सपने सा संसार

सपने सा संसार

किसी समय एक बहुत गरीब व्यक्ति अपने यौवन काल में बहुत बड़ा मालदार बन गया। वह 18 वर्ष की आयु में अपने पिता के पास से केवल एक धोती और एक लोटा लेकर चला था। काशी पहुँच कर धर्म का आश्रय लेकर व्यापार करने लगा। भाग्य ने साथ दिया, पुरुषार्थ ने जोर मारा और व्यापार अच्छा चल पड़ा। लाखों रुपए भी कमाए, शानदार कोठी भी बनवा ली।

नौकर-चाकर के भरोसे घर गृहस्थी कब तक चलती? सो एक रूपसी कन्या को ब्याह लाए। पुत्र-पुत्रियों की किलकारियों से हवेली गूँज उठी। पत्नी अत्यंत सौम्य व सुगृहिणी थी। सोचने लगा कि गाँव में माँ-बाप को छोड़ आया था, अब जाकर उनकी कुछ खबर ले आऊँ। भगवान की दया से वे भी कुछ दिन मौज के दिन देख लें।

बस! फिर क्या था? विचार को आचार का रूप दे दिया। माँ-बाप उसके साथ काशी आ गए। घर की रौनक चौगुनी हो गई। सारे गाँव में सब के मुख पर यही चर्चा थी कि इस जैसा सुखी और संपन्न व्यक्ति दूसरा नहीं है।

दो माह गुजर गए। माँ-बाप को खेत खलिहानों की स्मृतियां पुकारने लगी। आज सुबह ही माँ-बाप को गाँव छोड़कर आता हूँ - यह कह कर वह माँ-बाप के साथ चल पड़ा। 2 दिन मस्ती से गाँव में गुजरे। तीसरी रात वह अपने शहर काशी लौट आया।

आज मौसम बहुत ही सुहावना है, कैसी कजरारी घटाएं, मंद-मंद हवा; बस! सेठ जी हाथ में लोटा ले कर गंगा किनारे चल पड़े। इत्तेफाक से काफी दूर निकल गए। अचानक एक झटका लगा, सारी धरती काँप उठी। इस भूकम्प की दुर्घटना की चपेट में सेठ जी का सारा धन, माल, हवेली, पुत्र, पुत्री, पत्नी, परिवार, दुकान, बाग, बगीचा; सब कुछ आ गया। देखते ही देखते पूरा मोहल्ला मलबे में तब्दील हो गया।

सेठ घर आए। घर की ऐसी दारुण दशा देख कर वे स्तब्ध रह गए। सारे पास-पड़ोसी लोग सेठ के पास दौड़े आए। उनकी स्तब्धता पर लोग उन्हें धैर्य बंधाने लगे। एक व्यक्ति जो कुछ बुजुर्गनुमा था, कुछ बोला ही था कि सेठ जी बीच में ही बोल पड़े - कोई बात नहीं। मैं यहाँ एक धोती और एक लोटा लेकर आया था। ये दोनों चीजें आज भी मेरे पास हैं। इन्हें लेकर आज भी मैं अपने गाँव जा सकता हूँ। बीच में जो एक नया संसार यहाँ आकर बसा था, वह स्वप्न की तरह से सिद्ध हुआ। यहाँ का स्वप्न यहीं टूट गया। हमारे ऋषि-महर्षि भी तो यही कहते हैं - संसार एक स्वप्न है। मेरा स्वप्न टूट गया। मैं अब पूरे होश में हूँ। जो कानों सुना था, वह आँखों देख लिया।

उपस्थित भीड़ के मुख पर विषाद की जगह उसके साहस की सराहना थी।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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