आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की वन्दना
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की वन्दना
(प्रख्यात गुरुभक्त कवि श्री चंद्रसैन जी जैन के मुखारविंद से)
मैंने ईश्वर को नहीं देखा, देखा है विद्यासागर को।
ज्ञान सिंधु जिसमें समा गया, मैंने देखा उस गागर को।।
सूरज जिनके चरणों में आकर के शीश झुकाता है।
प्रकृति का हर रोम-रोम, जिनके गीत सुनाता है।।
विश्व शांति होगी फिर से, हमको विश्वास दिलाता है।
हिमगिरी का उन्नत मस्तक, जहाँ नत मस्तक हो जाता है।।
मोक्ष महल का वासी वह, वह धरती पर यायावर (यात्री) है।
मेरी श्रद्धा, मेरे ईश्वर का, नाम ही विद्यासागर है।।
मेरे राम तुम्हीं, घनश्याम तुम्हीं, मेरा मान तुम्हीं, सम्मान तुम्हीं।
शब्द तुम्हीं, आवाज़ तुम्हीं, गीत और अंदाज तुम्हीं।
एहसास तुम्हीं, आभास तुम्हीं, मंज़िल और प्रकाश तुम्हीं।।
तुम ही हो अरमान हमारे।
तुम्हें देखकर सब कहते हैं, धरती पर भगवान पधारे।।
हमसे पूछा जब लोगों ने, तुमने ईश्वर को देखा है।
मैंने कहा हर उसने देखा, जिसने गुरुवर को देखा है।।
ईश्वर उतरा है गुरुवर में, या गुरुवर समा गए ईश्वर में।
हमको समझ नहीं आया, कौन बसा है किसके घर में?
छोटे बाबा और बड़े बाबा में, बस इतना ही अंतर है।
इन दादा और परदादा में, बस इतना ही अंतर है।।
गुरुवर और परमेश्वर में, बस इतना ही है अंतर।
वे मोक्ष महल में जा बैठे, और गुरुवर अभी इस धरती पर।।
इस युग का सौभाग्य रहा कि, इस युग में गुरुवर जन्मे।
और अपना यह सौभाग्य रहा, गुरुवर के युग में हम जन्मे।।
कलयुग में भी यह सतयुग, गुरुवर के नाम से जाना जाएगा।
कभी महावीर की श्रेणी में, गुरुवर का नंबर आएगा।।
माँ त्रिशला के तुम लघु नंदन, तुमसे माटी हो गई चंदन।
तुम कुंदकुंद भगवान के वंशज, पूज्य तुम्हारी चरणों की रज।।
तुमसे सूरज चांद सितारे, तुमसे हैं सौभाग्य हमारे।
जिन शासन की शान है तुमसे, हम सब की पहचान है तुमसे।।
लोकतंत्र का तंत्र हो तुम, मानवता का मंत्र हो तुम।
आगम की जीवित परिभाषा, समयसार का सार हो तुम।
कहती हैं ये दसों दिशाएं, ईश्वर का अवतार हो तुम।।
इस धरती पर जब तक जीवन सांसें हैं।
इस धरती पर जब तक दिन और रातें हैं।।
इस धरती पर जब तक मित्रों! ये प्रभाती आएगी।
अमराई में जब तक प्यारों, कोयल गाना गाएगी।।
सागर के सीने में जब तक, लहरों का उठना जारी है।
विस्तृत नभ के प्रांगण में, जब तक सूरज की सवारी है।।
नील गगन के माथे पर, जब तक चंदा की बिंदी है।
इस धरती पर जब तक बहती गंगा और कालिंदी है।।
कालचक्र के जब तक पहिए चलते हैं।
दूर क्षितिज पर धरती अंबर मिलते हैं।।
जब तक जीवित है मानव की परिभाषा।
गुरुवर विद्यासागर की तब तक है गौरव गाथा।।
हिमगिरि के सीने में जब तक पानी है।
गुरुवर विद्यासागर की, तब तक अमर कहानी है।।
कुछ भी पास नहीं है गुरुवर, बस श्रद्धा के फूल हूँ मैं लाया।
जो शब्द मांग के लिए थे तुमसे, उनको गीतों में भर लाया।।
जीवन के इस महासफर में, जो खाए वे शूल हैं मेरे।
माफ हमें कर देना गुरुवर, हम तो चरणों की धूल हैं तेरे।।
कुछ भी मेरे पास नहीं, यह गान मैं अर्पित करता हूँ।
गुरुदेव तुम्हारे चरणों में मैं, प्राण समर्पित करता हूँ।।
मेरे सांसो की सरगम में गुरुवर, तान तुम्हारी है।
यह ‘चंद्रसैन’ की काया है, पर इसमें जान तुम्हारी है।।
माना तुम बैरागी हो पर, हमको बेहद राग है तुमसे।
माना तुम समभावी हो, पर हमको बेहद अनुराग है तुमसे।।
तुम विरक्त हम अनुरक्त तुम्हारे, तुमसे जीवन हम पाते हैं।
पर अब तो सपनों में भी गुरुवर, हम गीत तुम्हारे गाते हैं।।
इस पावन अवसर पर बोलें, विश्व वंद्य महावीर की जय।
महावीर के अमर रूप की, इस जीवित तस्वीर की जय।।
प्राणी मात्र को जीने वाले, इस अद्भुत निर्ग्रंथ की जय।
मानवता के लिए समर्पित, शाश्वत जीवन पंथ की जय।।
ऋषभदेव के परम दूत, संतों के सम्राट की जय।
पंचम युग में महावीर सम, विद्यासागर महाराज की जय।।
।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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