साहस का सम्मान

साहस का सम्मान

राजा जनक की सवारी गुजर रही थी। राज कर्मचारी उनकी सुविधा के लिए रास्ते से राहगीरों को हटा रहे थे। इससे लोगों को काफी कठिनाई हो रही थी। लोगों को अपने आवश्यक कार्य छोड़कर रुकना पड़ रहा था।

उसी रास्ते से अष्टावक्र भी कहीं जा रहे थे। राज कर्मचारियों ने उन्हें भी हटने को कहा, लेकिन अष्टावक्र ने हटने से इनकार कर दिया और कहा कि राजा के लिए यह उचित नहीं है कि वह प्रजा के आवश्यक कार्यों को रोककर अपनी सुविधा का प्रबंध कराए। यदि राजा अनीति करता है तो एक विद्वान व्यक्ति का कर्तव्य है कि उसे रोके और समझाए। आप कृपया राजा तक मेरा यह संदेश पहुंचा दें।

राज कर्मचारियों ने अष्टावक्र को बंदी बना लिया और उन्हें जनक के सामने उपस्थित कर दिया। राजा जनक अष्टावक्र से बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने कहा - ऐसे निर्भीक विद्वान ही राज्य की सच्ची संपत्ति हैं। उन्हें दंड नहीं, सम्मान दिया जाना चाहिए।

जनक ने अष्टावक्र से क्षमा मांगी और उनसे निवेदन किया कि वह राजगुरु का पद संभालें। अष्टावक्र ने उनका निवेदन स्वीकार कर लिया।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।

धन्यवाद।

--

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏

Comments

Popular posts from this blog

बालक और राजा का धैर्य

चौबोली रानी (भाग - 24)

सती नर्मदा सुंदरी की कहानी (भाग - 2)

सती कुसुम श्री (भाग - 11)

हम अपने बारे में दूसरे व्यक्ति की नैगेटिव सोच को पोजिटिव सोच में कैसे बदल सकते हैं?

मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 18 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर व उनके चिह्न

बारह भावना (1 - अथिर भावना)

रानी पद्मावती की कहानी (भाग - 4)

चौबोली रानी (भाग - 28)