसे हराम में नहीं चाहिए। उसे आदेश दिया कि जिस वृक्ष के नीचे उसे यह बटुआ मिला था, उसी स्थान पर जाकर बैठना। जिसका यह बटुआ होगा, उसके खोए हुए बटुए को तलाशने के लिए वहाँ आने पर तुम उसे दे देना। माता की आज्ञा अनुसार लड़का जाकर उसी वृक्ष के नीचे अपनी पुस्तक पढ़ते हुए बैठ गया। थोड़ी ही देर में वही सेठ जी, जिनका बटुआ खो गया था, उसी वृक्ष के पास आकर यहां-वहां उसे तलाश रहे थे।
लड़के ने उनसे पूछा - सेठ जी! आप क्या ढूंढ रहे हैं? क्या कुछ गुम हो गया है?
लड़के ने बटुए के विषय में जब सेठ जी से सब जानकारी प्राप्त कर ली और उसे पूर्ण रूप से विश्वास हो गया कि वह बटुआ उन्हीं सेठ जी का है, तो उसने तुरंत ही वह बटुआ उनको दे दिया। किंतु सेठ जी लोभी प्रवृत्ति के थे। उन्होंने बटुआ खोल कर देख लिया कि उसमें उनके सौ-सौ के 12 नोट बराबर हैं, तथापि उन्हें संतोष नहीं हुआ। उन्होंने लड़के की ईमानदारी पर कुछ ध्यान नहीं दिया। उल्टे उस पर आरोप लगाने लगे कि उसने उस बटुए में से सौ-सौ के दो नोट निकाल लिए हैं।
सेठ जी का ऐसा ग़लत आरोप सुनकर पहले तो लड़का कुछ भौंचक्का-सा रह गया। जब कुछ किया नहीं, तो डर काहे का? मन में सोच कर सेठ जी से नम्रतापूर्वक कहने लगा - सेठ जी! आपका यह भ्रम है कि बटुए में सौ-सौ के 12 नोट के बजाय 14 नोट थे। आप मेरे ऊपर झूठा आरोप लगाने से पहले अपने नोटों के बारे में पुनः याद कीजिए कि वास्तव में 14 ही नोट थे अथवा सिर्फ 12 थे। मैं आपसे ही पूछना चाहता हूँ कि यदि मुझे आपके रुपयों का ही लालच होता तो मैं आपका खोया हुआ बटुआ लेकर यहाँ से तुरंत चला नहीं जाता। मैं यहाँ इतनी देर क्यों रुकता?
सेठ जी लड़के की बात पर ध्यान न देते हुए अपनी ही रट लगाते गए और लड़के को धमकाते हुए कहने लगे कि यदि तुम चुराए हुए सौ-सौ के नोट वापस नहीं करोगे, तो इसका बहुत बुरा परिणाम होगा। इतना कहकर समीप के पुलिस थाने में जाकर लड़के के विरुद्ध उन्होंने रिपोर्ट लिखवा दी।
लड़का मन ही मन सोच रहा था कि आजकल लोग लालच में आकर मुझ जैसे ईमानदार पर भी दोष लगाने से नहीं हिचकते। इतना सोच ही रहा था कि सेठ जी पुलिस दारोगा को लेकर वहां आ गए। दारोगा से लड़का कुछ कहना चाहता था, परंतु उसकी बातों पर कोई ध्यान न देते हुए वे उसे पकड़कर थाने ले गए और उसे बंद कर दिया।
दूसरे दिन मामला अदालत में पेश हुआ। मजिस्ट्रेट साहब ने सेठ जी तथा उनके लड़के के बयान दर्ज कर सेठ जी को झूठा तथा लड़के को सच्चा घोषित कर दिया। लड़के की सच्चाई पर उसे बटुआ देते हुए मजिस्ट्रेट साहब ने सेठ जी को फटकार लगाई कि तुम ईमानदार लड़के को चोर बना रहे थे। जाइए, आप अपने 14 सौ-सौ नोट वाले बटुए को तलाश लो। यह आपका बटुआ नहीं है।
सेठ जी मजिस्ट्रेट के सामने गिड़गिड़ाते हुए कहने लगे कि साहब यह 12 सौ रुपए वाला बटुआ मेरा ही है। मैंने लालच में आकर, बटुए में 100-100 के 14 नोट थे, यह मैं आपसे झूठ बोल गया। कृपया मुझे क्षमा प्रदान की जाए एवं मेरा 12 सौ रुपए वाला बटुआ लड़के से मुझे वापस दिला दिया जाए। उसकी सच्चाई पर मैं उसे ₹200 पुरस्कार के रूप में दे दूँगा।
मजिस्ट्रेट साहब ने कहा कि एक बार जो फैसला हो गया, उसे अब बदला नहीं जा सकता। अंत में सेठ जी निराश होकर अपने घर लौट गए और अपने झूठ बोलने पर बहुत पछताते रहे।
सुविचार - इसलिए कहावत प्रसिद्ध है कि लोभ पाप का बाप बखाना।
।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।
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