तैरने की कला
तैरने की कला
बैरिस्टर बाबू रमेश कुमार अपनी पत्नी को साथ लेकर विलायत से रवाना हुआ। फर्स्ट क्लास की टिकट ले कर जहाज में वह दंपति उल्लसित मन से बैठ गया। बाबू के गले में टाई, आँखों पर चश्मा और कलाई में घड़ी थी। वह सीट पर बैठा हुआ दैनिक समाचार पत्र पढ़ रहा था। उसके मन में बैरिस्टर होने का बहुत घमंड था। वह अपने आप को विद्या वारिधि समझता था। इतने में एक जहाज में काम करने वाला खलासी, बाबू के पास आया और हाथ जोड़कर बोला - बाबू साहब! घड़ी में कितने बजे हैं?
बाबू अखबार पढ़ने में इतने तल्लीन थे कि उन्हें कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। दो-तीन बार पूछने पर बाबू का ध्यान गया तो रोष भरी वाणी में बोला - टेबल पर घड़ी पड़ी है, तुम स्वयं देख लो। क्यों बिना मतलब शोर मचा रहे हो? चले जाओ यहां से।
खलासी नम्र भाव से बोला - बाबू साहब! मुझे घड़ी देखनी नहीं आती।
बाबू - क्या? इस वैज्ञानिक युग में तूने घड़ी देखना नहीं सीखा है। तब तो तेरी दो आना जिंदगी पानी में चली गई।
बाबू - अच्छा तुम पढ़े कहाँ तक हो?
खलासी - बाबूजी! आप तो मेरे साथ मज़ाक करने लग गए। मैं कहाँ पढ़ा हूँ। मेरे लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है।
बाबू - नहीं पढ़ने के कारण तेरी दो आना जिंदगी फिर पानी में चली गई। अरे मूर्ख! आज के जमाने में पढ़ाई का बहुत महत्व है। पढ़ाई के बिना कोई किसी को नहीं पूछता। शादी भी मुश्किल से होती है, क्योंकि अनपढ़ को कोई भी लड़की नहीं देना चाहता।
बाबू - क्या तेरा विवाह हो गया?
खलासी - मेरा तो नहीं, किंतु मेरे पिताजी का विवाह अवश्य हुआ था।
बाबू - अरे खलासी! मेरे जैसा पुण्यभागी कोई नहीं है। इस भौतिकवादी युग में तूने स्त्री सुख का आस्वादन नहीं लिया तो इससे तेरी आठ आना जिंदगी फिर पानी में चली गई।
दोनों में ऐसी हल्की-फुल्की बातें हो रही थी कि अचानक समुद्र में भयंकर तूफान आ गया। चारों तरफ भीषण अंधकार छा गया। जहाज डगमग-डगमग डोलने लगा। खतरे की घंटी बजते ही खलासी जोर से बोला - बाबूजी! बाबूजी!! जहाज डूबने वाला है। क्या आपने तैरना सीखा है?
बाबूजी के होश गुम हो गए। वह हक्का-बक्का रह गया और जोर से बोला - अरे भाई खलासी! तैरना तो नहीं सीखा है।
खलासी बोला - मुझे और तो कुछ नहीं आता किंतु तैरना जरूर आता है। मैं तो तैर कर समुद्र के किनारे चला जाऊँगा पर आप क्या करेंगे? बाबूजी! आप हर क्षेत्र में निपुण एवं दक्ष बने, किंतु एक तैरना नहीं आने के कारण आपकी क्या गति होगी? तनिक हिसाब मिलाइये। आपके कथनानुसार मेरी जिंदगी तो बारह आना ही पानी में गई, परंतु आपकी जिंदगी अब 16 आने ही पानी में जाने वाली है।
खलासी की बात सुनते ही बाबूजी के हृदय में तहलका मच गया। वह हल्ला करने लगा, पर उपाय क्या था? वह खलासी तो तैर कर समुद्र के तट पर चला गया और बाबू समुद्र में डूब गए।
मनुष्य अन्य-अन्य कलाओं में तो प्रवीण और दक्ष बन जाते हैं किंतु एक तैरने की कला के अभाव में उनका जीवन खत्म हो जाता है। अतः संसार-समुद्र से पार होने के लिए सबसे पहले धर्म की नाव में बैठ कर गुरु रूपी खेवटिया से सीख कर तैरने की कला में निपुण होना परम अपेक्षित है।
।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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