सुसंस्कारित नारी - संस्कारित समाज की प्रदाता

सुसंस्कारित नारी - संस्कारित समाज की प्रदाता

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से)

नारी के लिए संस्कारित होना बहुत ज़रूरी है और ये संस्कार गर्भ से ही प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थ जैसे भगवान आदिनाथ की माता मरुदेवी पहले स्वयं संस्कारित हुई और फिर गर्भ में स्थित बालक को ऐसे संस्कार दिए कि उसने जन्म लेकर अपनी माँ का नाम देश में ही नहीं, घर-परिवार, राज्य एवं पूरे विश्व में रोशन किया और साधना करके सिद्ध अवस्था प्राप्त की।

जिस प्रकार शरीर में नाड़ी का ठीक चलना ज़रूरी होता है, उसी प्रकार सुसंस्कारित नारी की परिवार में अति आवश्यकता होती है, तभी परिवार एवं समाज उन्नति की राह पर चल सकता है।

नारी को सुसंस्कारित करने की ओर कदम बढ़ाने का प्रथम श्रेय आदिनाथ भगवान को जाता है, जिन्होंने अपनी दोनों पुत्रियों ब्राह्मी और सुंदरी को सुसंस्कार के रूप में अंक विद्या एवं लिपि विद्या प्रदान की थी। उसी का प्रभाव था कि दोनों ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर आर्यिका दीक्षा लेकर भगवान के समवशरण में प्रधान स्थान प्राप्त किया था।

उसी प्रकार हर नारी को सुसंस्कृत होना चाहिए। जिस प्रकार नदी की शोभा जल से होती है, पहाड़ की शोभा वृक्ष से होती है, वृक्ष की शोभा फल से होती है; उसी प्रकार ही परिवार की शोभा सुसंस्कारित नारी से होती है। जिस प्रकार गाड़ी चलाने के लिए कुशल ड्राइवर की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार परिवार व समाज रूपी गाड़ी को सुचारू रूप से चलाने के लिए सुसंस्कारित नारी की आवश्यकता होती है।

जिसका कोई शत्रु नहीं होता उसको ना अरि अर्थात् नारी कहते हैं। हमें कभी नारी की निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि ‘नारी नर की खान है, नारी से ही उत्पन्न होते महावीर भगवान हैं’ और यहाँ तक कि माता के रूप में नारी से ही 24 भगवान रूपी रत्न उत्पन्न हुए हैं।

नारी ही बालक को 100 शिक्षकों की अपेक्षा एक माँ के रूप में सुसंस्कारित करती है। उसे बालक का प्रथम गुरु माना गया है और नारी के सुसंस्कार रागी व्यक्ति को भी वैरागी बना देते हैं।

नारी की अहम भूमिका बताई गई है, चाहे वह घर में पुत्री के रूप में हो या बहन के रूप में, मां के रूप में हो या स्त्री के रूप में, हर प्रकार से वह परिवार एवं समाज में, नगर एवं देश में और कर्म व धर्म क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाती है। नारी की भूमिका चाहे गृहस्थी में हो, चाहे मुनि धर्म में हो लेकिन अति आवश्यक होती है। नारी का सुसंस्कृत होना आवश्यक है क्योंकि बिना सुसंस्कार के नारी के बिना परिवार नहीं चल सकता और भगवान के समवशरण में भी दूसरा स्थान आर्यिकाओं का होता है।

कहा भी गया है - ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात् जहां नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता भी विचरण करते हैं और जहां नारी की निंदा और अपमान होता है, वहाँ परिवार नष्ट हो जाते हैं। वहाँ नर्क के समान वातावरण हो जाता है। यह सब संस्कारों का ही प्रभाव है। नारी ने ‘न अरि’ से आज नागिन का रूप ले लिया है जो अपने गर्भ में पल रहे अपने बच्चे पर आरी चलवा कर मरवा रही है जिसने पूरे नारी समाज को कलंकित कर दिया है। आज ज़रूरत है नारी समाज को सुसंस्कृत होने की जिससे वह पहले की तरह पूजनीय स्थान प्राप्त कर सके, तभी वह परिवार व समाज को सुसंस्कार दे सकती है।

स्त्री यदि बहन है तो प्यार का दर्पण है,

स्त्री यदि पत्नी है तो, खुद का समर्पण है,

स्त्री यदि भाभी है तो, भावना का भंडार है,

मामी, मौसी, बुआ है तो, स्नेह का सत्कार है,

स्त्री यदि काकी है तो, कर्तव्य की साधना है,

स्त्री यदि साथी है तो, सुख की सतत सम्भावना है,

स्त्री यदि मां है तो साक्षात् परमात्मा है।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।

धन्यवाद।

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏

Comments

Popular posts from this blog

बालक और राजा का धैर्य

चौबोली रानी (भाग - 24)

सती नर्मदा सुंदरी की कहानी (भाग - 2)

सती कुसुम श्री (भाग - 11)

हम अपने बारे में दूसरे व्यक्ति की नैगेटिव सोच को पोजिटिव सोच में कैसे बदल सकते हैं?

मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 18 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर व उनके चिह्न

बारह भावना (1 - अथिर भावना)

रानी पद्मावती की कहानी (भाग - 4)

चौबोली रानी (भाग - 28)