आठ पापों का घड़ा

आठ पापों का घड़ा

एक बार कवि कालिदास बाजार में घूमने निकले। एक स्त्री एक घड़ा और कुछ कटोरियाँ लेकर बैठी थी ग्राहकों के इंतजार में। कविराज को कौतूहल हुआ कि यह क्या बेचती है। बस! उन्होंने उसके पास जाकर पूछा - बहिन! तुम क्या बेचती हो?

उसने कहा - मैं पाप बेचती हूँ। मैं सब लोगों से कहती हूँ कि मेरे पास सब तरह के पाप हैं। जो मर्जी हो, ले लो। लोग भी चाव पूर्वक ले जाते हैं।

कालीदास उलझन में पड़ गए। उन्होंने पूछा - घड़े में कैसे पाप भरे हैं?

स्त्री ने बताना आरम्भ किया - बुद्धि नाश, पागलपन, लड़ाई-झगड़े, बेहोशी, विवेक का नाश, सद्गुण का नाश आदि। इनसे सुखों का अंत हो जाता है और सारा परिवार दुःखमय संकट के जीवन व्यतीत करता है और जीवन के अंत में नरक ले जाने वाले तमाम दुष्ट कृत्य भोगता है।

कालीदास बोले - अरी बहिन! इतने सारे पाप बताती हो! साफ-साफ बताओ कि आखिर इस घड़े में क्या है?

स्त्री ने बताया - देखो! इसमें शराब है जो सब पापों की जननी है। जो इसे पीते हैं, वे इन सभी दुष्कार्यों को करने लग जाते हैं और अंत में दुःखों को भोग कर नरक की यातनाएँ सहते हैं।

कवि कालिदास उस महिला की चतुराई की सारी बातें सुनकर असमंजस में पड़ गए कि लोगों को शराब पीने से कैसे रोका जाए?

वास्तव में शराब पीकर मानव अपना पतन स्वयं कर लेता है। सबसे पहले बुद्धि का नाश होता है और दिमाग में पागलपन छाने लगता है। अपने मन की इच्छा पूरी न होने पर घरवालों से और पड़ोसियों से लड़ाई-झगड़ा करने लगता है या बेहोश होकर किसी गंदी नाली में पड़ा रहता है। अच्छा-बुरा सोचने का विवेक नहीं रहता, जिससे उसके अच्छे गुणों का भी नाश हो जाता है। हर व्यक्ति में बुराइयों के साथ-साथ कुछ अच्छाइयां भी अवश्य होती हैं, लेकिन शराब पीकर उसके सभी सद्गुण नष्ट हो जाते हैं। फिर हवा उसके जीवन से सारे सुख के बादलों को उड़ा कर ले जाती है और अपमान का जीवन जीते-जीते वह नरक में जा गिरता है।

भगवान ने हमें अमूल्य जीवन दिया है, अतः युवावस्था से ही धर्म के मर्म को जान लेना चाहिए ताकि वृद्धावस्था सुख और शांति से व्यतीत हो सके और अगले जन्म में हमें स्वर्ग की प्राप्ति हो।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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